BJP के लिए महाराष्ट्र की डगर कांटों भरी, सीट बंटवारा सबसे बड़ी चुनौती

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की बिसात बिछ गई है। महाराष्ट्र, देश का इकलौता ऐसा राज्य है, जहां पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा राजनीतिक प्रयोग हुए हैं। यहीं बीजेपी, शिवसेना का गठबंधन टूटा। फिर अचानक सुबह 5 बजे शपथ ग्रहण समारोह हुआ।

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Ravi Kant Dixit
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महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की बिसात बिछ गई है। राजनीतिक दलों ने भी अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। यहां बीजेपी की साख दाव पर है, क्योंकि यही इकलौता राज्य है, जहां से बीजेपी का उदय वर्ष 1980 में पहली बार हुआ और उसी समय से उसकी सहयोगी रही बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना को अब बीजेपी ने छोड़ दिया है।

दूसरा, अहम फैक्टर यह भी है कि हाल ही में बीजेपी ने हरियाणा में जीत की हैट्रिक मारी है। इसलिए निश्चित तौर पर हरियाणा के सेंटीमेंट का बीजेपी को महाराष्ट्र में भी फायदा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। दूसरा, जिस तरह से बीजेपी अपनी रणनीति में जुटी है, उससे माना जा रहा है कि पार्टी महाराष्ट्र में अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। मतलब, क्या बीजेपी महायुति में नहीं रहेगी? या फिर सीट शेयरिंग नहीं होगी... फिलहाल यह सवाल बना हुआ है। 

महाराष्ट्र, देश का इकलौता ऐसा राज्य है, जहां पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा राजनीतिक प्रयोग हुए हैं। यहीं बीजेपी, शिवसेना का गठबंधन टूटा। फिर अचानक सुबह 5 बजे शपथ ग्रहण समारोह हुआ। फिर 24 घंटे में सरकार गिर गई। कुछ दिन में एनसीपी कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना की सरकार बनी। दो साल बाद शिवसेना में सबसे बड़ी टूट हुई और एक नई शिवसेना बनी, जिसे धनुष बाण का चुनाव चिह्न भी मिल गया।

वहीं शरद पवार की एनसीपी भी टूटी और भतीजे अजित पवार को भी चाचा का चुनाव चिह्न घड़ी मिल गया, लेकिन पहले टेस्ट यानी लोकसभा चुनाव ने सबसे बड़ा संदेश यही दिया कि लोगों को ये तोड़फोड़ की राजनीति पसंद नहीं आई। लिहाजा, लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में बीजेपी के सांसदों की संख्या 21 से घटकर 9 पर आ गई। वहीं, जिस कांग्रेस का केवल एक लोकसभा सदस्य था, वह 14 हो गए। लोकसभा के परिणामों ने बीजेपी को हिला दिया है। अब बीजेपी को तय करना है कि वो कैसे वापसी करेगी, सत्ता में भी और लोगों के दिलों में भी। 

महाविकास अघाड़ी में सीट बंटवारे का दावा 

जम्मू कश्मीर चुनाव में मिली जीत ने कांग्रेस और विपक्ष कोा बड़ी संजीवनी दी है। अब महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के तीन प्रमुख दल-कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार की एनसीपी (शरद पवार गुट) के बीच सीट बंटवारे पर चर्चा अपने अंतिम चरण में है। दक्षिण मुंबई के वाईबी चव्हाण सेंटर में गठबंधन के शीर्ष नेताओं के बीच कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं, जिसमें सीटों के आवंटन को लेकर मुख्य रूप से चर्चा की गई। कांग्रेस 100 से अधिक सीटों पर, शिवसेना (यूबीटी) भी करीब 100 सीटों पर और एनसीपी (शरद पवार गुट) लगभग 80 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। गठबंधन के दलों ने 2019 के विधानसभा चुनाव में जीती गई सीटों के आधार पर सीटों का प्रारंभिक बंटवारा किया है। 154 सीटें उन्हीं पार्टियों को दी गई हैं, जिन्होंने 2019 में जीत दर्ज की थी। बाकी 86 सीटों के आवंटन में मतों के प्रतिशत, दूसरे स्थान पर रही पार्टी और संभावित जीत की संभावना जैसे मापदंडों पर विचार किया गया है।

