New Delhi. साल 2002 में गुजरात में हुए दंगों पर आधारित ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन यानि बीबीसी की डॉक्युमेंट्री खासी चर्चा में है। सरकार ने इस पर रोक लगा दी है। इस रोक को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुंच चुका है। इस डॉक्युमेंट्री को देश के कई बड़े विश्वविद्यालयों में दिखाया जा चुका है। जिस पर काफी विवाद भी हुआ था। इस डॉक्युमेंट्री पर रोक हटाने के लिए दायर याचिका पर केंद्रीय कानून मंत्री ने अपनी प्रतिक्रिया ट्विटर के जरिए दी है। उन्होंने ट्वीट किया कि ‘ इस तरह वे सुप्रीम कोर्ट का कीमती समय बर्बाद करते हैं, जहां हजारों आम नागरिक न्याय के लिए इंतजार और तारीखों की मांग कर रहे हैं‘।
नामचीन वकीलों ने दायर की है याचिका
साल 2002 में गुजरात में हुए दंगों पर बीबीसी ने डॉक्युमेंट्री बनाई है। जिस पर सरकार ने रोक लगा दी है। जिसको लेकर वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में मामले को रखा। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले की सुनवाई 6 फरवरी को नियत की है। डॉक्युमेंट्री को लेकर प्रशांत भूषण, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और एन राम जैसे लोगों के ट्वीट हटाने का मसला भी सुनवाई के दौरान अदालत में उठा। जिस पर चीफ जस्टिस ने ट्वीट हटाए जाने पर भी सुनवाई का आश्वासन दिया है।
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क्या है मामला
दरअसल, पीएम नरेंद्र मोदी पर बीबीसी ने इंडियाःद क्वेश्चन नाम की डॉक्युमेंट्री बनाई है, जिसके पहले पार्ट में मोदी के मुख्यमंत्री रहते साल 2002 में हुए दंगों के बारे में बताया गया है। डॉक्युमेंट्री में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल को भी फिल्माया गया है। ब्रिटेन में इस डॉक्युमेंट्री को 17 जनवरी को पहली बार प्रदर्शित किया गया था। जिसके बाद से ही विवाद शुरू हो गया। हालांकि इसमें पीएम के शुरुआती राजनैतिक जीवन से लेकर पीएम बनने तक का पूरा सफर फिल्माया गया है।
विश्वविद्यालयों में प्रदर्शन पर भी विवाद
इस डॉक्युमेंट्री को बड़े विश्वविद्यालयों में दिखाए जाने के बाद भी विवाद हो चुका है। जेएनयू समेत देश के विभिन्न संस्थानों में इस बात को लेकर विरोध प्रदर्शन भी हो चुके हैं। वहीं एक तबका इस डॉक्युमेंट्री को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किए जाने की मांग कर रहा है।