MPPSC और ESB जैसी एजेंसियों के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला बड़ा सबक

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का अहम फैसला आया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पांच जजों की बेंच ने कहा कि चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद सरकारी नौकरी में भर्तियों के नियम बीच में नहीं बदले जा सकते।

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रामकृष्ण गौतम/ संजय शर्मा/ नील तिवारी, BHOPAL : मध्य प्रदेश समेत पूरे देश में इन दिनों सरकारी नौकरी के लिए मारामारी मची है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का अहम फैसला आया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पांच जजों की बेंच ने कहा कि चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद सरकारी नौकरी में भर्तियों के नियम बीच में नहीं बदले जा सकते। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में राजस्थान हाईकोर्ट के स्टाफ में ट्रांसलेटर्स की भर्ती के मामले में याचिका लगाई गई थी, जिसकी सुनवाई में ये फैसला सुनाया गया है। अब कोर्ट के इस फैसले का मध्य प्रदेश पर क्या और कितना असर होगा? इससे पहले प्रदेश में ऐसे कितने मामले सामने आ चुके हैं और क्या है ये पूरा मामला... 

पढ़िए द सूत्र की यह खास रिपोर्ट...

सरकारी नौकरियों में भर्ती से जुड़े नियम चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद बदले नहीं जा सकते। ये फैसला सुप्रीम कोर्ट ने एक दिन पहले राजस्थान में भर्ती से जुड़े एक मामले की सुनवाई में दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली संविधान पीठ ने अहम फैसले में कहा कि सरकारी भर्ती प्रक्रिया की शुरुआत उस विज्ञापन के जारी होने से होती है, जिसमें भर्ती प्रक्रिया की जानकारी होती है। भर्ती प्रक्रिया की शुरुआत में अधिसूचित चयन सूची में शामिल होने के लिए पात्रता मापदंडों को बीच में तब तक बदला नहीं जा सकता, जब तक मौजूदा नियम इसकी अनुमति न दें या भर्ती का विज्ञापन नियमों के विपरीत हो।

देखिए, केस कैसे-कैसे?

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उन याचिकाकर्ताओं समेत हजारों युवाओं को बड़ी राहत मिली है, जो भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद बीच में मनमर्जी से नियम बदलने के चलते नौकरी से हाथ धो बैठे थे। दरअसल, मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल यानी ESB ने पुलिस आरक्षक भर्ती का नोटिफिकेशन जारी किया था। 2023 में लिखित परीक्षा ली गई और एक साल बाद 2024 में रिजल्ट जारी किया गया। लिखित परीक्षा का कटऑफ क्राइटेरिया पूरा करने वाले अभ्यर्थियों को फिजिकल टेस्ट में शामिल होने के लिए पात्र माना गया, जबकि नोटिफकेशन में साफ लिखा था कि लिखित परीक्षा और फिजिकल टेस्ट के लिए अभ्यर्थियों को 100-100 अंक दिए जाएंगे। यानी कुल 200 अंकों में से हासिल अंकों के आधार पर ही अभ्यर्थियों की फाइनल मैरिट लिस्ट जारी की जाएगी, लेकिन लिखित परीक्षा की मैरिट लिस्ट की वजह से कटऑफ के नीचे रहने वाले अभ्यर्थियों को फिजिकल टेस्ट में शामिल होने का मौका ही नहीं मिला।

फिर हाईकोर्ट से मिल पाई राहत

हाईकोर्ट में पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा के मामले की पैरवी कर रहे एडवोकेट दिनेश सिंह चौहान ने बताया कि फिलहाल मामले की सुनवाई चल रही है, जिसके अच्छे नतीजे आने की पूरी उम्मीद है। उधर, ऐसा ही मामला मध्यप्रदेश स्वास्थ्य विभाग में 2023 की भर्ती में भी सामने आया था। उस पर दो दिन पहले ही हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए एक हजार से ज्यादा पदों पर भर्तियों का रास्ता साफ कर दिया है। 

दरअसल, स्वास्थ्य विभाग ने 2023 में 1233 पदों पर ANM की भर्ती निकाली थी। भर्ती प्रक्रिया में शैक्षणिक योग्यता को लेकर मामला हाईकोर्ट पहुंचा था। विभाग ने तीन शर्तें पूरी न करने की बात कहकर उम्मीदवारों को जॉइनिंग देने से इनकार कर दिया था। इसमें पहली शर्त थी कि उम्मीदवार को 12वीं की परीक्षा बायोलॉजी स्ट्रीम से पास होना चाहिए, दूसरी शर्त थी, किसी सरकारी अस्पताल से ANM की ट्रेनिंग पूरी होनी चाहिए। तीसरी शर्त कम से कम 2 साल के अनुभव को लेकर थी।

इन तीन शर्तों के चलते 292 अभ्यर्थियों को डॉक्युमेंट वैरिफिकेशन के दौरान बाहर कर दिया गया। इन अभ्यर्थियों ने 2019 से पहले ही पढ़ाई पूरी की थी और परीक्षा के लिए सभी जरूरी योग्यता रखते थे, जिसके बाद उन्होंने सबसे पहले हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ की शरण ली।  