सीट बंटवारा सबसे बड़ी चुनौती

बीजेपी के महायुति गठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती सीटों के बंटवारे की है। 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में अब तक बीजेपी और शिवसेना ठाकरे आधी-आधी या कभी-कभी 171 और 121 सीट पर लड़ते रहे हैं। दोनों को कभी तकलीफ भी नहीं हुई, लेकिन पिछले चुनाव में बीजेपी ने 100 फीसदी का नारा दिया और ठाकरे की शिवसेना को कमजोर किया। उसके बाद उनके रास्ते अलग हो गए। अब सबसे मुश्किल सवाल यही कि महायुति में बंटवारा कैसे हो? बीजेपी के पास अभी खुद के 103 और निर्दलीय 10 मिलाकर 113 विधायक हैं। बीजेपी कम से कम 180 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। ऐसे में उसके दो सहयोगी शिवसेना शिंदे और एनसीपी अजित पवार के हिस्से में कुल बची 100 सीटों में से अधिकतम 50–50 आ सकती हैं, लेकिन शिंदे के पास खुद के अभी 54 विधायक हैं तो अजित पवार के पास 44 विधायक। तीनों पार्टियां उन जगहों को भी चाहती हैं, जहां उनके उम्मीदवार नंबर दो पर थे। अब इसका तोड़ निकालना कठिन होगा। 

क्यों है सीटों की चुनौती?

लोकसभा चुनाव में भी खींचतान हुई और एकनाथ शिंदे 14 सीट लेने में कामयाब रहे। वहीं अजित पवार 4 सीट पर लड़े, इसलिए बीजेपी को राहत मिली, लेकिन विधानसभा में अब शिंदे कम से कम 100 और अजित पवार भी 100 सीट मांग रहे हैं, इसका हल निकालना कठिन काम है। उधर, दूसरी तरफ महागठबंधन में भी खींचतान है, लेकिन सभी दल 96-96 सीट पर लड़ने लगभग तैयार हैं, इसलिए बात बन सकती है। कुछ सीटों पर अदला-बदली होगी। 

अजित पवार बोझ या मददगार?

लोकसभा चुनाव में अजित पवार केवल एक सीट जीत पाए और उनकी पत्नी सुनेत्रा पवार हार गईं, इसलिए सवाल उठने लगा कि बीजेपी आगे भी अजित को साथ रखेगी या नहीं? अजित को लेकर बीजेपी कैडर नाराज है, उन्हें लगता है कि पवार पर करप्शन के आरोप रहे हैं और उन्हें लेने के बाद अब बीजेपी किस मुंह से करप्शन की बात करेगी। अमित शाह ने भी शरद पवार को करप्शन का सरगना कहा तो सवाल उठा कि अजित पवार को क्यों रखा जा रहा है? बीजेपी की कोर ग्रुप में भी सवाल उठा और संघ से प्रेरित पत्रिका 'विवेक' ने लिखा कि अजित पवार बोझ बन गए हैं? इन सब हालातों के बीच क्या अजित पवार बाहर जाएंगे, लेकिन लोकसभा के रिजल्ट के बाद बीजेपी ये मैसेज नहीं देना चाहती कि उसने किसी सहयोगी को छोड़ दिया। भले उसका एक लोकसभा मेंबर है, इसलिए अजित बीजेपी की मजबूरी बन गए हैं। वे खुद भी बीजेपी के साथ रहना चाहते हैं, उनका फैसला विधानसभा चुनाव के बाद ही होगा। 

