भारत से दोस्ती बढ़ाने को क्यों बेताब है अमेरिका; विशेषज्ञों से समझिए ये दुनिया के सबसे ताकतवर देश की मजबूरी या सोची समझी चाल 

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Sunil Shukla
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भारत से दोस्ती बढ़ाने को क्यों बेताब है अमेरिका; विशेषज्ञों से समझिए ये दुनिया के सबसे ताकतवर देश की मजबूरी या सोची समझी चाल 

NEW DELHI. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा (State Visit) पर अमेरिका पहुंच गए हैं। उनकी 3 दिन की अमेरिका यात्रा को भारत-अमेरिका के रिश्तों के लिए ऐतिहासिक बताया जा रहा है। अमेरिका का कहना है कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के साथ दोस्‍ताना रिश्‍तों को मजबूत कर रहे हैं, लेकिन विदेश नीति के कई विशेषज्ञ इस दलील से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि अमेरिका भारत का इस्तेमाल चीन के खिलाफ कर रहा है। उसका दूसरा लक्ष्य रूस से सबसे बड़े हथियारों के खरीदार भारत को मास्‍को से भी दूर करना है। आइए आपको समझाते हैं कि भारत से दोस्ती बढ़ाने को लेकर आखिर अमेरिका क्यों इतना बेताब है ? 



रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न हालात में दुनिया में अलग-थलग पड़ा अमेरिका 



पीएम मोदी की अमेरिका यात्रा इस बार राष्ट्रपति जो. बाइडन और प्रथम महिला जिल बाइडन के निमंत्रण पर हो रही है। कहा जा रहा है कि इस यात्रा से पीएम मोदी उन महान लोगों की सूची में शामिल हो जाएंगे जिसमें विंस्टन चर्चिल और नेल्सन मंडेला जैसे नाम शामिल हैं,जिन्हें अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक को दो बार  संबोधित करने का मौका मिला है।अमेरिका ऐसा निमंत्रण सिर्फ बहुत खास सहयोगी देशों के नेताओं के देता है। इस दौरे से जहां ग्लोबल मंच पर पावर बैलेंस में भारत मजबूत होगा वहीं एशिया के पावर बैलेंस में चीन के मुकाबले में बिजनेस और डिफेंस डील के जरिए भी भारत खुद को मजबूत करता हुआ दिखेगा। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों की राय इसके उलट है। उनका मानना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न हालात के बाद अमेरिका दुनिया में अलग-थलग पड़ गया है। ऐसे में बड़ी आबादी और तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में भारत को गले लगाना उसकी मजबूरी है।



अमेरिका के पीछे खड़े रहने वाले देश भी अब उसके साथ नहीं 



अंतरराष्‍ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ डॉ. रहीस सिंह के मुताबिक अमेरिका के दोस्‍त देश अब उसको छोड़कर भाग रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले तक हर हाल में उसके पीछे खड़े नजर आने वाले देश भी उससे पीछा छुड़ा रहे हैं। अब सऊदी अरब अमेरिका के साथ नहीं है। सऊदी अरब ने चीन की मदद से ईरान के साथ समझौता कर लिया है। ईरान चीन के साथ है। यहां तक कि दुनिया से जुड़े कई अहम मुद्दों पर जर्मनी और फ्रांस जैसे देश भी अमेरिका के बजाय चीन के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। दरअसल इसकी सबसे बड़ी वजह अमेरिका का अपनी बात पर कायम न रहना है। अमेरिका ने अफगानिस्‍तान में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध किया और बाद में उसी तालिबानियों को सत्‍ता सौंप दी। ऐसे में अमेरिका पर कौन भरोसा करेगा।



अमेरिका ने ऑकस में भारत को नहीं किया शामिल



अमेरिका ने पहले इजरायल का साथ दिया लेकिन बाद में वो सऊदी अरब और अरब देशों के साथ खड़ा हो गया। अब अरब देशों को भी अहसास हो गया है कि अमेरिका किसी एक नीति पर कायम नहीं रहता। राष्‍ट्रपति बदलने पर अमेरिका की विदेश नीति बदल जाती है। अमेरिका ने हिंद प्रशांत क्षेत्र में पहले क्‍वॉड बनाया जिसमें जापान और भारत भी थे लेकिन अब ऑस्‍ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ मिलकर ऑकस सैन्‍य समझौता कर लिया। इसमें भारत और जापान नहीं हैं। इन दोनों देशों को बाहर करके अमेरिका हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन से कौन सी लड़ाई लड़ रहा है, ये समझ से परे है। 