खंडपीठ ने 5 अप्रैल 2024 को आदेश दिया कि कुल 1233 पदों के लिए घोषित नतीजों में पुराने नियम के तहत उम्मीदवारों को योग्य मानकर नियुक्ति दी जाए, क्योंकि जिन तीन शर्तों की वजह से 292 उम्मीदवारों को बाहर किया गया था, वो शर्तें 2019 में भर्ती का विज्ञापन जारी होने के बाद जोड़ी गई थीं। शुरुआत में इन शर्तों का कोई जिक्र नहीं था। इसके अलावा हमने देश के दूसरे राज्यों से जुड़े मामले भी खंगाले, जिसमें 2008 का 'के. मंजुश्री V/S आंध्र प्रदेश राज्य' का केस सामने आया, इसी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट पहले भी ऐसा आदेश सुना चुका है।

मध्य प्रदेश के लिए नजीर बनेगा फैसला

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में सरकारी भर्तियों में चयन प्रक्रिया के बीच ही नियम बदलने का रिवाज सा बन गया है। एडवोकेट दिनेश सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले पर कहा कि ये फैसला MPPSC और ESB जैसी सरकारी संस्थाओं की मनमानी पर अंकुश लगाने वाला है। मामले को और बारीकी से समझने के लिए हमने हाईकोर्ट के एडवोकेट सुशील तिवारी से बातचीत की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का ये डिसीजन हर राज्य के लिए नजीर बनेगा। 

समझ लीजिए आंध्रप्रदेश वाला विस्तृत केस

वहीं, एक केस में आंध्र प्रदेश सरकार ने 28 मई 2004 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश (ग्रेड II) के 10 पदों पर सीधी भर्ती का विज्ञापन जारी किया था। विज्ञापन के मुताबिक, चयन के लिए लिखित परीक्षा और इंटरव्यू को आधार बनाया गया था। 10 पदों पर भर्ती के लिए 1637 आवेदन मिले और स्क्रूटनी के बाद 1516 आवेदक लिखित परीक्षा के लिए पात्र माने गए, लेकिन बीच में लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के अंकों से जुड़े नियम बदल दिए गए, जिससे मामला कोर्ट में चला गया और लिखित परीक्षा समय पर नहीं हो पाई।

कोर्ट में सुनवाई के बाद जैसे तैजे 30 जनवरी 2005 को लिखित परीक्षा हुई, जिसमें कुल 1026 उम्मीदवार शामिल हुए। फिर 24 फरवरी 2005 को रिजल्ट आया और मार्च 2006 में इंटरव्यू के बाद 83 उम्मीदवारों की फाइनल मेरिट जारी की गई, जिससे याचिकाकर्ता के. मंजूश्री सहमत नहीं थी, उन्होंने बीच में नियम बदलने का हवाला देकर फिर से सुनवाई के लिए अपील की 

मामला खिंचता चला और 15 फरवरी 2008 को सीजेआई केजी बालकृष्णन, आरवी रवींद्रन और जेएम पांचाल की बेंच ने अहम सुनाया। 
कोर्ट ने कहा, सरकारी भर्ती की चयन प्रक्रिया के बीच में नियम नहीं बदले जा सकते, ऐसा करना पूरी तरह गलत है और
राजस्थान हाईकोर्ट में स्टाफ की भर्ती से जुड़े ताजा फैसले में भी कोर्ट ने 'के. मंजुश्री V/S आंध्र प्रदेश राज्य' केस का जिक्र किया।

सुप्रीम कोर्ट ने ताजा फैसला इस केस में दिया

मामला राजस्थान हाईकोर्ट के स्टाफ में 13 ट्रांसलेटर्स के पदों पर भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा है। उम्मीदवारों को लिखित परीक्षा के बाद इंटरव्यू में शामिल होना था, जिसमें 21 उम्मीदवार हाजिर हुए इनमें से सिर्फ तीन उम्मीदवारों को हाईकोर्ट ने क्वालिफाइड माना। बाद में पता चला हाईकोर्ट ने ये आदेश दिया था कि केवल उन्हीं उम्मीदवारों का चयन किया जाए, जिन्होंने कम से कम 75% अंक हासिल किए हों, लेकिन जब पहली बार भर्ती प्रक्रिया की अधिसूचना जारी हुई थी तो 75% अंकों वाले मापदंड का कोई जिक्र ही नहीं था।

फाइनल सिलेक्शन संशोधित मापदंड के आधार पर किया गया, जिससे सिर्फ 03 उम्मीदवारों का चयन हुआ और बाकी बाहर हो गए। 
इसके बाद तीन असफल उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर फाइनल सिलेक्शन को चुनौती दी, जिसे मार्च 2010 में खारिज कर दिया गया। फिर याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि भर्ती में न्यूनतम 75% अंक का नियम चयन प्रक्रिया के बीच में लागू किया, जो सही नहीं था।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया कि किसी भी सरकार चयन प्रक्रिया के बीच में नियमों में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। ऐसा करने से उम्मीदवारों के रोजगार के अधिकार का हनन होता है।

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