भाजपा की आपसी खींचतान

सहयोगी दलों के साथ-साथ बीजेपी की राज्य इकाई में भी खींचतान है। एक तरफ देवेंद्र फणनवीस किसी तरह फिर सीएम बनना चाहते हैं तो दूसरी तरफ विनोद तावड़े जोर लगा रहे हैं। आशीष शैलार, पंकजा मुंडे सब उनके विरोधी माने जाते हैं। प्रदेश बीजेपी में दो गुट हैं, एक जो संघ और पीएम मोदी का वफादार है। दूसरा, वे जिन पर अमित शाह का हाथ है। इसकी साफ झलक लोकसभा चुनाव में दिखी और अब विधानसभा में भी बीजेपी किसी एक चेहरे को आगे नहीं रख सकती। बीजेपी की इसी खींचतान के चलते केंडिडेट सिलेक्शन से लेकर प्रचार तक हर जगह कैडर में भ्रम दिखाई देता है। इसी का असर वोट पर होता है। हालांकि अश्विनी वैष्णव और भूपेंद्र यादव को भेजा गया है, पर उनका झुकाव फणनवीस की तरफ ज्यादा दिखाई देता है। 

एम फैक्टर का असर

लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को एम फैक्टर यानी मराठा, मुस्लिम और महार यानी दलित विरोध का सामना करना होगा। मराठा आरक्षण चाहते हैं। मुस्लिम बीजेपी विरोधी हैं और महार यानी दलितों को संविधान से छेड़छाड़ का मुद्दा सताता रहा है। लोकसभा में तीनों ने महागठबंध का साथ दिया, जिससे कांग्रेस को ज्यादा फायदा हुआ। अब विधानसभा चुनाव में बीजेपी को इस फैक्टर को तोड़ना होगा, तभी बात बनेगी। राज्य में मराठा करीब 22 फीसदी, मुस्लिम 13 फीसदी और महार यानी दलित करीब 12 फीसदी हैं। आदिवासी भी बीजेपी के साथ नहीं दिख रहे हैं। 

ओबीसी ही सहारा 

बीजेपी को महाराष्ट्र में अब तक मिली सफलता में बीजेपी, संघ का माधव फॉर्मूला रहा है, जिसमें 'म' यानी माली, 'ध' यानी धनगर और 'व' मतलब बंजारा समाज। गोपीनाथ मुंडे, एकनाथ खडसे जैसे दिग्गज नेताओं के कारण ओबीसी हमेशा से बीजेपी के साथ रहा है, क्योंकि वो राज्य में मराठा वर्चस्व को तोड़ना चाहता है, लेकिन बीजेपी ने ओबीसी को बचाने के लिए बहुत कुछ नहीं किया। इसलिए अब ओबीसी में बिखराव है। माली वोटर अब छगन भुजबल के साथ हैं। धनगर बंटे हुए हैं। उनके सबसे बड़े नेता महादेव जानकर लोकसभा का चुनाव हार गए। वहीं पंकजा मुंडे के कारण बंजारा समाज नाराज है। बीजेपी को इन सबको साधना है तो यूपी की तरह छोटी जातियों और उनके नेताओं को साथ लाकर टिकट देना होगा। 
 

क्षेत्रीय और छत्रप की चुनौती

महाराष्ट्र में मोटे तौर पर पांच इलाके माने जाते हैं। इनमें विदर्भ, मराठवाड़ा, पश्चिम महाराष्ट्र, उत्तर महाराष्ट्र यानी खानदेश और मुंबई सहित कोंकण किनार पटटी। इन सब इलाकों में इस बार बीजेपी को निराशा हाथ लगी, जबकि विदर्भ और उत्तर महाराष्ट्र को बीजेपी का गढ माना जाता है। इसके साथ महाराष्ट्र में 13 बड़े शहर हैं और बीजेपी की इन पर पकड़ रही है, लेकिन इन सबको अब साधना होगा। 

