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Photograph: (the sootr)
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया द्वारा बुधवार (3 सितंबर) को जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बच्चों की संख्या में निरंतर गिरावट आ रही है। देश में बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। इस रिपोर्ट ने भारत के जनसंख्या ढांचे में एक बड़े बदलाव को उजागर किया है।
50 साल में बच्चों की आबादी में करीब 17% की गिरावट आई है। बुजुर्गों की आबादी में बढ़ोतरी के साथ कामकाजी उम्र (15-59 साल) के लोगों की हिस्सेदारी भी बढ़ी है। इधर भारत में शिशु मृत्यु दर में पिछले 10 वर्षों में 37.5% की गिरावट आई है
भारत में बढ़ती उम्रदराज आबादी
रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (Registrar General of India) द्वारा जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बच्चों की संख्या में निरंतर गिरावट आ रही है, जबकि बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। इस रिपोर्ट ने भारत की जनसंख्या ढांचे में एक बड़े बदलाव को उजागर किया है।
50 साल में बच्चों की आबादी में करीब 17% की गिरावट आई है। वहीं, बुजुर्गों की आबादी में बढ़ोतरी के साथ कामकाजी उम्र (15-59 साल) के लोगों की हिस्सेदारी भी बढ़ी है।
रिपोर्ट का सारांश
बच्चों की आबादी में गिरावट
रिपोर्ट में यह बताया गया कि 1971 में 0 से 14 साल के बच्चों की आबादी 41.2% थी, जो 2023 में घटकर 24.2% रह गई। इस दौरान बच्चों की आबादी में करीब 17% की गिरावट आई है। इसका सीधा असर भारत की श्रम शक्ति और सामाजिक ढांचे पर पड़ेगा।
बुजुर्गों की आबादी में बढ़ोतरी
भारत में बुजुर्गों की आबादी 9.7% हो गई है। केरल में यह संख्या सबसे ज्यादा 15.1% है, उसके बाद तमिलनाडु (14%) और हिमाचल प्रदेश (13.2%) का स्थान है। इस बदलाव के साथ, बुजुर्गों की देखभाल के लिए संसाधनों की आवश्यकता भी बढ़ी है।
आर्थिक प्रभाव
बच्चों की संख्या में कमी का अर्थ है कि आने वाले समय में कामकाजी श्रमिकों की संख्या घटेगी, जो आर्थिक विकास पर प्रभाव डाल सकता है। इसके अलावा, बुजुर्गों के बढ़ते संख्या के कारण पेंशन और सामाजिक सुरक्षा पर दबाव बढ़ सकता है।
शिशु मृत्यु दर में कमी
भारत में शिशु मृत्यु दर में पिछले 10 वर्षों में 37.5% की गिरावट आई है, जो स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से सकारात्मक संकेत है।
सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की रिपोर्ट को ऐसे समझें शार्ट मेंबुजुर्गों की संख्या में बढ़ोतरी: भारत में 60 साल से ऊपर की आबादी 9.7% हो गई है, और केरल में यह प्रतिशत सबसे ज्यादा 15.1% है। बच्चों की आबादी में गिरावट: 1971 में 0-14 साल के बच्चों की आबादी 41.2% थी, जो घटकर 24.2% रह गई है, यानी पिछले 50 सालों में बच्चों की हिस्सेदारी में 17% की गिरावट आई है। कामकाजी उम्र के लोगों में वृद्धि: 15 से 59 साल के लोगों की हिस्सेदारी 1971-2023 के बीच 53.4% से बढ़कर 66.1% हो गई है। शिशु मृत्यु दर में कमी: 2023 में शिशु मृत्यु दर 25 रही, जो 2013 में 40 थी, यानी 10 सालों में 37.5% की गिरावट आई है। प्रजनन दर में गिरावट: भारत की कुल प्रजनन दर 1971 में 5.2 थी, जो 2023 में घटकर 1.9 रह गई है, यह देश की जनसंख्या वृद्धि पर असर डाल रहा है। |
बढ़ती कामकाजी उम्र की जनसंख्या
कामकाजी आयु वर्ग में वृद्धि
15 से 59 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। 1971 से 2025 के बीच इस श्रेणी का हिस्सा 53.4% से बढ़कर 66.1% हो गया है। शहरी इलाकों में इस आयु वर्ग का हिस्सा 68.8% है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह 64.6% है। दिल्ली में कामकाजी उम्र वर्ग की हिस्सेदारी सबसे अधिक 70.8% है।
आर्थिक विकास पर प्रभाव
कामकाजी उम्र के लोगों की संख्या बढ़ने से उत्पादकता और आर्थिक विकास में योगदान बढ़ सकता है। लेकिन, बच्चों की संख्या में गिरावट का असर भविष्य में श्रम शक्ति पर पड़ेगा, जिससे विकास की गति धीमी हो सकती है।
केरल में बुजुर्गों की सबसे अधिक संख्या
केरल में 60 साल से ऊपर की आबादी 15.1% है, जो देशभर में सबसे ज्यादा है। राज्य में केरलवृद्धों की बढ़ती संख्या से स्वास्थ्य, देखभाल और सामाजिक सेवाओं पर अधिक दबाव पड़ेगा। वहीं, राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं और जीवन स्तर में सुधार के बावजूद, वृद्धों के लिए उपयुक्त सेवाओं की आवश्यकता भी बढ़ी है।
भारत फर्टिलिटी रेट में गिरावट
भारत की कुल प्रजनन दर 1971 में 5.2 थी, जो अब घटकर 1.9 रह गई है। यह आंकड़ा यह दर्शाता है कि औसत भारतीय परिवार में बच्चों की संख्या में गिरावट आई है। इसका असर भविष्य की जनसंख्या वृद्धि और संसाधनों पर भी पड़ेगा।
सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव
सिंगल चाइल्ड और नो चाइल्ड परिवार
बच्चों की संख्या में गिरावट के साथ, सिंगल चाइल्ड और नो चाइल्ड परिवारों की संख्या बढ़ सकती है। इससे परिवारों की संरचना में बदलाव आ रहा है। जिससे वृद्धों की देखभाल की जिम्मेदारी का तरीका भी बदल रहा है।
प्रति बच्चे पर निवेश में वृद्धि
बच्चों की संख्या कम होने के कारण माता-पिता अब बच्चे पर अधिक खर्च करने की स्थिति में है। वे बच्चे के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और लिविंग स्टैंडर्ड पर पहले से अधिक खर्च कर रहे है। इससे बच्चे का विकास तेज गति से हो रहा है।
शिशु मृत्युदर में 37.5 प्रतिशत का सुधार
इस ताजा रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि देश में शिशु मृत्युदर में भी तेजी से गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2013 में शिशु मृत्युदर 40 थी, जो वर्ष 2025 में घटकर 25 रह गई है। यह आंकड़ा बीते दस वर्षों में मृत्युदर में 37.5 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाता है। इस गिरावट का मुख्य कारण देश में स्वास्थ्य सेवाओं में हुए सुधारों को बताया गया है।
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