मंत्री से मुस्लिम लड़की के हाथ मिलाने की आलोचना करने वाले की याचिका खारिज, केरल हाईकोर्ट ने दिया यह आदेश

यह मामला उस व्यक्ति से संबंधित था जिसने एक मुस्लिम लड़की पर शरीयत कानून का उल्लंघन करने और व्यभिचार करने का आरोप लगाया था, क्योंकि उसने केरल के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. थॉमस इसाक से एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान हाथ मिलाया था।

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Vikram Jain
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MP Jabalpur Kerala High Court rejects petition for shaking hands Muslim woman
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केरल उच्च न्यायालय (Kerala High Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी व्यक्ति को अपनी धार्मिक आस्था या प्रथाओं को दूसरों पर थोपने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ( दंगा भड़काने के इरादे से उकसाना ) और केरल पुलिस अधिनियम की धारा 119 (ए) (महिलाओं के खिलाफ अत्याचार) के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया।

यह मामला उस व्यक्ति से संबंधित था जिसने एक मुस्लिम लड़की पर शरीयत कानून का उल्लंघन करने और व्यभिचार करने का आरोप लगाया था, क्योंकि उसने राज्य के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. थॉमस इसाक (Dr. Thomas Isaac) से एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान हाथ मिलाया था।

मंत्री से हाथ मिलाने पर की थी आलोचना

यह घटना तब हुई जब केरल के एक कॉलेज में वित्त मंत्री डॉ. थॉमस इसाक आए थे। इस दौरान शिकायतकर्ता (मुस्लिम लड़की) ने मंत्री से एक सवाल पूछा और उपहार प्राप्त करते समय उनसे हाथ मिलाया। इस कार्यक्रम की मीडिया में कवरेज हुई और इसे विभिन्न चैनलों पर दिखाया गया। 

इस घटना के बाद आरोपी ने फेसबुक और व्हाट्सएप पर एक पोस्ट और वीडियो शेयर किया जिसमें उसने लड़की पर शरीयत कानून का उल्लंघन करने और इस्लामिक परंपराओं का अपमान करने का आरोप लगाया। इसके बाद लड़की ने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया। जिसमें आरोप लगाया कि उसकी पोस्ट और वीडियो ने उसकी और उसके परिवार की छवि को धूमिल किया है।

किसी पर थोप नहीं सकते अपनी राय

केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि हाथ मिलाना एक सामान्य और पारंपरिक शिष्टाचार है और इसे आधुनिक समाज में आत्मविश्वास और व्यावसायिकता का प्रतीक माना जाता है। अदालत ने यह भी कहा कि इस्लाम में किसी अपरिचित पुरुष और महिला के बीच शारीरिक संपर्क को हराम माना जा सकता है, लेकिन यह एक व्यक्तिगत मुद्दा है। जिसे थोपने का अधिकार किसी को नहीं है।

धार्मिक आस्था है व्यक्तिगत पसंद

जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन (Justice PV Kunhikrishnan) ने अपने फैसले में कुरान की आयतों का उल्लेख करते हुए कहा कि "धर्म में कोई जबरदस्ती नहीं है" (सूरा अल-बकरा 2:256) और "तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म, मेरे लिए मेरा धर्म" (सूरा अल-काफिरुन 109:6)। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि किसी की धार्मिक आस्था उसकी व्यक्तिगत पसंद है और किसी को भी अपनी धार्मिक मान्यताओं को दूसरे पर थोपने का अधिकार नहीं है।

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संविधान में मिली है धार्मिक स्वतंत्रता

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है और किसी व्यक्ति को अपनी धार्मिक मान्यताओं के पालन के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि अगर आरोपी के खिलाफ आरोप सही साबित होते हैं, तो यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघन के रूप में देखा जाएगा और भारतीय संविधान के तहत इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान का पालन सर्वोपरि है और समाज का यह कर्तव्य है कि वह संविधान का समर्थन करे और किसी की धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करे। 

आरोपी के खिलाफ कार्रवाई रहेगी जारी

अदालत ने आरोपी के खिलाफ मामला खारिज करने से इनकार कर दिया और कहा कि इस मामले की सच्चाई ट्रायल कोर्ट में तय होगी। ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया है कि वह मामले का जल्द से जल्द निपटारा करे। 

इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी धार्मिक आस्थाओं के आधार पर दूसरे पर हमला करने या उन्हें दोषी ठहराने का अधिकार नहीं है। अदालत का यह आदेश व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक सहिष्णुता की अहमियत को भी दिखता है।

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