निधन से पहले पत्नी की एक बात से तनाव में आ गए थे शास्त्री, 11वीं क्लास में पढ़ रहे बेटे का रिपोर्ट कार्ड लेने खुद पहुंच गए थे

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Atul Tiwari
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निधन से पहले पत्नी की एक बात से तनाव में आ गए थे शास्त्री, 11वीं क्लास में पढ़ रहे बेटे का रिपोर्ट कार्ड लेने खुद पहुंच गए थे

BHOPAL. देश के दूसरे प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री की आज यानी 11 जनवरी को पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 1966 में उनका ताशकंद में निधन हो गया था। शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। शास्त्री सादगी की मिसाल माने जाते थे। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से उन्होंने शास्त्री की उपाधि हासिल की थी। उनके पिता का नाम शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और माता का नाम रामदुलारी देवी था। उनका नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था। बचपन में उन्हें प्यार से नन्हे कहकर पुकारते थे। वे जाति व्यवस्था के विरोधी थे, इसलिए उन्होंने अपने नाम से सरनेम हटा लिया था।



उनका दो साल का (1964-66) का कार्यकाल कई मायनों में अभूतपूर्व माना जाता है। शास्त्री ही नहीं, उनकी पत्नी ने भी आदर्शों को निभाया। उनके बाद प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी ने सरकार की तरफ से लोन माफ करने की पेशकश की, लेकिन उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने इसे स्वीकार नहीं किया और उनकी मौत के चार साल बाद तक अपनी पेंशन से उस लोन को चुकाया। शास्त्री, पत्नी ललिता को अम्मा कहते थे आज हम आपको उनकी कुछ कहानियां बता रहे हैं...



1. बेटे का रिपोर्टकार्ड लेने स्कूल चले गए थे शास्त्री



बीबीसी को दिए इंटरव्यू में लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल ने बताया था, 1964 में मैं दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में पढ़ता था। मेरी कक्षा 11 बी पहली मंजिल पर थी। उस जमाने में पेरेंट्स-टीचर मीटिंग नहीं हुआ करती थी। अभिभावकों को छात्र का रिपोर्ट कार्ड लेने के लिए जरूर बुलाया जाता था। एक बार वो खुद चलकर मेरी कक्षा में आए थे। मेरे क्लास टीचर रेवेरेंड टाइनन उन्हें वहां देखकर हतप्रभ रह गए। उन्होंने कहा- सर, आपको रिपोर्ट कार्ड लेने यहां आने की जरूरत नहीं थी। आप किसी को भी भेज देते। पिताजी का जवाब था- मैं वही कर रहा हूं, जो मैं पिछले कई सालों से करता आया हूं और आगे भी करता रहूंगा। रेवेनेंड टाइनन ने कहा- लेकिन अब आप भारत के प्रधानमंत्री हैं। शास्त्री जी मुस्कराए और बोले- ब्रदर टाइनन, मैं प्रधानमंत्री बनने के बाद भी नहीं बदला, लेकिन लगता है आप बदल गए हैं।




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प्लेन में भी फाइलें निपटाते लाल बहादुर शास्त्री।




2. ताशकंद समझौते के बाद से दबाव में थे



1966 में ताशकंद में भारत-पाकिस्तान समझौते पर साइन करने के बाद शास्त्री काफी दबाव में थे। पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल वापस कर देने के कारण भारत में उनकी काफी आलोचना हो रही थी। उन्होंने एक दिन देर रात अपने घर दिल्ली फोन मिलाया। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर के मुताबिक- जैसे ही फोन उठा, उन्होंने कहा अम्मा (पत्नी ललिता शास्त्री) को फोन दो। उनकी बड़ी बेटी फोन पर आईं और बोलीं, अम्मा फोन पर नहीं आएंगी। उन्होंने पूछा- क्यों? जवाब मिला- आपने हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को दे दिया। वो बहुत नाराज हैं। शास्त्री को इससे बहुत धक्का लगा। कहते हैं इसके बाद वो कमरे का चक्कर लगाते रहे। फिर उन्होंने अपने सचिव वेंकटरमन को फोन कर भारत से आ रही प्रतिक्रियाएं जाननी चाहीं। वेंकटरमन ने उन्हें बताया कि तब तक दो बयान आए थे, एक अटल बिहारी वाजपेयी का था और दूसरा कृष्ण मेनन का और दोनों ने ही उनके इस कदम की आलोचना की थी।



3. एक वरिष्ठ पत्रकार को सपना आया था कि शास्त्री जी नहीं रहे



कुलदीप नैयर ने बीबीसी को ये भी बताया था- उस समय भारत-पाकिस्तान समझौते की खुशी में ताशकंद होटल में पार्टी चल रही थी। मैं शराब नहीं पीता था, इसलिए अपने होटल के कमरे में आ गया और सोने की कोशिश करने लगा, क्योंकि अगले दिन मुझे शास्त्री जी के साथ अफगानिस्तान रवाना होना था। मैंने सपने में देखा कि शास्त्री जी का निधन हो गया। फिर मेरे कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई। जब बाहर आया तो एक वहां एक रूसी औरत खड़ी थी। बोलीं- योर प्राइम मिनिस्टर इज दाइंग (आपके प्रधानमंत्री का निधन हो गया है)।



"मैंने जल्दी-जल्दी अपना कोट पहना और नीचे आ गया। जब मैं नीचे पहुंचा तो देखा बरामदे में रूसी प्रधानमंत्री कोसिगिन खड़े थे। उन्होंने मेरी तरफ देखकर इशारा किया कि शास्त्री जी नहीं रहे। जब मैं कमरे में पहुंचा तो देखा बहुत बड़ा कमरा था और उस कमरे में एक बहुत बड़ा पलंग था। उसके ऊपर एक बहुत छोटा सा आदमी नुक्ते की तरह सिमटा हुआ निर्जीव पड़ा था। रात ढाई बजे के करीब पाकिस्तान के जनरल अयूब आए। उन्होंने अफसोस जाहिर किया और कहा, "हियर लाइज अ पर्सन हू कुड हैव ब्रॉट इंडिया एंड पाकिस्तान टुगैदर (यहां वो आदमी लेटा हुआ है, जो भारत और पाकिस्तान को साथ ला सकता था)।




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बाएं से- ताशकंद में पाकिस्तान के अयूब खान, लाल बहादुर शास्त्री और रशियन प्राइम मिनिस्टर कोसिगिन।




4. दो बार गंगा नदी तैरकर स्कूल जाते थे 



लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी शुरुआती शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई कठिनाइयों का सामना किया। महज डेढ़ साल की उम्र में पिता के निधन के बाद उन्हें चाचा के पास भेज दिया गया। जब स्कूल में दाखिला हुआ तो रोजाना मीलों पैदल चलना और गंगा नदी पार करनी पड़ती थी। कहा जाता है कि वे रोजाना दो बार गंगा नदी तैरकर स्कूल पहुंचते थे। किताबों को सिर पर बांध लिया करते थे, जिससे वो गीली न हों, क्योंकि उनके पास रोज नाव में बैठकर नदी पार करने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते थे।



5. कार खरीदने के लिए लिया था लोन



ऐसा माना जाता है कि जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे तब उनके परिवार ने उनसे एक कार खरीदने के लिए कहा। उन्होंने फिएट कार के लिए 12 हजार रुपए चाहिए थे, लेकिन उस समय भी उनके पास केवल 7000 रुपए थे। कार खरीदने के लिए उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक से 5 हजार बैंक लोन के लिए अप्लाई किया था। शास्त्री जी के निधन के बाद उनकी पत्नी ललिता ने ये लोन चुकाया।  


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