दुनिया के कारोबार में घट रहा है डॉलर का प्रभाव 



अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकारों का मानना है कि रूस से इतनी बड़ी और लंबी लड़ाई दरअसल यूक्रेन की मूर्खता है। यूक्रेन में तो रूस और नाटो देश लड़ाई लड़ रहे हैं। यदि अमेरिका को रूस से  लड़ना था तो यूक्रेन में अपनी सेना भेजता। आज दुनिया में तेजी से चीनी मुद्रा युआन का प्रभाव बढ़ रहा है। चीन खाड़ी देशों से लेकर अफ्रीका तक अब युआन में व्‍यापार करने जा रहा है। पाकिस्‍तानी चीनी मुद्रा में रूस से तेल खरीद रहा है। ऐसे में डॉलर धीरे-धीरे दुनिया से बाहर हो रहा है। अमेरिका, चीन से अदावत रखने वाले देशों को यह भरोसा नहीं दिला पा रहा है कि यदि चीन उन पर हमला करेगा तो वो लड़ाई में उनका साथ देगा। कोरोना काल में चीन पर वायरस फैलाने की आरोप लगने के बाद भी  दुनिया में चीन के कारोबार पर  कोई खास असर नहीं पड़ा।



हथियारों की खरीद में भारत को रूस से दूर करने की रणनीति 



डॉ. सिंह मुताबिक अब अमेरिका की यह मजबूरी है कि वह भारत का हाथ पकड़े और यह दिखाए कि दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्‍यवस्‍था उसके साथ खड़ी है। वहीं पूर्व राजनयिक और रणनीतिक मामलों के एक्सपर्ट केसी सिंह का कहना है कि अमेरिका को अभी भारत की जरूरत है ताकि चीन को संतुलित किया जा सके। दरअसल अमेरिका भारत का इस्‍तेमाल चीन के साथ अपने आर्थिक रिश्‍ते को संतुलित करने के लिए कर रहा है। अमेरिका का दूसरा प्रमुख इरादा भारत को रूस से दूर करने का है। इसकी वजह रूस से हथियारों की खरीद के मामले में भारत का सबसे बड़ा खरीदार होना है। वो इस मामले में भारत को रूस से दूर कर अपने हथियार बेचना चाहता है।



दौरे पर चीन ने गड़ा रखी हैं निगाहें



पीएम मोदी की अमेरिका विजिट पर भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर के लोगों की नजरें टिकी हुई हैं। चीन भी पीएम मोदी के दौरे पर बारीकी से नजर रख रहा है। भारत और अमेरिका की बढ़ती नजदीकियों ने चीन को चिंता में डाल दिया है। अपनी चिंता को छिपाने के लिए वह इस तरह की बातें कह रहा है कि अमेरिका और भारत के रिश्ते कभी चीन और भारत जैसे नहीं हो सकते और दोनों के बीच व्यापार चीन जितना नहीं बढ़ सकता है। 



अमेरिका के साथ होगी अब तक की सबसे बड़ी डिफेंस डील 



पीएम मोदी के अमेरिका दौरे पर दोनों देशों के बीच डिफेंस, बिजनेस, टेक्नोलॉजी और स्ट्रैटेजिक डील होंगी। इस दौरे में डिफेंस डील सबसे अहम मानी जा रही है। बताया जा रहा है कि पीएम के इस दौरे पर भारत-अमेरिका के बीच भारत को सुपरपावर बनाने वाली अब तक की सबसे बड़ी डिफेंस डील होने वाली है। इससे भारत की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी।



चीन के साथ पॉवर गेम में अहम होगी अमेरिकी प्रीडेटर ड्रोन 



भारत के रक्षा मंत्रालय ने पिछले हफ्ते अमेरिकी प्रीडेटर ड्रोन 31 MQ-9B की खरीद को हरी झंडी दी थी। माना जा रहा है कि पीएम मोदी प्रीडेटर ड्रोन की खरीद की 3 बिलियन डॉलर की इस डील का ऐलान कर सकते हैं। अमेरिका का बेहद खतरनाक ड्रोन 1200 किलोमीटर तक मार करने की क्षमता रखता है। तालिबान और ISIS के खिलाफ अमेरिका ने इन ड्रोन्स के जरिए अचूक हमले किए। भारत को अपनी लंबी समुद्री सीमा और थल सीमा की निगरानी के लिए भी इस ड्रोन की खास जरूरत थी। माना जा रहा है कि डील फाइनल होने के बाद भारतीय नेवी को 14 और सेना-वायुसेना को 8-8 ड्रोन मिलेंगे। चीन के साथ हिंद महासागर में चल रहे पावर गेम के लिहाज से ये ड्रोन भारत के लिए काफी काम के साबित होंगे। हिंद महासागर में इनकी तैनाती से इंडियन नेवी को चीनी मंसूबों को फेल करने, उन पर निगरानी रखने और बढ़-चढ़कर अपने मिशन को चलाने में मदद मिलेगी। 



भारत में बनेंगे फाइटर एअरक्राफ्ट के जेट इंजन



राफेल विमानों के आने से बदले एयर डिफेंस पावर के बाद अब भारत चीन का मुकाबला करने के लिए अपने लड़ाकू विमानों की तादाद तेजी से बढ़ाने की ओर कदम उठा रहा है। इस वक्त तेजस मार्क-2 के लिए नए इंजन की जरूरत थी।  पीएम मोदी के अमेरिकी दौरे में GE F414 Engine का निर्माण भारत में होने पर मुहर लग जाएगी। इससे जेट इंजन भारत में बनने लगेगा। इसके लिए अमेरिका टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर सहमत हो गया है। इस कदम से फाइटर जेट्स को लेकर भारत की निर्भरता दूसरे देशों पर कम होगी और देसी तकनीक के जरिए एयर पावर बढ़ाने की दिशा में हम आगे बढ़ पाएंगे। 



