Bangladesh news
बांग्लादेश में तख्तापलट और हिंसा के माहौल के बीच नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार को चीफ एडवाइजर चुन लिया गया है। राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह फैसला लिया गया। शेख हसीना के इस्तीफे और देश छोड़ने के लिए एक प्रमुख कारण इन्हें भी माना जा रहा है। मो. यूनुस पूर्व पीएम शेख हसीना के धुर विरोधी कहे जाते हैं। पड़ोसी देश बांग्लादेश में इतना बड़ा खेला होने बाद मो. यूनुस का नाम बेहद चर्चा में है। जानें कौन है अंतरिम सरकार के चीफ एडवाइजर बनाए गए मोहम्मद यूनुस...
जानें कौन हैं गरीबों के बैंकर मो. यूनुस
बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार के मुखिया चुने गए मोहम्मद यूनुस ग्लोबल माइक्रोक्रेडिट आंदोलन के जनक कहे जाते हैं। 'गरीबों के बैंकर' कहे जाने वाले मो. यूनुस और उनके स्थापित ग्रामीण बैंक को 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। दरअसल, उन्होंने ग्राणीण क्षेत्रों के गरीबों को 100 डॉलर से कम के छोटे-छोटे कर्ज दिलाकर लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद की थी, इन लोगों को बड़े बैंकों से मदद नहीं मिल रही थी।
देश में लोगों की गरीबी देख छोड़ा दिया पढ़ाना
सोशल वर्कर और अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस का जन्म अविभाजित भारत (अंग्रेजी शासन काल) में 28 जून 1940 को हुआ था। यूनुस का जन्म बंगाल के चिटगांव में जौहरी हाजी मोहम्मद शौदागर के घर हुआ था। ढाका यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र की पढ़ाई के बाद अमेरिका चले गए। जहां उन्होंने पीएचडी करने के बाद इकोनॉमिक्स के टीचर बन गए। इसके बाद वे बांग्लादेश की आजादी के बाद वतन लौट आए। यहां उन्हें चिटगांव यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र विभाग का प्रमुख बनाया गया। इस समय के हालात ठीक नहीं थे। 1971 की जंग के बाद बांग्लादेश के लाखों लोग भुख और गरीबी से लड़ रहे थे।
देश के हाताल और गरीबी से जूझते लोगों को देखकर यूनुस ने इकोनॉमिक्स पढ़ाना छोड़ दिया इतना ही नहीं उन्होंने इसे फिजूल भी बताया। इसके बाद उन्होंने गरीबों की मदद के लिए कोई बेहतर तरीका खोजने का विचार किया। साथ ही वे अपने आसपास के गांवों में जाने लगे लगे और लोगों की भलाई के लिए मौका ढूंढने लगे।
गांव की महिला को दिया था कर्ज
बांग्लादेश मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक गांव के भ्रमण के दौरान यूनुस ने झोपड़ी के बाहर बांस की टेबल बना रही एक महिला को देखा था, उन्होंने महिला से बात कि पता चला कि उसने सूदखोर से 500 टका (बांग्लादेशी रुपए) कर्ज लिया है। साथ ही बताया कि सूदखोर ने इस टेबल को किसी बाजार में नहीं बेचने की शर्त रखी है। सूदखोर ही अपने मन के मुताबिक रेट पर टेबल खरीदता और बेचता है। जिस पर यूनुस ने कहा कि ये बिजनेस नहीं गुलामी है, सूदखोर ने कर्ज देकर हुनर खरीद लिया है।
1983 में ग्रामीण बैंक की स्थापना
