भारत में एक साल में दोगुना हुए डायबिटीज के मरीज, कैसे करें इसे कंट्रोल

भारत में मधुमेह के मरीजों की संख्या 21 करोड़ पार कर चुकी है, जो चीन से भी अधिक है। 'द लैंसेट' रिपोर्ट के अनुसार भारत में युवाओं में शुगर का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। जागरूकता, संतुलित आहार और नियमित व्यायाम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

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Ravi Singh
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एक जानकारी के अनुसार पूरी दुनिया में मधुमेह ( Diabetes ) या शुगर के मरीजों की संख्या 80 करोड़ से ऊपर हो चुकी है। दिल, आंखों, किडनी और नर्वस सिस्टम को प्रभावित करने वाली इस बीमारी के भारत में मरीजो की संख्या खासी चौंकाने और भयभीत करने वाली है। भारत में इसके मरीजों की संख्या बढ़कर 21 करोड़ से हो चुकी है, जिसे चीन से भी ज्यादा बताया जा रहा है। वैसे इन आंकड़ों पर सवाल उठाए जाते रहे हैं और इस बीमारी को मापने के तरीके पर भी संदेह किया जाता है। इन सबके बावजूद यह बीमारी पूरी दुनिया को चिंतित कर रही है और एक्सपर्ट मान रहे हैं कि इसके बचाव के लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाए जाने जरूरी हैं।

‘द लैंसेट’ की रिपोर्ट ने चौंकाया

मधुमेह को लेकर हाल ही ‘द लैंसेट’ नामक पत्रिका में एक डिटेल रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। ‘द लैंसेट’ एक साप्ताहिक चिकित्सा पत्रिका है, जिसकी स्थापना 1823 में इंग्लैंड में हुई थी। इसे दुनिया की सबसे अधिक प्रभाव वाली अकादमिक पत्रिकाओं में से एक माना जाता है। द लैंसंट और भी पत्रकाएं प्रकाशित करती है। मधुमेह पर इसकी रिपोर्ट डराने वाली है, जिसमें बताया गया है कि दुनिया में टाइप 1 या टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित वयस्कों की संख्या 80 करोड़ से अधिक हो चुकी है, जो साल1990 की तुलना में चार गुना है। इनमें से लगभग एक चौथाई (21.2 करोड़) भारत में रहते हैं, जबकि चीन में इस बीमारी से प्रभावितों की संख्या 14.8 करोड़ हैं। यह अनुमान चौंकाने वाला है, क्योंकि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR)-INDIAB के पिछले साल के अध्ययन में यह संख्या 10 करोड़ के करीब बताई गई थी।

मरीजों की संख्या पर उठते सवाल?

मधुमेह के रोगियों की संख्या को हमेशा संदेह की निगाह से देखा जाता है और दुनियाभर में कहा जाता है कि इसके आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। असल में यह अंतर ब्लड शुगर मापने के सिस्टम से है। ‘द लैंसेट’ ने अपनी रिपोर्ट में जो आंकड़ा दिया है, वह विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और एनसीडी जोखिम कारक सहयोग (The Non-Communicable Disease Risk Factor Collaboration, NCD-RisC) ने मिलकर किया। NCD-RisC स्वासथ्य वेज्ञानिकों का एक वैश्विक नेटवर्क है, जो बीमारियों पर डेटा इकट्टा करता है। इस अध्ययन ने वर्ष 1990 से 2022 तक 200 देशों में मधुमेह की प्रवृत्तियों का आकलन किया। इसमें उपवास ग्लूकोज, HbA1C या तीन महीने के ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन औसत डेटा का उपयोग किया गया। जबकि, ICMR अध्ययन में उपवास माप और भोजन के बाद दो घंटे की शुगर माप का उपयोग किया गया।  वैसे कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर जांच के लिए OGTT (Oral Glucose Tolerance Test) टेस्ट का उपयोग किया जाए तो यह आंकड़े आधे हो सकते हैं। लेकिन यह विधि सभी देशों में समान रूप से उपलब्ध नहीं है।

