हाई कोर्ट की चिंता: नाबालिगों के लिव-इन बने बड़ी चुनौती

हाई कोर्ट ने नाबालिगों के लिव-इन रिलेशनशिप पर चिंता जताई। हाल के महीनों में चार मामले सामने आए, जिनमें गर्भवती होने पर पार्टनर ने साथ छोड़ दिया।

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Siddhi Tamrakar
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लिव-इन पर कोर्ट सख्त
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बाल विवाह की समस्या के बाद अब नाबालिगों के लिव-इन रिलेशनशिप नई चुनौती बन गए हैं। केवल दिसंबर और जनवरी में ही चार ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां नाबालिग गर्भवती हुई और पार्टनर ने साथ छोड़ दिया। हाई कोर्ट ने हाल ही में एक केस की सुनवाई के दौरान इस पर गहरी चिंता जताई है।

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केस स्टडीज़: लिव-इन और उसके बाद की समस्याएं

लिव-इन टूटा, परिवार ने शादी की कोशिश की

17 वर्षीय नाबालिग, 19 वर्षीय युवक के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में थी। गर्भवती होने पर युवक ने उसे छोड़ दिया। परिवार ने शादी कराने की कोशिश की, लेकिन महिला एवं बाल विकास विभाग के उड़नदस्ते ने इसे रोक दिया। बच्चे की जिम्मेदारी प्रशासन ने संभाली।

अस्पताल से मिली गर्भवती की सूचना

ग्राम मालाखेड़ी की एक नाबालिग लड़की सोशल मीडिया के जरिए एक लड़के के संपर्क में आई। दोनों ने अलग मकान लेकर साथ रहना शुरू किया। लड़की गर्भवती हुई तो लड़का उसे छोड़कर चला गया। बच्चा जन्म लेने के बाद प्रशासन की देखरेख में है।

परिवार ने छोड़ दिया स्थान

खातीवाला टैंक में रहने वाली एक छात्रा सीनियर के साथ लिव-इन में थी। लड़के के फरार होने पर लड़की अकेली हो गई। इसके बाद लड़की का परिवार बिना बताए कहीं चला गया।

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कानूनी स्थिति: लिव-इन रिलेशनशिप और बच्चों के अधिकार

अधिवक्ता मनोज बिनीवाले के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी है। 2008 के तुलसादेवी विरुद्ध दुर्घटिया केस में शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि लिव-इन से पैदा हुई संतान जायज मानी जाएगी। हालांकि, अगर मां नाबालिग है तो बच्चा केवल उसकी संपत्ति पर दावा कर सकता है।

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लिव-इन और बाल विवाह: आंकड़े और प्रशासनिक भूमिका

महिला एवं बाल विकास विभाग के बाल विवाह उड़नदस्ता ने वर्ष 1992 से अब तक 1965 बाल विवाह रोके हैं। हालांकि, लिव-इन रिलेशन पर कोई रोक नहीं है। विभाग के अनुसार, सोशल मीडिया पर दोस्ती के चलते नाबालिगों के लिव-इन मामलों में इजाफा हो रहा है।

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