13 अप्रैल 1919 का दिन हर भारतीय को दे गया था सदियों के लिए गहरा जख्म, जानिए भारत के सबसे बड़े नरसंहार की कहानी..

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The Sootr
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13 अप्रैल 1919 का दिन हर भारतीय को दे गया था सदियों के लिए गहरा जख्म, जानिए भारत के सबसे बड़े नरसंहार की कहानी..

NEW DELHI. जलियांवाला बाग नरसंहार एक ऐसी घटना जो हर भारतीय के मन मस्तिष्क पर आज भी सजीव रुप से चित्रित है। आजादी का वर्णन हो और जलियावाला का जिक्र न आए ऐसा संभव ही नहीं है। अंग्रेजी हुकूमत की क्रूर और दमनकारी हरकत का सबसे बड़ा उदाहरण जिसके लिए प्रिंस तक को माफी मांगनी पड़ी थी। आखिर कैसे एक सामान्य सभा को मरघट के सन्नाटे में बदला था जनरल डायर ने, जानिए इस हत्याकांड की पूरी कहानी...



महात्मा गांधी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन का आह्वान किया था, जिसके बाद मार्च के आखिर और अप्रैल की शुरुआत में कई हिस्सों में बड़े पैमाने प्रदर्शन हुए और उसका परिणाम 13 अप्रैल 1919 के नरसंहार के रूप में दिखा। पंजाब के इस सबसे बड़े प्रदर्शन के बाद अंग्रेजों के क्रूर उत्पीड़न में 1000 से ज्यादा लोग मारे गए और 3500 से ज्यादा घायल हुए। वहीं इस पूरे घटनाक्रम में 5 अंग्रेज भी मारे गए थे।



क्या था घटनाक्रम



फरवरी 1919 के आखिर में रॉलेट बिल आया तो उसका व्यापक विरोध हुआ। पंजाब इस विरोध में सबसे आगे था, रॉलेट एक्ट भारत का पहला अखिल भारतीय आंदोलन था और इसी आंदोलन ने महात्मा गांधी को राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित किया था। इसके बाद ही महात्मा गांधी ने एक सत्याग्रह सभा का गठन किया और खुद पूरे देश के दौरे पर निकल गए ताकि लोगों को एकजुट कर सकें। पंजाब प्रांत में गांधी को प्रवेश के ठीक पहले 9 अप्रैल को गिरफ्तार कर लिया गया और वापस भेज दिया गया। अमृतसर और लाहौर शहरों में सरकार विरोधी सभाएं हुई थीं। लेकिन ये सभाएं बेहद स्थानीय मुद्दों जैसे प्लेटफॉर्म टिकट, चुनाव को लेकर थीं। देश के ज्यादातर शहरों में 30 मार्च और 6 अप्रैल को देशव्यापी हड़ताल हुई। इसका सबसे ज्यादा असर पंजाब के ही अमृतसर, लाहौर, गुजरांवाला और जालंधर शहर में देखने को मिला। लाहौर और अमृतसर में हुई जन-सभाओं में तो 30 हजार लोग शामिल हुए। 9 अप्रैल को राम नवमी के दिन लोगों ने एक मार्च निकाला, इस मार्च में हिंदू तो थे ही मुस्लिम भी शामिल हुए। जनरल डायर और उनके प्रशासन को सबसे अधिक चिंता हिंदू-मुस्लिम को ही देखकर हुई थी। क्योंकि इसके पहले साल 1857 में अंग्रेजी सरकार हिंदू-मुस्लिम एकता से उपजी क्रांति को देख चुकी थी। दोबारा ऐसा न होने पाए इसलिए  विरोध को कुचलने के लिए हमेशा आतुर रहने वाले पंजाब के गवर्नर डायर ने उसी दिन अमृतसर के लोकप्रिय नेता डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन को हिरासत में ले लिया। ठीक उसी दिन गांधी को भी पंजाब में घुसने से रोक दिया गया था।



