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BHOPAL. छठ पूजा की शुरुआत हो चुकी है। आज यानी 29 अक्टूबर को खरना है। 30 अक्टूबर को अस्ताचलगामी यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, उसके अगले दिन सुबह यानी 31 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन होगा। इस पर्व की शुरुआत नहाय-खाय के साथ 28 अक्टूबर से हो गई थी। छठ सूर्य उपासना और छठी माता की उपासना का पर्व है। हिन्दू आस्था का यह एक ऐसा पर्व है, जिसमें मूर्ति पूजा शामिल नहीं है। इस पूजा में छठी मैया के लिए व्रत किया जाता है। यह व्रत कठिन व्रतों में से एक माना जाता है।
कर्ण ने शुरू की सूर्य देव की पूजा
मान्यता के अनुसार, महापर्व छठ की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इस पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण के द्वारा हुई थी। कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कथाओं के अनुसार कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह हर दिन घंटों तक कमर जितने पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया करते थे। उनके महान योद्धा बनने के पीछे सूर्य की कृपा थी। आज के समय में भी छठ में अर्घ्य देने की यही पद्धति प्रचलित है।
खगोलीय और ज्योतिषीय दृष्टि से छठ पर्व का महत्व
वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी छठ पर्व का बड़ा महत्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर, जिस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित रहता है। इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती है। इन हानिकारक किरणों का सीधा असर लोगों की आंख, पेट व त्वचा पर पड़ता है। छठ पर्व पर सूर्य देव की उपासना व अर्घ्य देने से पराबैंगनी किरणें मनुष्य को हानि न पहुंचाएं, इस वजह से सूर्य पूजा का महत्व बढ़ जाता है।
सीता-राम ने की सूर्य की पूजा
एक पौराणिक लोक कथा के अनुसार जब भगवान श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त कर लौटे तो राम राज्य की स्थापना की जा रही थी। कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन ही राम राज्य की स्थापना हो रही थी, उस दिन भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्य देव की आराधना की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर उन्होंने सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था। ऐसा माना जाता है कि तब से लेकर आज तक यही परंपरा चली आ रही है।
दूसरे दिन रखते हैं पूरे दिन का उपवास
छठ पूजा में दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन का उपवास रखते हैं। खरना का मतलब होता है शुद्धिकरण। खरना के दिन शाम होने पर गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर व्रती महिलाएं पूजा करने के बाद अपने दिन भर का उपवास खोलती हैं। फिर इस प्रसाद को सभी में बांट दिया जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन प्रसाद बनाने के लिए नए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।
इसलिए लगाते हैं नाक तक सिंदूर
हिंदू धर्म में महिलाओं के 16 श्रृंगार में से एक सिंदूर भी है। सिंदूर को सुहाग की निशानी माना जाता है। छठ के दिन महिलाएं नाक से मांग तक सिंदूर लगाती हैं। ऐसा माना जाता है कि ये सिंदूर जितना लंबा होता है, पति की आयु भी उतनी ही लंबी होती है। लंबा सिंदूर पति की आयु के साथ परिवार में सुख-संपन्नता लाता है। इस दिन लंबा सिंदूर लगाने से परिवार में खुशहाली आती है। महिलाएं छठ पर्व पर सूर्य देव की पूजा और छठी मैया की पूजा के साथ-साथ पति की लंबी आयु, संतान सुख, और परिवार में सुख-संपन्नता की प्रार्थना करते हुए व्रत को पूर्ण किया जाता है।
छठी पूजा के दिन भूलकर ना करें ये गलतियां
छठ पूजा का व्रत करने वाले व्यक्ति को बेड, गद्दा और पलंग पर नहीं सोना चाहिए। इस दिन तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। पूजा की चीजों को छूना से पहले हाथों का साफ से धोएं। छठी मैया को चढ़ाने वाली चीजें झूठी और खंडित नहीं होनी चाहिए। नहाय खाय के बाद से व्रत करने वाली महिलाओं को सात्विक भोजन करना चाहिए।
खरना व्रत नियम
- खरना के दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत शुरू हो जाता है।