उर्दू और फारसी के उपयोग पर विवाद, I&B ministry के इस बयान से भड़क गए मीडिया वाले

भारत में उर्दू और फारसी शब्दों के उपयोग को लेकर सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदम पर विवाद हो गया है। क्या यह भाषा की शुद्धता का मामला है, या कुछ और? जानें इस इस खबर में विस्तार से...

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भारत में भाषा सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति, पहचान और राजनीति का भी आईना है। हाल ही में एक अनूठा विवाद (language dispute) सामने आया- सूचना और प्रसारण मंत्रालय (I&B) ने देश के पांच बड़े हिंदी न्यूज चैनल (TV9 भारतवर्ष, आज तक, ABP, Zee News और TV18) को एक दर्शक की शिकायत फॉरवर्ड की। इसमें आरोप था कि ये चैनल लगभग 30% उर्दू शब्दों का प्रयोग करते हैं। महाराष्ट्र निवासी शिकायतकर्ता एसके श्रीवास्तव मानते हैं कि यह जनता के साथ धोखा और आपराधिक कृत्य है।

PIB Fact Check और सरकारी बयानों में स्पष्ट किया गया कि यह महज एक शिकायत है, कोई औपचारिक आदेश या प्रतिबंध नहीं।

इस मुद्दे को 5 प्वाइंट से ऐसे समझें

  1. मुद्दा क्या है: हाल ही में सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने पांच प्रमुख हिंदी न्यूज चैनलों को एक दर्शक की शिकायत फॉरवर्ड की, जिसमें आरोप था कि चैनल अपने प्रसारण में करीब 30% उर्दू शब्दों का इस्तेमाल करते हैं।

  2. फैक्ट चेक: I&B ने कोई औपचारिक बैन नहीं लगाया- सिर्फ CPGRAMS पर शिकायत सीधा भेजी गई, उसका जवाब मांगा गया।

  3. कानूनी स्थिति: चैनल की भाषा, शब्दों का प्रतिशत- इन सब पर न केंद्र सरकार पाबंदी लगा सकती है, न कोई मंत्रालय।

  4. सोशल मीडिया इफेक्ट: टेलीविजन, फिल्म, कोर्ट बेंचों- हर जगह उर्दू शब्दों का सहज और आवश्यक उपयोग चलता आ रहा है।

  5. पाठकों के लिए: भाषा की शुद्धता या राजनीतिकरण की बहस खोखली है- मूल बात प्रयोग, बोधगम्यता और साझा विरासत है।

हिंदी और उर्दू: रोजमर्रा की जड़ों में एकता

क्या कभी ध्यान दिया है, हमारे रोजमर्रा संवाद में कौन-से शब्द किस भाषा से आते हैं? मेज, कुर्सी, दुकान, अदालत, हव्वा, खत, तस्वीर, आईना, कागज- यह सूची हजारों शब्दों की है। इनमें से अधिकांश शब्द अरबी-फारसी के रास्ते उर्दू (Hindi Urdu Persian) होते हुए हमारे जीवन में घुलमिल गए हैं।

आम बोलचाल के शब्द: हिंदी-उर्दू जड़ाव की मिसाल
हिन्दी शब्दमूल भाषा (स्रोत)उपयोग की गुणवत्ता
आदमीफारसीइंसान, मनुष्य
अदालतअरबी/फारसीन्यायालय
उम्रअरबीजीवन, आयु
गुस्साअरबीक्रोध
वजहअरबीकारण
मौसमअरबीऋतु
खतअरबीचिट्ठी
तस्वीरअरबी/फारसीचित्र
किताबअरबीपुस्तक

इन शब्दों को निकालेंगे तो संवाद अधूरा हो जाएगा। आज कोई खत बोले या पत्र-माहौल एक सा रहता है।

चैनलों में भाषा क्यों घुलती-मिलती है?

समाचार चैनल स्क्रिप्टिंग के दौरान सहज, आकर्षक और बोधगम्य भाषा का चयन करते हैं। शब्दों का दोहराव न हो, इसके लिए संवाद शैली में कभी भरोसा, कभी यकीन, कभी विश्वास- तीनों का इस्तेमाल होता है। चैनल के संपादक जानते हैं कि आम आदमी को वही भाषा समझ आएगी जो उसके घर-दफ्तर या सड़क-परचूनी में बोली जाती है। यह भी हकीकत है कि लोगों को चैनल की भाषा हास्यास्पद या क्लिष्ट लगे तो TRP खुद गिरने लगती है, चाहे कोई भी रीजन हो।

