New Delhi. चंद्रमा पर भारत के चंद्रयान-3 के कदम रखने के बाद भारतीयों समेत पूरी दुनिया की जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। बुधवार (30 अगस्त) को चंद्रमा अनोखा रंग और विशालता लिए नजर आएगा। रोजाना की तुलना में थोड़ा बड़ा और चमकीला दिखेगा। इस खगोलीय घटना को पूरी दुनिया देखेगी। इस दिन ब्लू सुपरमून का आकार प्रतिदिन की तुलना में 7% बड़ा और 16% अधिक चमकीला दिखाई देगा। इस खास मौके का गवाह बनेगा भारत का ‘प्रज्ञान’ रोवर, जो अभी चांद पर चहलकदमी कर रहा है। ऐसे में हर कोई इस घटना को अपनी आंखों में कैद करना चाहेगा। ब्लू मून कब निकलेगा और इसको कैसे देखना है और यह क्या होता है, जानें सबकुछ...
अगस्त में दो पूर्णिमा
खगोलीय घटना का यह नजारा हर दो या तीन साल में देखने को मिलता है। अगस्त महीने में दो पूर्णिमा होने की वजह से ब्लू मून दिखेगा। पहली पूर्णिमा एक अगस्त को थी और दूसरी पूर्णिमा 30 अगस्त को होगी। 30 अगस्त को आसमान में ब्लू सुपरमून नजर आने वाला है। सुपर ब्लू मून इस साल अब तक दिखाई देने वाला तीसरा सबसे बड़ा चांद होगा।
पृथ्वी के 186 किमी करीब होगा चांद
2018 को ब्लू सुपरमुन के दौरान चंद्रमा पृथ्वी से 3,57,530 किमी की दूरी पर था, जबकि 30 अगस्त को चंद्रमा 3,57,344 किमी और भी करीब होगा।
कब और कितनी बजें देखें ब्लू मून
सूरज ढलने के तुरंत बाद ब्लू सुपरमून देखने की सलाह दी जाती है। उस वक्त यह बेहद खूबसूरत दिखता है। इस बार जिस वक्त ब्लू सुपरमून निकलेगा उस वक्त भारत में दिन होगा। यह अमेरिका में दिखेगा ,इसलिए भारतीय मोबाइल फोन से वीडियो के माध्यम से ब्लू सुपरमून का दीदार कर सकते हैं। 30 अगस्त की रात को 8 बजकर 37 मिनट पर ब्लू मून सबसे ज्यादा चमकदार होगा।
अब देख लो, नहीं तो अब 2037 में ही दिखेगा ऐसा नजारा
इस घटना को अपनी आंखों में कैद करने वाले याद रखें कि ऐसा नजारा कई सालों तक दोबारा देखने को नहीं मिल पाएगा, क्योंकि ब्लू सुपरमून हर दो या तीन साल के बाद ही देखने को मिलता है। अब ऐसी घटना 2037 में देखने को मिल सकती है।
क्या है ब्लू सुपरमून?
अंतरिक्ष में होने वाली खगोलीय घटनाओं के कारण न्यू मून, फुल मून, सुपर मून और ब्लू मून दिखाई देता है। हर दो या तीन साल में दिखने वाला ब्लू मून आकार में थोड़ा बड़ा होता है और इसका रंग भी अलग नजर आता है। जब एक महीने में दो फूल मून निकलते हैं तो दूसरी वाला फुल मून ब्लू मून माना जाता है।
इससे पहले 2018 में दिखा था ब्लू सुपरमून
आखिरी बार ब्लू सुपरमून 2018 में नजर आया था। आसान भाषा में समझें तो अगर एक ही महीने में दो से अधिक पूर्णिमा हैं तो इस साल को मून ईयर कहा जाता है। नासा के अनुसार, चांद सामान्य दिनों की तुलना में ज्यादा चमकीला नजर आता है और ऐसी घटना तभी होती है जब चांद पूरा होता है और इसकी कक्षा पृथ्वी के सबसे निकट होती है।
आखिर क्या है चंद्रमा का असली रंग
सामान्य तौर पर चंद्रमा चांदी के रंग में कुछ हल्का भूरा रंग मिले हुआ दिखाई देता है, लेकिन चंद्रमा कई तरह के शेड्स में दिखाई देता है, जिससे वह कभी पूरी तरह से चमकीला चांदी का, कभी हलका नीला तो कभी केसरिया, पीला, आदि रंग में दिखता है। इसकी वजह में अलग-अलग कोणों से सूर्य से चंद्रमा पर पड़ने वाला प्रतिबिंबित प्रकाश का पृथ्वी तक आना तो है ही, साथ ही पृथ्वी का वायुमंडल तक भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है।
अंतरिक्ष से एक ही रंग का नजर आता चंद्रमा
नासा भी इस बात को मानता है कि चंद्रमा के अलग-अलग रंगों में दिखाई देने के पीछे पृथ्वी का ही वायुमंडल ज्यादा बड़ा कारण है। नासा के अनुसार, चंद्रमा अंतरिक्ष में से कत्थई रंग की मिलावट वाला भूरे रंग का दिखाई देता है। पृथ्वी का वायुमंडल का इस पर बहुत सारे असर डालता है, जिससे चंद्रमा अलग-अलग रंगों का दिखाई देता है।
लाल और पीले रंग का क्या मतलब?
नासा के अनुसार, चंद्रमा जब लाल या फिर पीले रंग का दिखाई दे तो इसका एक ही मतलब होता है कि वह उस समय क्षितिज पर दिख रहा है। ऐसा इसलिए होता है कि नीला रंग वायुमंडल में लंबी दूरी तय करते समय बिखर जाता है, जिससे रोशनी के सफेद रंग मिले हुए अन्य रंगों में से वह गायब होकर चंद्रमा को लालिमा या पीलापन का अहसास दे देता है।
ब्लू रंग का दिखने की यह है वजह
कई बार चंद्रमा नीले रंग (ब्लू रंग) का भी दिखाई देता है, जो बहुत सामान्य बात नहीं है। जब वायुमंडल में धूल के कण ज्यादा होते हैं चंद्रमा आसामान को ही चमकीला बना देता है। ऐसा इसलिए होता है, जब नीले स्पैक्ट्रम से नीला प्रकाश पृथ्वी की सतह पर बिना बिखरे ही सीधा चला आता है और धूल के कारण सफेद रंग में नीलिमा ज्यादा दिखाई पड़ती है।