प्रदर्शन में मारे गए थे 5 अंग्रेज



नेताओं को हिरासत में लिए जाने की खबर जंगल में आग की तरह अमृतसर के लोगों के बीच फैल गई थी, इस खबर के बाद लोगों के मन में गुस्सा भर गया। 50 हजार लोगों अपने नेताओं की रिहाई की मांग लिए सड़कों पर उतर आए। और सिविल लाइन्स तक मार्च निकाल दिया। इस मार्च के दौरान अंग्रेजी सैनिकों से जमकर मुठभेड़ भी हुई, पथराव और गोलीबारी हुई जिसमें कई लोगों की मौत भी हो गई। गुस्साई भीड़ शहर वापस तो आ गई लेकिन उनके अंदर हलचल मची हुई थी। उन्होंने ब्रिटिश अथॉरिटी से जुड़े संस्थानों जैसे बैंक, रेलवे स्टेशन और चर्च में जमकर तोड़फोड़ कर दी। इस हिंसी में 5 अंग्रेज जिसमें तीन बैंक कर्मचारी और एक रेलवे गार्ड शामिल था मारे गए। इस हिंसक आंदोलन में  हिंदू, सिख खत्री और कश्मीरी मुसलमान शामिल थे।



गोली चलाने वाले भी थक गए थे



ठीक इसी दिन जालंधर के ब्रिगेडियर जनरल रेगिनाल्ड डायर को आदेश दिया गया कि वो इन हिंसक घटनाओं को संभालने के लिए फौरन अमृतसर पहुंचें, डायर को परिस्थितियों को नियंत्रण में करने के लिए बुलाया गया था। जलियांवाला बाग में उस दिन क्या हुआ, आज हर किसी को पता है। 13 अप्रैल को लगभग शाम के साढ़े चार बज रहे थे, जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में मौजूद करीब 30 हजार लोगों पर बिना किसी पूर्व सूचना के ताबड़तोड़ गोलियां बरसाने का आदेश दे दिया। दस मिनट तक बिना रुके गोलियां चलती रही। बताया जाता है कि करीब 2 हजार राउंड फायर किए गए थे। गोलियां चलाने वाले अंग्रेजी पुलिस के कर्मचारी भी थक चुके थे। सरकारी आंकड़े की मानी जाए तो इस फायरिंग में 379 लोग मारे गए थे, लेकिन ये मौत का आंकड़ा हजारों में था।



कौन था जनरल डायर



डायर का जन्म भारत में ही हुआ था और उसके पिता शराब बनाने का काम करते थे। डायर को उर्दू और हिंदुस्तानी दोनों ही भाषाएं बहुत अच्छे से आती थीं। डायर को उसके लोग तो बहुत अच्छी तरह जानते थे लेकिन उसके वरिष्ठ अधिकारियों में उसकी कोई बहुत अच्छी साख नहीं थी। इतिहास में डायर का नाम अमृतसर के कसाई के तौर पर जाना जाता है। हंटर कमीशन के सामने डायर ने माना था कि उन्होंने लोगों पर मशीन गन का इस्तेमाल किया और बाग से निकलने के लिए बचे एकमात्र रास्ते पर  सैनिकों को आदेश दिया गया कि वो ज्या से ज्यादा लोगों को निशाना बनाए। बज फायरिंग बंद हुई तो मानों काल खुद जलियांवाला बाग में आकर बैठ गया हो। लाशों के बीच गंभीर रुप से घायल कुछ लोग तड़प-तड़प कर दम तोड़ने को मजबूर थे क्योंकि वहां न तो कोई मेडिकल व्यवस्था थी और न कोई मददगार था। इस हत्याकांड से भारत के दो युवा बुरी तरह प्रभावित हुए थे जिसमें पहले थे सरदार उधम सिंह जिन्होंने डायर की इस कायर करतूत का जवाब लंदन में आमने सामने गोली मारकर दिया था, और दूसरे थे सरदार भगत सिंह जो देश की आजादी के लिए कुर्बान हो गए थे।



मौत का सही आंकड़ा नहीं पता



अंग्रेजों की गोलियों से बचने के लिए लोग वहां स्थित एकमात्र कुए में कुद गए। कुछ देर में कुआं भी लाशों से भर गया। जलियांवाला बाग में शहीद होने वालो का सही आंकड़ा आज भी पता न चल सका लेकिन डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, तो जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की लिस्ट है। ब्रिटिश सरकार के दस्तावेजों में 379 लोगों की मौत और 200 लोगों के घायल होने का दावा किया गया। हालांकि अनाधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार और जनरल डायर के इस नरसंहार में 1000 से ज्यादा लोग शहीद हुए थे और लगभग 2000 से अधिक भारतीय घायल हुए थे।



