NEW DELHI. अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और विमान निर्माता कंपनी बोइंग (Boeing) मिलकर एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं, जिससे भविष्य की उड़ानें पर्यावरण के अनुकूल हो सकेंगी। नासा और बोइंग इस दशक में उत्सर्जन कम करने वाले सिंगल-आइजल विमान के निर्माण, परीक्षण और उड़ान भरने के लिए सस्टेनेबल फ्लाइट डिमॉन्स्ट्रेटर प्रोजेक्ट पर एक साथ काम करेंगे, जिससे आने वाले समय में लोग सस्ता हवाई सफर कर सकेंगे। दरअसल, नासा और बोइंग एमिशन कम करने वाले सिंगल-आइजल विमान के निर्माण, टेस्टिंग और फ्लाइंग के लिए सस्टेनेबल फ्लाइट डेमॉन्स्ट्रेटर प्रोजेक्ट पर एक साथ काम कर रहे हैं। नासा ने इस पार्टनरशिप की घोषणा की।
We’re partnering with @Boeing to develop technologies for the next generation of single-aisle aircraft. We'll collaborate on a full-scale demonstrator by 2030 to help the U.S. achieve net-zero carbon emissions from aviation by 2050. Follow @NASAAero: https://t.co/dFikvL0YPa pic.twitter.com/TMXIupCyEh
— NASA (@NASA) January 18, 2023
नासा 42.5 करोड़ डॉलर का निवेश करेगा
अगले सात सालों में, नासा इस प्रोजेक्ट के लिए 42.5 करोड़ डॉलर का निवेश करेगा, जबकि कंपनी और उसके पार्टनर, एग्रीमेंट के तहत तय की गई फंडिंग के बचे भाग (करीब 72.5 करोड़) का योगदान करेंगे। इसके अलावा नासा टेक्निकल एक्सपर्टाइज और फैसिलिटीज में भी कॉन्ट्रिब्यूट करेगा। नासा एडमिनिस्ट्रेटर बिल नेल्सन ने कहा, अगर हम सफल होते हैं, तो हम इन तकनीकों को 2030 तक विमानों में देख सकते हैं।
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ग्रीन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल प्लेन को बनाने में होगा
ट्रांसोनिक ट्रस-ब्रेस्ड विंग कॉन्सेप्ट में विमान के एक्स्ट्रा लॉन्ग थिन विंग होते हैं, जो डायगोनल स्ट्रट्स पर स्थिर होते हैं। यह डिजाइन विमान को एक ट्रेडिशनल एयरलाइनर की तुलना में ज्यादा फ्यूल एफिशिएंट बनाता है। दरअसल, इस शेप से कम ड्रैग पैदा होता है, जिसके कारण कम फ्यूल जलता है। इसके अलावा भी कई और ग्रीन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल प्लेन को बनाने में होगा।
प्लेन में ट्रैवल करने वाले यात्रियों को भी होगा फायदा
नासा को उम्मीद है कि फ्लाइट डेमॉन्स्ट्रेटर मौजूदा सबसे कुशल सिंगल-आइजल विमान की तुलना में फ्यूल की खपत कम हो सकेगी। इसके साथ ही यह उत्सर्जन (एमिशन) में 30 प्रतिशत की कमी लाएगा। फ्यूल की बचत न केवल पृथ्वी के लिए फायदेमंद है बल्कि प्लेन में ट्रैवल करने वाले यात्रियों को भी सस्ते टिकट मिलेंगे।
नासा 1970 के दशक में भी लाई थी तकनीक
इससे पहले 1970 के दशक में नासा विंगलेट्स नाम की एक तकनीक लेकर आई थी। विंगटिप्स के वर्टिकल एक्सटेंशन को विंगलेट्स कहते हैं। दुनियाभर में सभी प्रकार के विमानों में इसका उपयोग किया जा रहा है। इस टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से फ्यूल की काफी बचत होती है। छोटे एयरफॉइल्स के रूप में डिजाइन किए गए, विंगलेट्स एयरोडायनमिक ड्रैग को कम करते हैं। ड्रैग के कम होने से ईंधन की खपत कम होती है।