स्ट्राइकर बख्तरबंद वाहन का साझा उत्पादन



स्ट्राइकर बख्तरबंद वाहन, दुनिया की सबसे ताकतवर बख्तरबंद गाड़ियां मानी जाती हैं। अपने मोबाइल गन सिस्टम के साथ, 105 एमएम की तोप और एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल से लैस ये वाहन टैंकों को भी तबाह करने की ताकत रखता है। अमेरिका ने अपने सबसे शक्तिशाली स्ट्राइकर वाहन को भारत के साथ मिलकर बनाने का ऑफर दिया है। पीएम मोदी के इस दौरे पर इस डील पर भी मुहर लग जाएगी।



यह है PM मोदी के अमेरिका दौरे का शेड्यूल



पहला दिन: 21 जून




  • अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर न्यूयॉर्क में स्थित संयुक्त राष्ट्र (UN) के मुख्यालय के उत्तरी लॉन में सुबह 8 बजे से 9 बजे तक योग कार्यक्रम का नेतृत्व करेंगे। इस समारोह में इंटरनेशनल सिंगर मैरी मिलबेन भी शामिल होंगी।


  • न्यूयॉर्क में स्थित UN हेडक्वार्टर के उत्तरी लॉन में महात्मा गांधी की प्रतिमा स्थित है, पीएम मोदी इस प्रतिमा को नमन करेंगे। 

  • यहां से पीएम मोदी वॉशिंगटन डीसी जाएंगे। शाम के समय जो बाइडेन और उनकी पत्नी जिल निजी रात्रिभोज की मेजबानी करेंगे।



  • दूसरा दिन: 22 जून




    • व्हाइट हाउस में पीएम मोदी का स्वागत किया जाएगा। इस कार्यक्रम में भारतीय डायस्पोरा के सदस्यों सहित एक हजार लोगों के शामिल होने की उम्मीद है।


  • स्वागत के बाद पीएम मोदी और जो बाइडेन हाई-लेवल बातचीत करेंगे। जो बाइडेन और जिल बाइडेन 21 तोपों की सलामी के बीच प्रधानमंत्री का स्वागत करेंगे। 

  • अमेरिकी कांग्रेस के आमंत्रण पर पीएम मोदी दोपहर के समय कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगे। इस सभा में स्पीकर केविन मैकार्थी और सीनेट नेता चक शूमर मौजूद रहेंगे। पीएम मोदी पहले ऐसे भारतीय पीएम होंगे जो अमेरिकी कांग्रेस को दूसरी बार संबोधित करेंगे। 

  • शाम के समय जो बाइडेन और जिल बाइडेन पीएम मोदी के लिए राजकीय रात्रिभोज की मेजबानी करेंगे। इसमें सैकड़ों मेहमान, कांग्रेस सदस्य, राजनयिक और मशहूर हस्तियां के शामिल होने की उम्मीद है। 



  • तीसरा दिन: 23 जून




    • उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस और विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन पीएम मोदी के लिए दोपहर भोज का आयोजन करेंगे।


  • पीएम मोदी दिग्गज कंपनियों के सीईओ और दूसरे दिग्गजों के साथ मीटिंग करेंगे। 

  • न्यूयॉर्क में पीएम मोदी करीब 24 लोगों से मिलेंगे, जिनमें टेस्ला के सह-संस्थापक एलॉन मस्क, एस्ट्रोफिजिसिस्ट नील डेग्रसे टायसन, ग्रैमी पुरस्कार विजेता भारतीय-अमेरिकी गायक फालू (फाल्गुनी शाह), पॉल रोमर, निकोलस नसीम तालेब, रे डालियो, जेफ स्मिथ, माइकल फ्रोमैन डैनियल रसेल, एलब्रिज कोल्बी, डॉ पीटर आग्रे, डॉ स्टीफन क्लास्को और चंद्रिका टंडन से मुलाकात करेंगे। 

  • शाम के समय भारतीय समुदाय रोनाल्ड रीगन बिल्डिंग में प्रधानमंत्री के लिए रात्रिभोज का आयोजन करेगा। 



  • चौथा दिन: 24  जून



    पीएम मोदी 24 जून को अमेरिका से प्रस्थान करेंगे और 24-25 जून को मिस्र की राजधानी काहिरा पहुंच जाएंगे। उन्हें यह निमंत्रण तब मिला था, जब मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल सिसी गणतंत्र दिवस पर 2023 में मुख्य अतिथि बनकर भारत आए थे। उन्होंने 26 जनवरी 2023 को भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होते समय पीएम मोदी को निमंत्रित किया था। 


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