साल 1975 की 25 जून की आधी रात को देश में आपातकाल लगा था। देश में विपक्ष लगातार इंदिरा गांधी की सरकार पर हमलावर हो रहा था। गुजरात और बिहार की विधानसभाएं भंग की जा चुकी थीं। क्या सिर्फ इस वजह से ही देश पर इमरजेंसी थोपी गई थी, तो इसका जवाब पूरी तरह हां नहीं है। दरअसल, बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि इंदिरा गांधी को डर था कि उनकी सरकार का तख्तापलट किया जा सकता है। कौन कर सकता था ऐसा, तो इसका जवाब है अमेरिका।
भारत को एक 'शॉक ट्रीटमेंट' की जरूरत
दरअसल, इंदिरा गांधी का कहना था कि वो अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की हेट लिस्ट में सबसे ऊपर हैं। और उन्हें डर है कि कहीं उनकी सरकार काे भी सीआईए की मदद से हटाया जा सकता है, जिस प्रकार की अमेरिका ने चिली के राष्ट्रपति सालवडोर अयेंदे की सरकार का तख्ता पलट दिया था।
बाद में एक इंटरव्यू में भी इंदिरा ने स्वीकार किया किया कि भारत को एक 'शॉक ट्रीटमेंट' की जरूरत थी। खास बात यह है कि उन्होंने तब तक अपने कानून मंत्री एचआर गोखले से इस बारे में कोई सलाह मशविरा नहीं किया था।
25 जून 1975 की सुबह क्या-क्या हुआ
बीबीसी हिंदी के अनुसार 25 जून 1975 की सुबह पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के फोन की घंटी बजी। उस समय वह दिल्ली में ही बंग भवन में रुके हुए थे।
Indira Gandhi ने राय से कहा कि वो आपातकाल लगाने से पहले मंत्रिमंडल के सामने इस मामले को नहीं लाना चाहतीं। इस पर राय ने उन्हें सलाह दी कि वो राष्ट्रपति से कह सकतीं हैं कि मंत्रिमंडल की बैठक बुलाने के लिए पर्याप्त समय नहीं था।
इंदिरा ने सिद्धार्थ शंकर राय से कहा कि वो इस प्रस्ताव के साथ राष्ट्रपति के पास जा। गांधी और राय दोनों शाम साढ़े पांच बजे राष्ट्रपति भवन पहुंचे। सारी बात फखरुद्दीन अली अहमद को समझाई गईं। उन्होंने इंदिरा से कहा कि आप इमरजेंसी के कागज़ भिजवाइए।
जब राय और इंदिरा वापस 1 सफदरजंग रोड पहुंचे तब तक अंधेरा घिर आया था। राय ने इंदिरा के सचिव पीएन धर को ब्रीफ किया। धर ने अपने टाइपिस्ट को बुला कर आपातकाल की घोषणा के प्रस्ताव को डिक्टेट कराया। सारे कागजों के साथ आर के धवन राष्ट्रपति भवन पहुंचे और इस तरह आपातकाल को मंजूरी मिली।