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Loco Pilot
भारतीय रेलवे के लोको पायलट काफी लंबे समय से ड्यूटी के दौरान ब्रेक की मांग कर रहे हैं। ये ब्रेक वो टॉयलेट और खाना खाने के लिए मांग रहे हैं। लेकिन रेलवे ने उनकी मांग खारिज कर दी है। इसी वजह से रांची में इन पायलट्स की 4 अप्रैल से हड़ताल जारी है। रेलवे में काम करने वाली महिला लोको पायलट्स को इंजन में वॉशरूम सुविधा नहीं दी गई है। रांची डिवीजन की एक सीनियर लोको पायलट बताती हैं कि पीरियड्स के दौरान ज्यादा दिक्कत होती है। बिना सैनिटरी नैपकिन बदले 8-10 घंटे तक काम करना पड़ता है। कुछ महिला कर्मचारी इंजन में छिपकर नैपकिन बदलती हैं, लेकिन अब वहां भी कैमरे लगा देने से प्राइवेसी पर सवाल उठ रहे हैं।
ब्रेक देना संभव नहीं
रेलवे ने पिछले साल जुलाई में इनकी मांगों को देखने के लिए एक कमेटी बनाई थी, जिसको एक महीने में रिपोर्ट देनी थी। कमेटी ने अप्रैल 2025 में रिपोर्ट दी। लोको पायलट की माँगों को खारिज करते हुए कहा है कि सेफ्टी और टाइमिंग के कारण ब्रेक देना संभव नहीं है। एक मामला इंजन में कैमरे लगाने का भी था। प्राइवेसी का हवाला देकर लोको पायलट इसका विरोध कर रहे थे। कमेटी ने इसे खारिज करते हुए कहा है कि ये प्राइवेसी का उल्लंघन नहीं है।
मेल ड्राइवर्स भी हैं परेशान
लखनऊ डिवीजन के अनुभवी लोको पायलट संतोष सिंह कहते हैं- यूरिन रोकने से किडनी पर असर होता है। हम इंसान हैं, रोबोट नहीं। सियालदह के एक लोको पायलट ने थकान से ट्रेन रोक दी, तो उन्हें चार्जशीट दी गई और सालभर सैलरी नहीं बढ़ी।
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लोकोमोटिव में टॉयलेट होना जरूरी
ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन का कहना है कि लोको पायलट 12-13 घंटे काम करते हैं और उन्हें सिर्फ 30 घंटे का वीकली रेस्ट मिलता है। वे 10 मिनट के ब्रेक की मांग कर रहे हैं। वंदे भारत ट्रेन के क्रिएटर सुधांशु मणि मानते हैं कि लोकोमोटिव में टॉयलेट होना चाहिए, लेकिन ब्रेक के लिए ट्रेन शेड्यूल बदलना व्यावहारिक नहीं है।
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ये हो सकती हैं समस्याएं
- यूरिन रोकने से किडनी में संक्रमण
- लंबे समय तक बैठने से नसों में खिंचाव
- प्रेग्नेंसी में ड्यूटी से मातृत्व स्वास्थ्य पर खतरा
- मानसिक तनाव और अवसाद