भारत के लिए मामला चिंताजनक है

मरीजों की संख्या चाहे जितनी हो, भारत में पहले से ही बड़ी संख्या में लोग इलाज के अभाव में हैं और दिल, आंखों, किडनी और नर्वस सिस्टम जैसी परेशानियों से जूझ रहे हैं। यह पत्रिका एक और संकेत देती है कि मधुमेह भारत में तेजी से बढ़ रहा है। इसके रोकथाम और उपचार पर युद्धस्तर पर प्रयास करने होंगे। अध्ययन में बताया गया है कि मधुमेह के इलाज की पहुंच कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सीमित है। इन देशों में शुगर के रोगी अपेक्षाकृत कम उम्र के होते हैं और उपचार के अभाव में गंभीर जटिलताओं जैसे हृदय रोग, किडनी खराब होना, आंखों की रोशनी या समय से पहले मृत्यु का सामना कर सकते हैं। विशेष बात यह है कि भारत के युवा तेजी से इस बीमारी की गिरफ्त में आते जा रहे हैं, जो बड़ा ही गंभीर मसला है।

कैसे कंट्रोल किया जाए इस बीमारी को

पत्रिका ने इस बीमारी को कंट्रोल करने की जानकारी भी दी है और कहा है कि भारत समेत विभिन्न देशों की सरकारों को इस पर गंभीर पहल करनी चाहिए। पत्रिका के अध्ययन में मोटापा और खराब आहार को टाइप 2 मधुमेह के मुख्य कारणों के रूप में पहचाना गया है। संतुलित आहार और नियमित व्यायाम से इस बीमारी को रोका जा सकता है और ब्लड शुगर को कंट्रोल किया जा सकता है। सरकारों के लिए जिम्मेदारी है कि वे स्वास्थ्यकर भोजन को सुलभ और किफायती बनाने के लिए प्रभावी नीतियां बनाएं, साथ ही व्यायाम के अवसर सुनिश्चित करने का इंतजाम करें, जैसे सुरक्षित पार्क, फिटनेस सेंटर और स्कूलों में स्वस्थ भोजन की व्यवस्था। पत्रिका का यह भी कहना है कि इस चुनौती से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण और हर स्तर पर सामूहिक प्रयास की जरूरत है।

भारत के लिए परेशानी वाले आंकड़े

विश्वभर में 80 करोड़ से अधिक वयस्क इस बीमारी की चपेट में। इनमें से लगभग 21.2 करोड़ भारत में हैं। यह आंकड़ा पिछले वर्ष भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा किए गए अध्ययन से दोगुना है। 

चिंताजनक हालात

भारत में इस बीमारी के रोगियों की संख्या चिंताजनक है। मधुमेह से ग्रसित व्यक्ति कई गंभीर जटिलताओं जैसे हृदय रोग, किडनी फेल, नेत्र समस्याएं और नर्वस सिस्टम की बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।

अभियान की आवश्यकता

मधुमेह की रोकथाम और उपचार के लिए ‘युद्धस्तर पर प्रयासों’ की जरूरत है। इसके लिए जन-जागरूकता अभियान, पोषण, व्यायाम, और चीनी-युक्त पेय पदार्थों पर नियंत्रण आवश्यक है। महिलाओं के लिए अभियान बहुत जरूरी है क्योंकि प्रसव के बाद मोटापा और पीरियड्स के बाद मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है।

समाधान और आगे की राह

अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों पर प्रतिबंध, स्वस्थ आहार को सुलभ और किफायती बनाना, सार्वजनिक पार्क और फिटनेस सेंटरों की सुविधा सुनिश्चित करना, जन-जागरूकता बढ़ाना।

व्यक्तिगत प्रयास

संतुलित आहार और नियमित व्यायाम, मोटापे पर नियंत्रण और स्वस्थ जीवनशैली अपनाना  

ध्यान दें कि- मधुमेह की चुनौती से निपटने के लिए भारत को समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा। न केवल सरकारी स्तर पर, बल्कि व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर भी प्रयास जरूरी हैं। लांसेट की रिपोर्ट एक चेतावनी है कि अब और देर करना भारत के स्वास्थ्य तंत्र के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।

इस खबर से जुडे़ सामान्य सवाल

मधुमेह क्या है?
मधुमेह एक ऐसी बीमारी है, जिसमें शरीर में ब्लड शुगर लेवल अनियंत्रित हो जाता है।
मधुमेह के मुख्य कारण क्या हैं?
मोटापा, खराब आहार, शारीरिक गतिविधि की कमी और आनुवंशिकता मधुमेह के प्रमुख कारण हैं।
भारत में मधुमेह के मरीजों की संख्या कितनी है?
'द लैंसेट' के अनुसार, भारत में मधुमेह मरीजों की संख्या 21 करोड़ से अधिक है।
मधुमेह को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?
संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, और ब्लड शुगर की नियमित जांच से मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है।
क्या मधुमेह से बचाव संभव है?
हां, स्वस्थ जीवनशैली, वजन नियंत्रण और संतुलित आहार अपनाकर इसे रोका जा सकता है।

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