इसरो ने घटाई चंद्रयान-3 की ऑर्बिट, चांद के और करीब पहुंचा चंद्रयान-3, सबसे कम दूरी 150 किमी, 23 अगस्त को होनी है लैंडिंग

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Chandresh Sharma
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इसरो ने घटाई चंद्रयान-3 की ऑर्बिट, चांद के और करीब पहुंचा चंद्रयान-3, सबसे कम दूरी 150 किमी, 23 अगस्त को होनी है लैंडिंग

BANGALORE. चंद्रयान-3 मिशन के तहत इसरो ने 14 अगस्त को चंद्रयान-3 की एक बार फिर ऑर्बिट घटा दी है। अब चंद्रयान-3 150 किमी x 170 किमी की ऑर्बिट में आ पहुंचा है। मतलब चंद्रयान चांद की ऐसी ऑर्बिट में पहुंच गया है, जिसमें उसकी चांद से सबसे कम दूरी 150 किमी और सबसे ज्यादा दूरी 177 किमी रह गई है। 



ऑर्बिट सर्कुलराइजेशन फेज हुआ शुरु



इसरो के इस कदम के बाद चंद्रयान-3 का ऑर्बिट सर्कुलराइजेशन फेज शुरु हो चुका है। चंद्रयान अब अंडाकार कक्षा से गोलाकार कक्षा में आना प्रारंभ कर चुका है। 16 अगस्त की सुबह इसरो अगला ऑपरेशन परफॉर्म करेगा। इस ऑपरेशन में इसरो के हेडक्वार्टर बेंगलुरु से अंतरिक्ष विज्ञानी चंद्रयान के थ्रस्टर को फायर कर उसे 100 किमी x 100 किमी की गोलाकार कक्षा में ले आएंगे। 



17 अगस्त को अलग होगा लैंडर



इससे पहले 9 अगस्त को चंद्रयान की ऑर्बिट घटाई गई थी, जिसके बाद चंद्रयान 174 किमी x 1437 किमी की ऑर्बिट में पहुंचा था। बता दें कि 17 अगस्त का दिन चंद्रयान-3 मिशन के लिए काफी अहम दिन है। 17 अगस्त को इसरो चंद्रयान के प्रोपल्शन मॉड्यूल को लैंडर से अलग करेगा। जिसके बाद 23 अगस्त की शाम साढ़े 5 बजे लैंडर चांद की सतह पर लैंड करेगा। इससे पहले 5 अगस्त को 22 दिन के सफर के बाद चंद्रयान शाम सवा सात बजे चंद्रमा की पहली ऑर्बिट में पहुंचा था। 



चंद्रयान ने भेजा था मैसेज, चांद की ग्रेविटी हो रही है महसूस



चंद्रयान ने जब पहली बार चंद्रमा की ऑर्बिट में प्रवेश किया था, उस वक्त उसके ऑनबोर्ड कैमरों ने चांद की तस्वीरें भी ली थीं। इसरो ने अपनी वेबसाइट पर इसका एक वीडियो बनाकर शेयर किया है। जिनमें चंद्रमा के क्रेटर्स साफ-साफ दिख रहे हैं। ऑर्बिट में प्रवेश करने से पहले चंद्रयान ने मैसेज भेजा था ‘ मैं चंद्रयान-3 हूं...मुझे चांद की ग्रैविटी महसूस हो रही है। 



लैंडर और रोवर 14 दिन तक करेंगे प्रयोग



चंद्रयान-3 का लैंडर 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। लैंडर और रोवर चांद के दक्षिणी धु्रव पर उतरेंगे और 14 दिनों तक प्रयोग करेंगे। प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रमा की कक्षा में ही रहेगा और धरती से आने वाले रेडिएशन्स की स्टडी करेगा। इस अभियान के जरिए इसरो चांद पर पानी की खोज के साथ-साथ यह भी पता लगाए कि चांद की सतह पर भूंकप कैसे आते हैं। 


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