विदर्भ में क्या है गणित 

बात विदर्भ से करते हैं। विदर्भ की 11 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को इस बार केवल एक सीट मिल पाई, वो भी इसलिए कि नागपुर से नितिन गड़करी चुनाव मैदान में थे और उनके सामने कांग्रेस का प्रत्याशी कमजोर था। विदर्भ में मुस्लिम और कुनबी बड़ी संख्या में हैं। कुनबी तो करीब 26 फीसदी है, जो नाना पटोले के कारण और बीजेपी की बेरुखी से कांग्रेस के साथ चला गए। उसके अलावा दूसरी बड़ी जाति हलबा कोष्टी भी चंद्रपुर में बीजेपी के खिलाफ गई। बीजेपी के साथ केवल चार फीसदी वाली कोमटी समाज की गई। बीजेपी को पिछले चुनाव में विदर्भ की 62 सीटें में से 29 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस के हाथ 15 सीट आई थी। इस बार ये मामला उलट सकता है। 

मराठवाड़ा में मराठा आरक्षण

मराठवाड़ा की बात करें तो बीजेपी ने यहां अपनी जड़ें जमाने में कामयाबी हासिल की थी, लेकिन लोकसभा में मराठा आरक्षण के सवाल और देवेंद्र फणनवीस के ब्राह्मण विलेन बनने से बीजेपी का पत्ता साफ हो गया। यहां तक कि अशोक चव्हाण जैसे दिग्गज नेता के आने के बाद भी कांग्रेस कमजोर नहीं हुई। चव्हाण की नांदेड़ सीट पर भी कांग्रेस जीत गई। अब बीजेपी को यहां संभलना होगा। वैसे ये कांग्रेस और एनसीपी का गढ रहा है, पर विधानसभा चनाव में यहां की 46 सीटों में से बीजेपी को 16 और तब की शिवसेना को 12 सीट मिल गई थीं। कांग्रेस तब यहां 8 पर सिमट गई थी। 

पश्चिम महाराष्ट्र में मुस्लिम फैक्टर

पश्चिम महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण और मुस्लिम सबसे बड़े फैक्टर हैं। मराठा आरक्षण के कारण बीजेपी के खिलाफ विरोध दिख रहा है। ज्यादातर मराठा शरद पवार के साथ हैं। यहां तक कि अजित पवार की पत्नी भी इसलिए हार गईं और अब अजित की साख दाव पर है। अजित पवार हारे तो बीजेपी महायुति को उतनी सीटों का भी नुकसान होगा।

उत्तर महाराष्ट्र में बीजेपी ने कांग्रेस के बड़े नेता विखे पाटिल को तोड़ा, लेकिन मराठा आरक्षण और किसानों की नाराजगी के चलते खुद पाटिल के बेटे लोकसभा का चुनाव हार गए। शिकायत है कि बीजेपी ने खुद बाहर से आए मराठा नेताओं को कमजोर किया। अब बीजेपी को प्याज के किसानों की नाराजगी और बारिश के कारण फसल के नुकसान का मुद्दा भी देखना होगा। यहां बीजेपी अब भी ओबीसी वोट साधकर खुद को बचाकर रख सकती है। 

ठाकरे के साथ सहानुभूति

मुंबई कोंकण में बीजेपी को चुनौती है कि ये शिवसेना और बाल ठाकरे का गढ़ है। आम मराठी मतदाता की सहानुभूति उद्धव ठाकरे के साथ है। यहां पर बीजेपी सबसे ज्यादा विधायक वाली पार्टी है, लेकिन अब लोकसभा में उसका एक उम्मीदवार जीत पाया और स्कोर 6 सीट में 4 और 2 का रहा।  ऐसे में बीजेपी को मुंबई की 36 और ठाणे की 24 विधानसभा सीटों में ज्यादा से ज्यादा जीतनी होंगी, लेकिन यहां बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना की आपसी खींचतान को संभालना होगा। 

