राजद्रोह और धारा 152 की समस्याएं… समझें अभिव्यक्ति की आजादी पर बहस क्यों

धारा 124A (राजद्रोह) और धारा 152 (BNS कानून के तहत) दोनों ही कानून देश की शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इनका उपयोग और प्रभाव अलग हैं।

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CHAKRESH
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यह लेख भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 152 और उसके प्रभावों पर आधारित है। हाल ही में महमूदाबाद मामले में इस धारा का विवादित इस्तेमाल हुआ, जिसने देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक बहस, और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के विषय पर बहस छेड़ दी है। विशेष रूप से, यह विषय इसलिए लिखा जा रहा है क्योंकि बीएनएस (ब्रितानी उत्तराधिकारी संहिता) अधिनियम के तहत धारा 152 के प्रयोग से "राजद्रोह" जैसे मुद्दे पर फिर से अत्यधिक कड़क कानून लागू होने लगे हैं, जो आज के लोकतांत्रिक भारत के मूल्यों के विपरीत हैं।

धारा 152: राजद्रोह की एक नई दिक्कत

महमूदाबाद का मामला शायद सही समय पर नहीं उभरा, लेकिन इस बात पर सवाल जरूरी है कि पुलिस ने राजद्रोह की पुरानी आईपीसी की धारा 124A की जगह धारा 152 का इस्तेमाल क्यों किया? दरअसल यह नया कानून पुलिस को ज़्यादा व्यापक अधिकार देता है, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा बढ़ता है।

कुछ दिन पहले, जब सेना के दो बहादुर अफसरों के ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा थी, महमूदाबाद ने सोशल मीडिया पर सवाल उठाए कि क्या

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