जानें करवा चौथ की कथा और पूजन विधि

करवा चौथ हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है और कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। आइए आपको बताते हैं कि करवा चौथ की पूजन विघि क्या है। इसी के साथ जानें करवा चौथ की कथा।

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Dolly patil
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 करवा चौथ
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करवा चौथ हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है और कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। इस दिन, विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन को बनाए रखने के लिए निर्जला व्रत रखती हैं जिसका पारण चांद निकलने पर किया जाता है। 

करवा चौथ का महत्व

मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत सबसे पहले देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ के लिए रखा था। इसके अलावा कहा जाता है कि द्रौपदी ने भी पांडवों को संकट से मुक्ति दिलाने के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था। करवा चौथ का व्रत विवाह के 16 या 17 सालों तक करना अनिवार्य माना जाता है। करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है।

करवा चौथ की तिथि 

इस साल चतुर्थी तिथि 20 अक्टूबर 2024 यानी आज के दिन सुबह 6 बजकर 46 मिनट के बाद शुरू होगी और इसका समापन 21 अक्टूबर 2024 को सुबह 4 बजकर 16 मिनट पर होगा। 

Karva Chauth पर ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 44 मिनट से लेकर सुबह 5 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त का समय सुबह 11 बजकर 43 मिनट से लेकर 12 बजकर 28 मिनट तक रहेगा। विजय मुहूर्त का समय शाम 1 बजकर 59 से लेकर 2 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। 

चंद्रोदय का समय

Karva Chauth पर चांद निकलने का समय 20 अक्टूबर को रात 07 बजकर 54 मिनट पर बताया जा रहा है। हालांकि, देश के अलग-अलग राज्यों और शहरों में चांद दिखने का समय इससे थोड़ा अलग हो सकता है।

करवा चौथ पूजन विधि और सामग्री

Karva Chauth के दिन स्नान आदि के बाद करवा चौथ व्रत और चौथ माता की पूजा का संकल्प लेते हैं। फिर अखंड सौभाग्य के लिए निर्जला व्रत रखा जाता है। पूजा के लिए 16 श्रृंगार करते हैं। फिर पूजा के मुहूर्त में चौथ माता या मां गौरी और गणेश जी की विधि विधान से पूजा करते हैं। पूजा के समय उनको गंगाजल, नैवेद्य, धूप-दीप, अक्षत, रोली, फूल, पंचामृत आदि अर्पित करते हैं. दोनों को श्रद्धापूर्वक फल और हलवा-पूरी का भोग लगाते हैं। इसके बाद चंद्रमा के उदय होने पर अर्घ्य देते हैं और उसके बाद पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत का पारण करते हैं। 

 सरगी खाने से होती है शुरुआत

करवा व्रत की शुरुआत हमेशा सरगी खाने से होती है, जो सूर्योदय से करीब दो घंटे पहले खाई जाती है। आइए अब आपको बताते हैं कि सरगी क्या होती है। 

क्या है सरगी

सरगी ( Sargi ) सास की ओर से अपने बेटे की पत्नी के लिए आशीर्वाद और प्यार का प्रतीक है। Karva Chauth सरगी एक भोजन है जो सुबह व्रत शुरू करने से पहले खाया जाता है।  सरगी थाली में बहुत सी चीजें होती हैं जो कि सास द्वारा तैयार की जाती है और बहू को देती हैं। फिर दोनों एक साथ बैठकर सरगी खाती हैं। 

Karva Chauth की सरगी में क्या-क्या होता है

  • सरगी में मीठे और नमकीन व्यंजन शामिल होते हैं। सरगी थाली में
  • फेनी
  • मीठी सेवइयां
  • साबूदाना की खीर
  • फल जैसे सेब, संतरा, अनार और केले
  • नारियल और खीरा जैसे पानी से भरपूर चीजें
  • मीठी मठरी
  • ड्राई फ्रूट्स
  • पराठा
  • मिठाई, चाय और जूस