पीएम नरेंद्र मोदी का कोई फैक्टर नहीं

 लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में मोदी फैक्टर नहीं चला। मोदी ने चुनावी महीनों में कुल 23 सभाएं की, जिनमें से 19 सीटें बीजेपी हार गई। विधानसभा चुनाव में वैसे भी डबल इंजन का मुद्दा अब नहीं चलने वाला, इसलिए बीजेपी ने बजट में एमपी की तरह लाड़ली बहना ही नहीं लाड़ला भाई और बेरोजगार भत्ता, किसानों को फ्री बिजली जैसी रेवड़ी बांटना शुरू कर दिया है। इनका कितना असर होगा, अभी कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी।

फिलहाल बीजेपी के सामने महाराष्ट्र में एक नहीं, कई चुनौतियां हैं, लेकिन समय रहते सुधार किया तो बहुत कुछ बदल सकता है। इसमें सबसे पहला काम बीजेपी को अपने कैडर को सदमे से निकालकर फिर काम पर लगाना होगा। दूसरा, जातिगत समीकरण संभालते हुए काम करना होगा, तभी वापस लौटेंगे। 

बीजेपी के विक्ट्री फॉर्मूले पर काम 

इधर, एक अहम फैक्टर यह भी है कि बीजेपी मध्यप्रदेश का फुल प्रूफ विक्ट्री फॉर्मूला महाराष्ट्र में अपना रही है। चाहे बात लाड़ली बहना योजना की हो या बूथ का कॉन्सेप्ट... वही रणनीति महाराष्ट्र में अपनाई जा रही है, जिससे मध्यप्रदेश में पार्टी ने पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल की है। रणनीति के तहत पार्टी ने संगठन कौशल में माहिर मध्यप्रदेश के नेताओं को महाराष्ट्र की सीटों का जिम्मा दिया है। इन्होंने वहां अपना काम भी शुरू कर दिया है। 

लाड़ली बहना योजना

मध्यप्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत के पीछे सबसे बड़ा कदम लाड़ली बहना योजना को माना जाता है। इसी रणनीति के तहत महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन ने वहां एक कदम आगे बढ़ते हुए महिलाओं को 1 हजार 500 रुपए प्रतिमाह देने का फैसला किया है।

एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली गठबंधन सरकार (महायुति) ने 80 लाख महिलाओं के बैंक खातों में दो महीने (जुलाई-अगस्त) के 1500-1500 रुपए ट्रांसफर भी कर दिए हैं। अब 31 अगस्त तक आवेदन करने वाली महिलाओं के खाते में राशि आएगी। 

महायुति और बीजेपी दोनों इस बात से आश्वस्त हैं कि यह योजना गेमचेंजर साबित होगी। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक दयानंद नेने के एक सर्वे में महाराष्ट्र के लोगों ने भी माना है कि लाड़ली बहना योजना 40 फीसदी तक कारगर सिद्ध हो सकती है। यह शुरुआती रुझान हैं, चुनाव की तारीख आते-आते आंकड़ा बढ़ने की पूरी संभावना जताई जा रही है।

हर बूथ तक मैनेजमेंट 

बीजेपी का दूसरा कदम बूथ मैनेजमेंट है। महाराष्ट्र के हर विधानसभा क्षेत्र में कोर कमेटियों की सक्रियता पर ध्यान दिया जा रहा है। पन्ना प्रभारी, बूथ कमेटी और शक्ति केंद्र पर काम जारी है। बीजेपी के प्रवासी नेता भावनात्मक जुड़ाव बढ़ाने के लिए स्थानीय कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं। ये कॉन्सेप्ट मध्यप्रदेश में हिट हो चुका है।

वहीं, प्रवासी नेता महाराष्ट्र की दिग्गज हस्तियों से मुलाकात कर रहे हैं। बीजेपी की यह भी कोशिश है कि क्षेत्रीय क्षत्रपों को तवज्जो देकर राज्य के सभी इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत की जाए। आपको बता दें कि मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही किया गया था। यहां शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद सिंह पटेल जैसे दिग्गज नेताओं को अपने इलाके की सीटें जिताने की जिम्मेदारी दी गई थी और बीजेपी इसमें कामयाब रही थी। 

