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Bangalore. अपने जीवन के 75 बसंत पार कर चुके सिद्धारमैया एक बार फिर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। वे इससे पहले साल 2013 में राज्य के सीएम बने थे। उनके राज्य के मुखिया बनने का सफर काफी संघर्ष से भरा और दिलचस्प है। उनके पिता एक किसान थे, उनके गांव में परंपरा थी कि जो भी किसान सिद्धरामेश्वर या शिव मंदिर की जमीन पर खेती करता है, उसे अपना एक बेटा मंदिर के वीरा मक्कलू अर्थात बहादुर बच्चे के रूप में दान देना पड़ता है। सिद्धारमैया के पिता ने भी उन्हें मंदिर को सौंपा था, जहां से उन्हें उनका यह नाम भी मिला।
वकालत भी कर चुके हैं
सिद्धारमैया ने मैसूर विश्वविद्यालय से बीएससी और एलएलबी की है। इसके बाद उन्होंने जूनियर वकील के रूप में काम भी किया। वे कॉलेज के दिनों से ही अच्छे वक्ता थे, वरिष्ठ वकील ननजुडा स्वामी ने उन्हें उनकी इस प्रतिभा के चलते मैसूर तालुका से चुनाव लड़ने की सलाह दी, साल 1983 में उन्होंने भारतीय लोकदल पार्टी से पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और 36 साल की उम्र में विधायक चुने गए। सिद्धारमैया अपने राजनैतिक जीवन में 12 बार चुनाव लड़ चुके हैं, जिनमें से उन्होंने 9 चुनाव में जीत हासिल की।
समाजवादी विचारधारा से थे प्रभावित
सिद्धारमैया शुरुआत से ही राममनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित थे, उन्होंने अपना आधा जीवन समाजवादी विचारधारा को ही दिया। वे जनता दल यूनाइटेड में रहे और उपमुख्यमंत्री भी बने। बाद में देवगौड़ा से अनबन के चलते उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। इसके बाद वे साल 2013 में कांग्रेस की ओर से कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने।
10 साल की उम्र तक नहीं गए थे स्कूल
मंदिर में सौंपे जाने के चलते सिद्धारमैया 10 साल की उम्र तक स्कूल नहीं जा पाए थे, हालांकि इस दौरान उन्होंने मंदिर में ही दो साल तक लोककला सीखी। सीधे 5वीं कक्षा में स्कूल में प्रवेश लिया। इनकी पत्नी पार्वथी सिद्धारमैया हैं। बड़े बेटे की मल्टिपल ऑर्गन फेलियर के चलते 39 साल की उम्र में मौत हो गई थी। जबकि छोटे बेटे यतींद्र उन्हीं की तरह राजनीति में हैं।