पुणे पोर्श केस : चार्जशीट में नाबालिग आरोपी का नाम नहीं, 900 पन्नों के आरोप पत्र में 7 आरोपी और 50 गवाह

पुणे पोर्श हादसे के मामले में नाबालिग के पिता और दादा पर ड्राइवर का अपहरण करने और उस पर एक्सीडेंट की जिम्मेदारी खुद पर लेने का दबाव बनाने का आरोप है।

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Vikram Jain
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Maharashtra Pune Porsche Car Accident Case Chargesheet Filed
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MUMBAI. महाराष्ट्र में हुए पोर्श कार हादसे में पुणे पुलिस ने करीब दो महीने बाद 900 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की है। जिसमें कथित तौर पर गाड़ी चला रहे एक नाबालिग लड़के के माता-पिता को भी शामिल किया गया है। पुलिस के इस भारी-भरकम चार्जशीट में 50 गवाहों के बयान शामिल हैं।

चार्जशीट में नाबालिग आरोपी का नाम नहीं

सेशन कोर्ट में गुरुवार को दाखिल की गई चार्जशीट में 17 साल के नाबालिग आरोपी का नाम शामिल नहीं किया गया है।  नाबालिग का मामला जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) के सामने है। मामले में 7 आरोपियों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र रचने और साक्ष्य मिटाने से संबंधित धाराओं के तहत आरोपी बनाया गया है। इनमें नाबालिग के माता-पिता, ससून जनरल अस्पताल के दो डॉक्टर और एक कर्मचारी और दो बिचौलिए शामिल हैं। पुणे पोर्श केस में नाबालिग आरोपी के पिता और दादा पर ड्राइवर की किडनैपिंग करने और उस पर एक्सीडेंट की जिम्मेदारी खुद पर लेने का दबाव बनाने का आरोप है।

इस मामले में शुरुआत में किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) ने घटना के तुरंत बाद एक रियल एस्टेट डेवलपर के बेटे को जमानत दे दी थी और उसे सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने का निर्देश दिया था। जिसकी कड़ी आलोचना के बाद, पुलिस ने फिर से जेजेबी से संपर्क किया, जिसके बाद संशोधित आदेश जारी हुआ, जिसके तहत आरोपी किशोर को पर्यवेक्षण गृह में भेज दिया गया।

मामले में पुलिस ने इन लोगों को किया है गिरफ्तार

इस मामले में आरोपी के माता-पिता और अस्पताल के कर्मचारियों के अलावा, पुलिस ने घटना के संबंध में उसके दादा को भी हिरासत में लिया है। फिर कथित तौर पर मध्यस्थ के रूप में काम करने और आरोपी डॉक्टरों और किशोर के पिता के बीच वित्तीय लेनदेन में सहायता करने के आरोप में दो और लोगों को गिरफ्तार किया गया।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिया था रिहाई का आदेश

मामले में 25 जून को हादसे में शामिल नाबालिग को बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के बाद पर्यवेक्षण गृह से रिहा कर दिया गया था। तब तक आरोपी करीब 36 दिनों तक किशोर न्याय बोर्ड के निगरानी गृह में था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने नाबालिग को निगरानी गृह में भेजने के आदेश को अवैध माना था और इस बात पर जोर दिया कि किशोरों से संबंधित कानून का पूरी तरह से पालन किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि न्याय को हर चीज से ऊपर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

इस मामले में हाईकोर्ट ने अधिकारियों को नाबालिग को जमानत पर रिहा करने का निर्देश के साथ ही उसे किसी दादा-दादी के पास नहीं रखने का निर्देश दिया, जैसा कि 19 मई को मजिस्ट्रेट ने उसे जमानत देते हुए निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की दो न्यायाधीशों वाली पीठ ने नाबालिग को जमानत पर रिहा करते हुए कहा, हम कानून, किशोर न्याय अधिनियम के उद्देश्यों और उद्देश्यों से बंधे हैं और अपराध की गंभीरता या जघन्यता के बावजूद हमें उसे कानून के साथ संघर्षरत किसी भी बच्चे के रूप में मानना चाहिए।

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पुणे पुलिस को सुप्रीम कोर्ट जाने की अनुमति

वहीं राज्य के गृह विभाग ने पुणे पुलिस को बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने की अनुमति दी। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (अपराध) शैलेश बलकावड़े के अनुसार हमने 26 जून को राज्य सरकार को एक आवेदन प्रस्तुत किया था जिसमें कहा गया था कि कुछ आधारों पर हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने की आवश्यकता है। सरकार ने शनिवार को एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने की अपनी मंजूरी दे दी और हम जल्द ही सर्वोच्च न्यायालय में ऐसी याचिका दायर करेंगे। 

जानें क्या हैं मामला

बता दें कि पुणे में19 मई को कथित तौर पर नाबालिग आरोपी नशे की हालत में था और काफी स्पीड से पोर्श कार चला रहा था। इस दौरान कार से टकराकर दो सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा की मौत हो गई थी। नाबालिग आरोपी को उसी दिन किशोर न्याय बोर्ड ने जमानत दे दी थी और उसे अपने माता-पिता और दादा की देखरेख में रखने का आदेश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने ये शर्त भी रखी थी कि नाबालिग आरोपी को सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखना होगा।

महाराष्ट्र सरकार ने बोर्ड मेंबर्स को भेजा था नोटिस

16 जून को महाराष्ट्र सरकार ने नाबालिग आरोपी को जमानत देने वाले जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के दो सदस्यों को शो-कॉज नोटिस भेजा था।आरोपी को हादसे के बाद हिरासत में लिया गया था, लेकिन जुवेनाइल बोर्ड ने उसे 15 घंटे बाद ही जमानत दे दी थी। जमानत की शर्तों के तहत उसे सड़क दुर्घटनाओं पर निबंध लिखने, ट्रैफिक पुलिस के साथ कुछ दिन काम करने और 7,500 रुपए के दो बेल बॉन्ड भरने को कहा गया था।

राज्य सरकार ने जुवेनाइल बोर्ड के दो सदस्यों के कामकाज की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया था। कमेटी की रिपोर्ट में सामने आया कि दोनों ही सदस्यों के काम करने के तरीके में गड़बड़ियां मिली हैं। इसके बाद महिला व बाल विकास विभाग के कमिश्नर प्रशांत नरणावरे ने दोनों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया।

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