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साल 1925 में हुई काकोरी ट्रेन लूट भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। उस समय स्वतंत्रता सेनानियों ने ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूट कर शहादत की एक मिसाल कायम की। हाल ही में इस घटना को आधिकारिक रूप से "काकोरी ट्रेन एक्शन" नाम दिया गया है।
9 अगस्त 1925 की शाम, लखनऊ के पास काकोरी रेलवे स्टेशन के समीप युवा क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ धन जुटाने के उद्देश्य से एक साहसिक ट्रेन डकैती को अंजाम दिया। उस दिन उन्होंने सरकारी खजाना लूट लिया लेकिन इस घटना के कुछ ऐसे पहलू भी हैं जो आम जनता के सामने ज्यादा नहीं आए हैं। आइए जानें...
काकोरी ट्रेन एक्शन
स्वतंत्रता सेनानी अशफाक उल्लाह खान के वंशजों ने बताया कि जब क्रांतिकारियों ने लूटा गया संदूक उठाया, तो उसमें रखे 46 सौ रुपए की राशि उनके लिए बहुत बड़ी थी जो उस वक्त भारी मात्रा मानी जाती थी। हालांकि संदूक बहुत मजबूत था, जिसे अशफाक उल्लाह खान ने हथौड़े से दो वार कर तोड़ दिया।
उन्होंने हंसी के साथ कहा कि यह ताला तोड़ पाना बिना मांसाहारी भोजन के संभव नहीं था क्योंकि उनके साथी शाकाहारी थे। काकोरी ट्रेन एक्शन के इस साहसिक प्रयास में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, ठाकुर रोशन सिंह जैसे क्रांतिकारी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे।
उस समय 46 सौ रुपए की रकम आज के हिसाब से लगभग 11 लाख रुपए के बराबर मानी जा सकती है। दिलचस्प बात यह है कि यह डकैती शुरू से 9 अगस्त के लिए नहीं बल्कि 8 अगस्त के लिए योजना बनाई गई थी, लेकिन बाद में इसे एक दिन आगे बढ़ा दिया गया।
रेलवे पर गहरा असर
काकोरी कांड का रेलवे पर गहरा असर पड़ा। पहले लूट के बाद से करीब नौ दशकों तक रेलवे में नकदी के लिए लोहे के संदूकों का इस्तेमाल लगातार होता रहा, जिसे 2018 में बदल दिया गया।
इस ऐतिहासिक घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने क्रांतिकारियों रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई।
साल 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस घटना का नाम आधिकारिक तौर पर "काकोरी ट्रेन एक्शन" कर दिया। यह घटना आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में साहस, बलिदान और आजादी की लड़ाई का प्रतीक मानी जाती है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है।
क्रांतिकारियों का साहसिक कदम
9 अगस्त 1925 की शाम लखनऊ के पास काकोरी (Kakori Case) में भारतीय क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध धन जुटाने के लिए सरकारी खजाना लूटने की योजना बनाई।
इस घटना को काकोरी ट्रेन एक्शन (Kakori Train Action) कहा जाता है। क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान, रामप्रसाद बिस्मिल और अन्य साथियों ने इस मिशन को अंजाम दिया।
अज्ञात घटनाएं और रोचक प्रसंग
अशफाक उल्ला खान के परपोते ने बताया कि 46 सौ रुपए से भरे संदूक को तोड़ना आसान नहीं था। भारी और मजबूत ताले को हथौड़े से तोड़ते समय क्रांतिकारियों की जान जोखिम में पड़ गई। ताला टूटने के बाद अशफाक उल्ला खान ने मजाक में कहा कि यह काम केवल पूरी-सब्जी खाने वालों के लिए संभव है।
काकोरी ट्रेन एक्शन का महत्व
ऐतिहासिक प्रभाव
यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अहम मोड़ थी। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने 1927 में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दे दी।
रेलवे पर पड़ा असर
काकोरी ट्रेन एक्श (kakori kand) के बाद रेलवे में नकदी ले जाने की प्रक्रिया बदल गई। लोहे के बक्सों में नकदी ले जाने की परंपरा 2018 में समाप्त हुई। इसके बाद भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India) के कर्मचारी नकदी ले जाने लगे।
घटना का बैकग्राउंड
प्रारंभिक योजना
डकैती (काकोरी केस) की योजना पहले 8 अगस्त के लिए बनाई गई थी लेकिन बाद में इसे 9 अगस्त के लिए बदल दिया गया। लूटे गए 46 सौ रुपए उस समय बड़ी रकम थी, जो आज के हिसाब से लगभग 11 लाख रुपए के बराबर है।
नाम में बदलाव
साल 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसका आधिकारिक नाम काकोरी ट्रेन एक्शन (Kakori Train Action) कर दिया। इससे पहले इसे ‘काकोरी ट्रेन डकैती’ और ‘काकोरी ट्रेन षड्यंत्र’ कहा जाता था।
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