जस्टिस नागरत्ना बोलीं : काश! पुरुषों को माहवारी होती, तब वे समझ पाते

देश-दुनिया। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटिस्वर सिंह की डबल बेंच ने कहा, यह कहना आसान है 'बर्खास्त-बर्खास्त' और घर चले जाओ। हम इस मामले की लंबी सुनवाई कर रहे हैं। क्या वकील कह सकते हैं कि हम धीमे हैं...

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Jitendra Shrivastava
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NEWDELHI. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 3 दिसंबर को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा राज्य की महिला सिविल जजों की सेवा समाप्त करने और कुछ को फिर से बहाल करने से इनकार करने पर कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि जजों की मानसिक और शारीरिक स्थिति को नजरअंदाज करके उनके मामलों की निपटान दर पर आधारित फैसला लेना सही नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटिस्वर सिंह की डबल बेंच ने कहा, यह कहना आसान है 'बर्खास्त-बर्खास्त' और घर चले जाओ। हम इस मामले की लंबी सुनवाई कर रहे हैं। क्या वकील कह सकते हैं कि हम धीमे हैं? खासकर महिलाओं के लिए, यदि वे मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान हैं तो उन्हें धीमा कहकर घर भेजना ठीक नहीं है। पुरुष और महिला जजों के लिए एक समान मानक होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी पूछा कि जिला न्यायपालिका के लिए मामले निपटाने का कोई टार्गेट कैसे तय किया जा सकता है? सुनवाई के दौरान जस्टिस बीवी नागरत्ना ने तल्ख टिप्पणी की। उन्होंने कहा, "काश! पुरुषों को माहवारी होती, तब वे समझ पाते।" अब इस मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने लिया था स्वत: संज्ञान 

सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया था, जब मध्यप्रदेश सरकार ने जून 2023 में छह जजों को बर्खास्त कर दिया था। यह निर्णय हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति और पूर्ण कोर्ट की बैठक के बाद लिया गया था, जिसमें जजों के प्रदर्शन को असंतोषजनक बताया गया था। फरवरी में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से पूछा था कि क्या वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को तैयार है। फिर जुलाई में शीर्ष अदालत ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट से कहा कि वह प्रभावित जजों की पुनः याचिकाओं पर एक महीने के भीतर विचार करे।

दो जजों को नहीं किया था बर्खास्त 

23 जुलाई 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट को जजों की बर्खास्तगी पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया था। इसके बाद 1 अगस्त 2023 को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने चार जजों को कुछ शर्तों के साथ बहाल करने का फैसला लिया। ये जज ज्योति वर्गड़े, सोनाक्षी जोशी, प्रिया शर्मा और रचना अतुलकर जोशी थीं। हालांकि, जज सरिता चौधरी और अदिति कुमार शर्मा के मामले में पहले के आदेश को रद्द नहीं किया गया। इन दोनों जजों के मामले को सुप्रीम कोर्ट के सामने सीलबंद रिपोर्ट के रूप में पेश किया गया।

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