ISRO सप्ताहभर में लॉन्च कर सकता है सोलर मिशन, सूर्य-पृथ्वी के लैग्रेंजियन पॉइंट पर सूर्य पर उठने वाले तूफानों को समझेगा आदित्य L1

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Pratibha Rana
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ISRO सप्ताहभर में लॉन्च कर सकता है सोलर मिशन, सूर्य-पृथ्वी के लैग्रेंजियन पॉइंट पर सूर्य पर उठने वाले तूफानों को समझेगा आदित्य L1

Bangalore. चंद्रयान-3 की चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के बाद भारत एक और इतिहास रचने को तैयार है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब सूर्य के अध्ययन के लिए एक हफ्ते के अंदर यानी दो सितंबर को सौर मिशन आदित्य एल-1 को लॉन्च करने जा रहा है। यह जानकारी सौर अभियान में शामिल आईआईटी बीएचयू के भौतिक विज्ञानी डॉ. अभिषेक श्रीवास्तव ने दी है। 



मिशन को लेकर स्पेस एप्लिकेशन सेंटर अहमदाबाद के निदेशक नीलेश एम देसाई ने जानकारी दी है कि आदित्य एल-1 सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली स्पेस बेस्ड इंडियन लेबोरेट्री होगी। इसे सूर्य के चारों ओर बनने वाले कोरोना के रिमोट ऑब्जर्वेशन के लिए डिजाइन किया गया है। आदित्य यान, L1 यानी सूर्य-पृथ्वी के लैग्रेंजियन पॉइंट पर रहकर सूर्य पर उठने वाले तूफानों को समझेगा। यह पॉइंट पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है। यहां तक पहुंचने में इसे करीब 120 दिन यानी 4 महीने लगेंगे।



स्पेस पोर्ट पर पहुंचा सैटेलाइट, तैयारी तेज



आदित्य यान लैग्रेंजियन पॉइंट के चारों ओर की कक्षा, फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर के अलावा सबसे बाहरी परत कोरोना की अलग-अलग वेब बैंड्स से 7 पेलोड के जरिए टेस्टिंग करेगा। यूआर राव सैटेलाइट सेंटर में तैयार किया गया ये सैटेलाइट दो हफ्ते पहले आंध्रप्रदेश में इसरो के श्रीहरिकोटा स्थित स्पेस पोर्ट पर पहुंच चुका है।



पूरी तरह स्वदेशी है आदित्य L1



इसरो के एक अधिकारी के अनुसार, आदित्य L1 देश की संस्थाओं की भागीदारी से बनने वाला पूरी तरह स्वदेशी प्रयास है। बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ ने इसके पेलोड बनाए हैं, जबकि इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स पुणे ने मिशन के लिए सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजर पेलोड विकसित किया है। यूवी पेलोड का इस्तेमाल कोरोना और सोलर क्रोमोस्फीयर पर, जबकि एक्स-रे पेलोड का इस्तेमाल सूर्य की लपटों को देखने के लिए किया जाएगा। पार्टिकल डिटेक्टर और मैग्नेटोमीटर पेलोड, चार्ज्ड पार्टिकल के हेलो ऑर्बिट तक पहुंचने वाली मैग्नेटिक फील्ड के बारे में जानकारी देंगे।



मौसम पर पड़ने वाले प्रभावों का करेगा अध्ययन



डॉ. श्रीवास्तव इसरो द्वारा गठित ‘आदित्य एल-1 स्पेस वेदर मॉनिटरिंग एंड प्रीडिक्शन’ समिति के भी सदस्य हैं। यह समिति आदित्य एल-1 द्वारा भेजे जाने वाले आंकड़ों का अंतरिक्ष के मौसम पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करेगी। सौर मिशन में शामिल आईआईटी बीएचयू के भौतिक शास्त्री डा. बीबी कारक सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के उद्भव, सूर्य के चुंबकीय वातावरण में होने वाले भौतिकीय और गतिकीय प्रभावों का अध्ययन करेंगे।



सूर्य को बिना किसी ग्रहण के लगातार देख सकेगा ‘आदित्य’



इसरो के आदित्य यान को सूर्य और पृथ्वी के बीच ‘हेलो ऑर्बिट’ में स्थापित किया जाएगा। इसरो का कहना है कि L1 पॉइंट के आसपास हेलो ऑर्बिट में रखा गया सैटेलाइट सूर्य को बिना किसी ग्रहण के लगातार देख सकता है। इससे रियल टाइम सोलर की गतिविधियां और अंतरिक्ष के मौसम पर भी नजर रखी जा सकेगी। उम्मीद की जा रही है कि आदित्य L1 के पेलोड कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर एक्टिविटीज की विशेषताओं, पार्टिकल्स की मूवमेंट और स्पेस वैदर को समझने के लिए हर जानकारी दे सकेगा। 



क्या मिलेगा आदित्य एल-1 से



डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार, आदित्य एल-1 से सौर मंडल के ऊपरी हिस्से और सूर्य के भीतर की गतिविधियों के अध्ययन में मदद मिलेगी। सौर गतिविधियों का पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभाव, मौसम में बदलावों आदि के के बारे में अधिक जानकारियां जुटाई जा सकेंगीं। आदित्य एल-1 का निर्माण यूआर राव उपग्रह केंद्र, बेंगलुरु में किया गया है। यह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र पर पहुंचा दिया गया है और सितंबर के प्रथम सप्ताह यानी 2 सितंबर को प्रक्षेपित किया जा सकता है।



अब तक कुल 22 सूर्य अभियान किए गए 



आदित्य एल-1 से पहले अमेरिका, जर्मनी और यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने कुल 22 सूर्य अभियान भेजे हैं। नासा ने 1960 में पहला सूर्य मिशन पायनियर-5 भेजा था। जर्मनी ने 1974 में पहला सूर्य मिशन नासा के साथ भेजा था। यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने भी 1994 में अपना पहला सूर्य मिशन नासा के साथ भेजा था। जहां इन देशों ने नासा और अन्य देशों के साथ मिलकर सौर अभियान भेजा था, वहीं भारत अपना पहला सौर मिशन अपने दम पर भेज रहा है।


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