कानून बनाम भाषा की हकीकत

दरअसल I&B (Ministry of Information and Broadcasting) नियमों में भाषा प्रतिशत तय करने का प्रावधान ही नहीं है- कानून सिर्फ अश्लीलता, राष्ट्र विरोध, सामाजिक शालीनता पर नियंत्रण, चैनल की मुख्य भाषाओं की घोषणा जैसी औपचारिकताओं तक सीमित है। सरकार की राजभाषा नीति भले हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देती हो, पर चैनलों पर वह बाध्यकारी नहीं।

सूचना मंत्रालय, भ्रष्टाचार, और विडंबना

जिन शब्दों पर आपत्ति हुई, वही मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट, पीआईबी रिलीज या सरकारी कम्युनिकेशन में भी इस्तेमाल होते हैं। सरकारी बयान में कथित, तहत, शिकायत, नियम- सब उर्दू-फारसी जड़ों के हैं। क्या टीवी न्यूज चैनलों पर आदेश लागू करना और सरकार पर नहीं- यह विडंबना नहीं तो और क्या है?

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: भाषा धर्म नहीं!

2025 में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र नगर परिषद के एक साइनबोर्ड पर उर्दू की चुनौती वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा-

भाषा कोई धर्म नहीं, यह संस्कृति और समाज की पहचान का मापदंड है। उर्दू गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल है।

हकीकत है कि दैनिक हिंदी भी उर्दू शब्दों के बिना अधूरी है, खुद हिंदी भी फारसी शब्द हिंदवी से बना है।

भाषा कोई दीवार नहीं, संवाद की पुल है। विविधता की ताकत को कमजोरी मत बनाओ।

I&B के नोटिस के दावों का सरकार ने खंडन किया

सामाजिक शिविरबंदी और शब्दों का धर्म

समाज में उर्दू के लिए मुसलमानों की भाषा जैसी धारणा एकतरफा, वैज्ञानिक और ऐतिहासिक दृष्टि से गलत है। 150 से ज्यादा साल के हिंदी लेखन-पठन- चाहे प्रेमचंद हो, शिवपूजन सहाय या जयशंकर प्रसाद- उसमें उर्दू के शब्द और रवानगी दिखेगी ही।

क्या कहता है कानून?

टेलीविजन नेटवर्क अधिनियम 1995 और टेलीविजन नेटवर्क नियम 1994 में भाषा प्रतिशत का कोई प्रावधान नहीं है।
टेलीविजन नेटवर्क अधिनियम 1995 और उसके तहत बने टेलीविजन नेटवर्क नियम 1994 में भाषा प्रतिशत से संबंधित कोई प्रावधान नहीं है। इन नियमों में केवल विषय वस्तु की शालीनता, राष्ट्रीय हित, अश्लीलता आदि पर रोक लगाने की बात की गई है, लेकिन भाषा के प्रतिशत पर कोई नियंत्रण नहीं है।

चैनल की भाषा की औपचारिक घोषणा

जब चैनल मिनिस्ट्री ऑफ इंफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग (MIB) से अपलिंकिंग या डाउनलिंकिंग की अनुमति प्राप्त करते हैं, तो वे अपनी चैनल की भाषा जैसे हिंदी, इंग्लिश, मलयालम आदि घोषित करते हैं। यह सिर्फ एक औपचारिकता होती है, जिसका उद्देश्य मुख्य भाषा का उल्लेख करना है। इसमें यह जरूरी नहीं होता कि उस भाषा में कितना प्रतिशत कंटेंट होगा।

भारत सरकार की राजभाषा नीति

भारत सरकार की राजभाषा नीति के तहत सरकारी कामकाज और संचार में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के प्रयास किए जाते हैं, लेकिन यह टेलीविजन चैनलों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है।

FAQ

सूचना और प्रसारण मंत्रालय और मीडिया चैनलों के बीच भाषा को लेकर विवाद क्यों है?
यह विवाद एक दर्शक की शिकायत से उत्पन्न हुआ था, जिसमें आरोप था कि प्रमुख हिंदी समाचार चैनल अपने प्रसारण में लगभग 30% उर्दू शब्दों का उपयोग करते हैं। मंत्रालय ने इस शिकायत को फॉरवर्ड किया, लेकिन कोई औपचारिक प्रतिबंध नहीं लगाया।
क्या हिंदी, उर्दू और फारसी भारत में आपस में जुड़े हुए हैं?
जी हां, रोजमर्रा की हिंदी और उर्दू में कई शब्द फारसी और अरबी से लिए गए हैं, जो भारत की जुड़ी हुई भाषाई और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं।
क्या सरकार मीडिया प्रसारण में भाषा के प्रतिशत को कानूनी रूप से लागू कर सकती है?
नहीं, सरकार मीडिया प्रसारण में भाषा के उपयोग के प्रतिशत पर कोई पाबंदी नहीं लगा सकती है। कानून केवल अश्लीलता, राष्ट्रविरोध और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों को नियंत्रित करता है।

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