भूपेंद्र यादव, अश्विनी वैष्णव की जोड़ी वहां भी उतारी

देश के कुछ ऐसे नेताओं को भी जिम्मेदारियां दी गई हैं, जिनका महाराष्ट्र से भावनात्मक जुड़ाव हो। बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश ने महाराष्ट्र में डेरा डाल लिया है। महाराष्ट्र के लिए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को प्रभारी और केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव को सह प्रभारी बनाया गया है। इन्हीं दोनों नेताओं को मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव की कमान ​दी गई थी।

भूपेंद्र यादव चुनावी रणनीति में माहिर माने जाते हैं। वहीं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कोटे से सुहास भगत को महाराष्ट्र भेजा गया है। वे अभी पिछले दिनों तक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सक्रिय थे। उन्हें अब महाराष्ट्र का सह सेवा प्रमुख बनाया गया है। सुहाष भगत पहले मध्यप्रदेश बीजेपी के संगठन महामंत्री रह चुके हैं। वहीं, पहले संघ कोटे में रहे अबके मध्यप्रदेश के संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा महाराष्ट्र में कार्यकर्ताओं से फीडबैक ले रहे हैं। मंथन का दौर चल रहा है।  इसी तरह मध्यप्रदेश में काम कर चुके अरविंद मेनन भी महाराष्ट्र में अहम भूमिका में हैं।

इन दिग्गजों ने शुरू किया काम

बीजेपी ने शुरुआत दौर में मध्यप्रदेश के पांच नेताओं को महाराष्ट्र के जिलों का जिम्मा दिया है। आगे ऐसे नेताओं की संख्या और बढ़ेगी। इनमें मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, मंत्री विश्वास सारंग, पूर्व मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा और युवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ.निशांत खरे शामिल हैं। चार नेताओं को महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र की 62 सीटों की जिम्मेदारी दी गई है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह तो यही है कि विदर्भ मध्यप्रदेश से सटा हुआ है। मध्यप्रदेश के 9 जिलों की सीमाएं महाराष्ट्र से मिलती हैं। 

मध्यप्रदेश के किस नेता को क्या काम सौंपा

  • मंत्री कैलाश विजयवर्गीय: नागपुर सिटी और नागपुर ग्रामीण जिले की जिम्मेदारी दी गई है। इन दोनों जिलों के अंतर्गत महाराष्ट्र की 12 विधानसभा सीटें आती हैं। विजयवर्गीय ने काम शुरू कर दिया है। वे अब तक नागपुर में कई दौर की बैठकें कर चुके हैं। 
  • मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल: वर्धा और अमरावती जिले की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसमें वर्धा में चार और अमरावती जिले में आठ विधानसभा सीटें आती हैं। मंत्री पटेल वहां स्थानीय कार्यक्रमों में पहुंचे हैं। रणनीतिक तौर पर भी मंथन का दौर चल रहा है। 
  • मंत्री विश्वास सारंग: अकोला और बुलढाणा जिले काम का सौंपा गया है। अकोला जिले में पांच और बुलढाणा जिले 7 विधानसभा सीटें आती हैं। मंत्री सारंग रणनीति बनाकर मैदान में उतर गए हैं। पिछले दिनों उन्होंने नागपुर में प्रवासी बैठक में भाग लिया था। 
  • पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा: भंडारा और गोंदिया जिला दिया गया है। पूर्व मंत्री मिश्रा ने वहां अपना काम शुरू कर दिया है। वे प्रवासी कार्यकर्ताओं की बैठक में शामिल हुए थे। वे अर्जुनी मोरगांव विधानसभा क्षेत्र में कई दौर का मंथन कर चुके हैं। 
  • डॉ. निशांत खरे: युवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ.खरे को महाराष्ट्र की आदिवासी बहुल 25 सीटों का काम ​सौंपा गया है। उन्होंने मोर्चा संभाल लिया है। पिछले दिनों मुंबई में शिव प्रकाश और भूपेंद्र यादव की मौजूदगी में हुई बैठक में वे शामिल हुए थे।

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