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NEW DELHI. आज यानी 28 मई को देश को नई संसद मिलने जा रही है। भारत का पुराना संसद भवन भले ही इतिहास बनने जा रहा है, लेकिन इसने 96 साल का इतिहास देखा है। पुराने संसद भवन ने 1927 से लेकर 1947 तक ब्रिटिश राज में भारत के विधान तय किए। 1951-52 में सम्प्रभुता सम्पन्न भारत गणराज्य के पहले चुनाव से लेकर 2019 तक चुनी गई 17 लोकसभाओं को विराजमान किया। इसी भवन में 14 और 15 अगस्त की मध्य रात्रि को पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का वह कालजयी भाषण हुआ था जो ‘‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’’ (नियति के साथ साक्षात्कार) के नाम से विख्यात हुआ। आजादी के बाद इस संसद भवन ने राष्ट्र निर्माण की दिशा में कई ऐतिहासिक विधान बनाए, जिनसे भारत को वैश्विक पटल पर नई सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक पहचान मिली।
1927 में बना था सेंट्रल असेंबली, 28 में भगत सिंह ने यहीं बम फेंका था
सर्व विदित ही है कि भारत की ब्रिटिश राजधानी कलकत्ता थी, प्रशासनिक सहूलियत के लिए 1911 में दिल्ली स्थानांतरित हुई। ब्रिटिश शासन व्यवस्था दिल्ली आ जाने के बाद दिल्ली में ही वायसरॉय, उनके प्रशासन और विधायिका के लिए दिल्ली में ही भवन बनने लगे। इन सबके डिजाइन की जिम्मेदारी सर एडविन लुटियन और हरबर्ट बेकर को सौंपी गई। इन्होंने तीन भवनों के डिजाइन तैयार किए। इनमें सेंट्रल असेंबली भवन 1927 में और वायसरॉय हाउस 1929 में बनकर तैयार हुआ। वायसरॉय हाउस आजादी के बाद राष्ट्रपति भवन और केंद्रीय असेंबली स्वतंत्र भारत का संसद भवन कहलाया।
1928 में भगत सिंह ने इसी सेंट्रल असेंबली में बटुकेश्वर दत्त के साथ बम फेंका था। उन्होंने बम खाली बेंचों पर फेंका था, ताकि किसी को नुकसान ना हो। इसके बाद भगत और बटुकेश्वर ने बाकायदा गिरफ्तारी दी। उन पर केस चला। इस मामले में किसी को नुकसान नहीं हुआ था, लिहाजा किसी को सजा नहीं हो सकती थी। बाद में इसे लाहौर षड़यंत्र केस से जोड़ा गया और भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी दी गई।
संसद मार्ग पर पुराना संसद भवन
राष्ट्रपति भवन से 750 मीटर की दूरी पर पुराना संसद भवन स्थित है। यह विजय चौक, इंडिया गेट, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक, उपराष्ट्रपति के घर से घिरा हुआ है। हैदराबाद हाउस, सचिवालय भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय और निवास, मंत्रिस्तरीय भवन और भारत सरकार की अन्य प्रशासनिक इकाइयां भी इसी के आसपास हैं।
पुराने संसद भवन में भारत का संविधान भी बना
संसद भवन का निर्माण 1921 और 1927 के बीच किया गया था। इसे जनवरी 1927 में इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के रूप में खोला गया था। भारत में ब्रिटिश शासन के अंत के बाद, इस भवन में सन् 1946 से जनवरी 1950 तक 2 साल 11 महीने और 18 दिन संविधान सभा चली और फिर 1950 में भारत का संविधान लागू होने के बाद भारतीय संसद द्वारा इसे अपने अधिकार में ले लिया गया। भारत में पाए गए चौसठ योगिनी मंदिरों को इसकी प्रेरणा माना जाता है। बताया जा रहा है कि नया संसद भवन बुद्ध की कर्ण मुद्रा पर आधारित है।
83 लाख में बना था संसद भवन
पुराना संसद भवन कुल 83 लाख की लागत से 24,281 वर्गमीटर क्षेत्र में बना था। इसमें लोकसभा के 552 सदस्यों और राज्यसभा के 245 सदस्यों वाले सदनों के साथ ही 436 सीट वाला एक सेंट्रल हॉल भी था। सेंट्रल हॉल संसद भवन में एक महत्वपूर्ण स्थान है जहां विशेष अवसरों पर दोनों सदनों के संयुक्त सत्र आयोजित किए जाते हैं। इसका इस्तेमाल भारत के राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक कार्यों और महत्वपूर्ण अवसरों के लिए भी किया जाता है।
इसके अलावा संसद भवन में कई समिति कक्ष हैं, जहां संसदीय समितियां अपनी बैठकें आयोजित करती हैं और कानून और निरीक्षण से संबंधित विभिन्न मामलों पर चर्चा करती हैं। इसी में पार्लियामेंट लाइब्रेरी भी है, जो संसद भवन का एक अनिवार्य हिस्सा है और सांसदों को संसाधन और रिसर्च सामग्री प्रदान करता है। इसी इमारत में लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति के भी कक्ष हैं। संसद भवन में ही विभिन्न मंत्रियों के अपने आधिकारिक कर्तव्यों और बैठकों को पूरा करने के लिए उनके कक्ष भी हैं। इन विशिष्ट कमरों के अलावा, संसद भवन परिसर के भीतर कार्यालय, वेलकम एरिया, प्रशासनिक स्थान और अन्य सहायक सुविधाएं भी हैं।