डायर के किए की सजा उधम सिंह ने दी



उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 में पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम में हुआ था, उनके पिताजी की मृत्यु 1901 में और पिता की मृत्यु के 6 वर्ष बाद इनकी माता की भी मृत्यु हो गई। ऐसी दुखद परिस्थिति में दोनों भाइयों को अमृतसर के खालसा अनाथालय में आगे का जीवन व्यतीत करने के लिए और शिक्षा दीक्षा लेने के लिए इस अनाथालय में उनको शरण लेनी पड़ी थी। परंतु दुर्भाग्यवश उधम सिंह के भाई का भी साथ ज्यादा समय तक नहीं रहा उनकी भाई की मृत्यु 1917 में ही हो गई थी। इसके बाद उन्होंने 1919 में खालसा अनाथालय को छोड़ दिया। जलियांवाला बाग की दिल दहला देने वाली घटना को उधम सिंह ने अपने आंखों से देख लिया था , जिससे उनको बहुत ही गहरा दुख हुआ था और उन्होंने उसी समय ठान लिया, कि यह सब कुछ जिसके इशारे पर हुआ है , उसको उसके किए की सजा जरूर देकर रहेंगे।



उधम सिंह के जीवन का एकमात्र लक्ष्य था डायर की हत्या




  • उधम सिंह ने अपने द्वारा लिए गए संकल्प को पूरा करने के मकसद से उन्होंने अपने नाम को अलग-अलग जगहों पर बदला और वे दक्षिण अफ्रीका, जिंबाब्वे , ब्राजील , अमेरिका , नैरोबी जैसे बड़े देशों में अपनी यात्राएं की।


  • 1913 में गदर पार्टी का निर्माण किया गया था, इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य भारत में क्रांति भड़काने के लिए किया गया था।

  • 1924 में उधम सिंह जी ने इस पार्टी से जुड़ने का निश्चय कर लिया और वे इससे जुड़ भी गए।

  • भगत सिंह ने उधम सिंह को 1927 में वापस अपने देश आने का आदेश दिया।

  • उधम सिंह वापस लौटने के दौरान अपने साथ 25 सहयोगी, रिवाल्वर और गोला-बारूद लेकर आए थे, लेकिन इसी दौरान उन्हें बिना लाइसेंस हथियार रखने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया, और अगले 4 साल उधम सिंह जेल में रहे।

  • 1931 में जेल से रिहा होने के बाद वे अपनी अधूरी कसम को पूरा करने के लिए कश्मीर गए फिर कश्मीर से जर्मनी निकल गए।

  • 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंच गए और वहां पर उन्होंने अपने तय किए गए लक्ष्य को अंजाम देने के लिए सही समय का इंतजार करना शुरू कर दिया।

  • 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के कास्टन हाल में बैठक के दौरान माइकल ओ’ डायर को उसके  उधम सिंह ने आगे बढ़कर गोली मार दी। जनरल डायर की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई।

  • कहा जाता है, कि उन्होंने इसलिए इस दिन का इंतजार किया ताकि पूरी दुनिया जनरल डायर द्वारा किए गए जघन्य अपराध की सजा पूरी दुनिया देख सकें। उन्होंने अपने काम को अंजाम देने के बाद गिरफ्तारी के डर से भागने की कोई कोशिश नहीं की और उसी जगह पर शांत खड़े रहे।

  • उधम सिंह को इस बात का गर्व था, कि उन्होंने अपने देशवासियों के लिए वह करके दिखाया जो सभी भारतीय देशवासी चाहते थे।

  • जनरल डायर की हत्या के मामले में 4 जून 1940 को उधम सिंह को दोषी सिद्ध किया गया और 31 जुलाई 1940 को लंदन के पेंटोनविले जेल में सरदार उधम सिंह को फांसी की सजा दी गई।


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