FAQ

क्या है करवा चौथ की कथा ?
Karva Chauth के व्रत पर करवा चौथ की कथा की अलग मान्यता होती है। ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ की कथा के बिना करवा चौथ का व्रत पूर्ण नहीं होता है। प्राचीन काल में एक साहूकार हुआ करते थे। साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। 1 दिन साहूकार की सातों बहू और बेटी ने Karva Chauth का व्रत रखा। शाम को जब साहूकार और उसके बेटे खाना खाने आए तो उनसे अपनी बहन को भूखा नहीं देखा गया, उन्होंने अपनी बहन को भोजन करने के लिए बार-बार अनुरोध किया लेकिन बहन ने कहा कि मैं चंद्रमा को देखे बिना और उसकी पूजा किए बिना खाना नहीं खाऊंगी। ऐसे में सातों भाई नगर से बाहर चले गए और दूर जाकर आग जला दी। वापस घर आकर उन्होंने अपनी बहन को बोला कि देखो चांद निकल आया है। अब उसे देख कर अपना व्रत तोड़ दो। बहन ने अग्नि को चांद मानकर अपना व्रत तोड़ दिया, हालांकि छल से तोड़े गए इस व्रत के चलते उसका पति बीमार हो गया और घर का सारा पैसा उसकी बीमारी में खर्च हो गया। कुछ समय बाद जब साहूकार की बेटी को अपने भाइयों का छल और अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने वापस से गणेश भगवान की पूजा विधि-विधान के साथ की, अनजाने में खुद से हुई भूल की क्षमा मांगी, जिससे उसका पति ठीक हो गया और घर में वापस धन-धान्य वापस आ गया।

FAQ

क्या है करवा चौथ की कथा ?
Karva Chauth के व्रत पर करवा चौथ की कथा की अलग मान्यता होती है। ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ की कथा के बिना करवा चौथ का व्रत पूर्ण नहीं होता है। प्राचीन काल में एक साहूकार हुआ करते थे। साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। 1 दिन साहूकार की सातों बहू और बेटी ने Karva Chauth का व्रत रखा। शाम को जब साहूकार और उसके बेटे खाना खाने आए तो उनसे अपनी बहन को भूखा नहीं देखा गया, उन्होंने अपनी बहन को भोजन करने के लिए बार-बार अनुरोध किया लेकिन बहन ने कहा कि मैं चंद्रमा को देखे बिना और उसकी पूजा किए बिना खाना नहीं खाऊंगी। ऐसे में सातों भाई नगर से बाहर चले गए और दूर जाकर आग जला दी। वापस घर आकर उन्होंने अपनी बहन को बोला कि देखो चांद निकल आया है। अब उसे देख कर अपना व्रत तोड़ दो। बहन ने अग्नि को चांद मानकर अपना व्रत तोड़ दिया, हालांकि छल से तोड़े गए इस व्रत के चलते उसका पति बीमार हो गया और घर का सारा पैसा उसकी बीमारी में खर्च हो गया। कुछ समय बाद जब साहूकार की बेटी को अपने भाइयों का छल और अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने वापस से गणेश भगवान की पूजा विधि-विधान के साथ की, अनजाने में खुद से हुई भूल की क्षमा मांगी, जिससे उसका पति ठीक हो गया और घर में वापस धन-धान्य वापस आ गया।
करवा चौथ की पूजा सामग्री
करवा माता की तस्वीर, छलनी, कुमकुम, रोली, चन्दन, फूल, कलश भर जल, करवाचौथ व्रत की कथा, हल्दी, चावल, मिठाई, अक्षत, पान, मिट्टी का करवा (कलश), दही, देसी घी, कच्चा दूध, मौली, शक्कर, शहद, नारियल।
करवा चौथ व्रत का महत्व
करवा चौथ व्रत महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं। इस व्रत में करवा माता, भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय भगवान के साथ-साथ गणेश जी की पूजा की जाती है। महिलाएं अपने व्रत को चंद्रमा के दर्शन करने के बाद खोलती हैं। ये एक बेहद कठोर व्रत माना जाता है क्योंकि इस दिन अन्न और जल कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता है। कई जगह इस व्रत को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।

 

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