इसके बाद यूनुस ने महिला को 500 टका दिए और सूदखोर का कर्ज चुकाने के लिए, इसके बाद यूनुस ने महिलाओं की मदद के लिए बेहतर आयडिया निकाला और 42 महिलाओं के मसूह को लोन दिया। जिसे माइक्रोक्रेडिट नाम दिया। इसकी खासियत यह थी कर्ज के लिए महिलाओं कोई सिक्योरिटी जमा नहीं करानी पड़ती थी। इसके बाद इन महिला समूह ने जल्द ही कर्ज लौटा दिया। इस सिस्टम की सफलता के बाद ही मोहम्मद यूनुस ने साल 1983 में बांग्लादेश में ग्रामीण बैंक की नींव रखी गई। रिपोर्टस के अनुसान ग्रामीण बैंक पिछले 40 साल 1 करोड़ से ज्यादा गरीबों को 4.3 लाख करोड़ टका (3.1 लाख करोड़ भारतीय रुपए) से ज्यादा का लोन दे चुका है। लोन लेने वालों में ज्यादातर महिलाएं हैं। ग्रामीण बैंक की सफलता के बाद इसे अन्य देशों ने भी अपनाया। इस मॉडल को अपनाने वाले देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका भी शामिल हैं।
गरीबों का दोस्त बने गए मो. यूनुस
ग्रामीण बैंक की स्थापना और लोगों को गरीबी दूर करने के लिए अपनाए गए मॉडल के सफलता के बाद मोहम्मद यूनुस को ‘गरीबों का दोस्त’ और ‘गरीबों का बैंकर’ के नाम से पहचाना जाने लगा। बांग्लादेश में गरीबी मिटाने में योगदान के लिए साल 2006 में ग्रामीण बैंक और मोहम्मद यूनुस को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
2007 में बनाई अपनी पॉलिटिकल पार्टी
अब नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित मो. यूनुस ने राजनीति में उतरने का मन बनाया और
18 फरवरी 2007 को नागरिक शक्ति नाम की पॉलिटिकल पार्टी बनाई। साथ ही उन्होंने अपनी पार्टी में साफ सुधरी छवि वाले लोगों को ही शामिल करने का विचार किया। यूनुस ने 2008 में चुनाव लड़ने इरादा किया था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
नई पार्टी बनाने के बाद ग्रामीण बैंक से जुड़े मोहम्मद यूनुस पर बैंक को छोड़ने का दबाव बनने लगा। उनकी नागरिक शक्ति पार्टी में राजनीति से जुड़े लोगों के नहीं होने के कारण वजह पार्टी कोई खास अपील नहीं कर पा रही थी। इस बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना नाराज हो गईं, शेख हसीना ने मो. यूनुस पर गरीबों का खून चूसने का आरोप भी लगाया। साथ ही राजनीति के लिए खतरा बताया। इसके बाद पार्टी बनाने के सिर्फ 76 दिन बाद 3 मई को यूनुस ने पार्टी को अलविदा कह दिया। इसके बाद भी शेख हसीना उन्हें दुश्मन मानती रहीं। इसके बाद यूनुस के बुरे दिन शुरू हो गए। साथ ही यूनुस के पीछे जांच एजेंसी लगा दी गई। 2011 में शेख हसीना की सरकार ने उन्हें ग्रामीण बैंक के प्रमुख के पद से हटा दिया। तब लोगों ने सरकार के इस फैसले का विरोध किया था।
श्रम कानून के उल्लंघन के लिए हुई थी जेल
इस दौरान यूनुस पर सरकार की जानकारी में लाए विदेशों से पैसा लेने और टेलीकॉम नियम तोड़ने के आरोप लगाए गए। अब उन पर हमले होने लगे। जान से मारने की धमकी भी मिली। इसी साल जनवरी में यूनुस को श्रम कानून तोड़ने के मामले में छह महीने की जेल की सजा हुई थी। जून में बांग्लादेश की एक अदालत ने यूनुस और 13 अन्य लोगों पर उनकी टेलीकॉम कंपनी के स्टाप के कल्याण कोष के गबन के आरोप में मुकदमा भी चलाया था।
साल 2012 में विश्व बैंक से पद्मा (गंगा) नदी पर ब्रिज निर्माण के लिए चंदा देने से इनकार कर दिया। जिसके बाद नाराज हसीना ने कहा था यूनुस ने अपने संबंधों का इस्तेमाल कर वर्ल्ड बैंक को गुमराह किया। इतना ही नहीं शेख हसीना ने यूनुस को विदेशी ताकतों की कठपुतली बताया था। देश में जब भी कुछ गलत होता तो वे इसका आरोप मो. यूनुस पर लगातीं।
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