News Strike : चुनाव बाद बीजेपी वापस संघ की तर्ज पर मजबूत करेगी संगठन !

इस बार के वोटिंग पैटर्न ने ये साफ कर दिया कि सिर्फ मोदी के फेस पर जीत हासिल की जा सकती है, लेकिन विपक्षियों को बुरी तरह पछाड़ने के लिए आरएसएस की जरूरत से इंकार नहीं किया जा सकता। इससे अब फिर पुरानी व्यवस्था लाने का फैसला कर लिया है...

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Jitendra Shrivastava
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News Strike : लगातार घट रहे मतदान प्रतिशत से बीजेपी ( BJP ) की अक्ल ठिकाने आ चुकी है। इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी 400 पार करेगी या नहीं ये तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन जीत तो तय मानी ही जा सकती है। बावजूद इसके कि कांग्रेस ( Congress ) और इंडिया गठबंधन के दलों के नेता भरपूर कॉन्फिडेंस में दिख रहे हैं। फिर भी बीजेपी के विजयी रथ को रोक सकें क्या इतने मजबूत हो गए हैं ये 4 जून को ही पता चलेगा। फिलहाल बीजेपी ने एक सबक सीख लिया है और दोबारा आरएसएस की शरण में ही रहने का फैसला किया है। इस बार के वोटिंग पैटर्न ने ये साफ कर दिया कि सिर्फ मोदी के फेस पर जीत हासिल की जा सकती है, लेकिन विपक्षियों को बुरी तरह पछाड़ने के लिए आरएसएस की जरूरत से इंकार नहीं किया जा सकता। ये ज्ञान मिलते ही आरएसएस वाली व्यवस्था लागू करने का फैसला कर लिया है।

घट रहा मत प्रतिशत बीजेपी को चिंता में डाल रहा 

लोकसभा चुनाव बाद बिना ब्रेक लिए बीजेपी आगे की तैयारियों में जुट जाएगी। इसकी शुरूआत आरएसएस की पुरानी व्यवस्था पर चलते हुए संभागीय संगठन मंत्रियों की नियुक्ति करने से होगी। हालांकि, इस बार ये तैनाती नए पैटर्न पर होगी जिसका खाका भी आरएसएस से ही तैयार होगा। आपको याद दिला दूं कि सितंबर 2022 में राजगढ़ में प्रदेश पदाधिकारी बैठक के दौरान संभागीय संगठन मंत्रियों की नियुक्ति की परंपरा पर रोक की अंतिम मुहर लगी थी, जिसके बाद संभागीय संगठन मंत्रियों को हटाने का फैसला लिया गया। इसके बाद बीते साल यानी कि 2023 में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी को अप्रत्याशित फैसले मिले, लेकिन 2024 में उस वक्त का कॉन्फिडेंस डावांडोल हो रहा है। लगातार घट रहा मत प्रतिशत बीजेपी को चिंता में डाल रहा है। इसकी एक वजह ये मानी जा रही है कि इस बार कार्यकर्ता उतना एक्टिव नहीं रहा, जितना हर चुनाव में रहता है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इंदौर लोकसभा सीट जो बीजेपी का गढ़ है वहां भी मतदान प्रतिशत कुछ खास नहीं रहा। जब भी चुनाव होते हैं तब बीजेपी के कार्यकर्ता के साथ साथ आरएसएस के कार्यकर्ता भी चुनाव प्रचार में जुट जाते हैं। बूथ लेवल पर कार्यकर्ता का एक्टिव रहना जितना जरूरी है आरएसएस का कार्यकर्ता भी वोटर को बूथ तक लाने में उतनी ही अहम भूमिका निभाता रहा है। चुनावों में तो आरएसएस की रिपोर्ट ही काफी रही है, तस्वीर क्लियर करने में, लेकिन चुनाव जैसे जैसे मोदी और शाह के इर्द गिर्द फोकस होता चला गया सिर्फ कार्यकर्ता ही नहीं कई पद भी बेमानी होते चले गए। 

मोदी आज भी बीजेपी के सबसे बड़े स्टार प्रचारक हैं

अभी पिछले ही साल की बात करते हैं। करीब जून माह के आसपास की तब ऑब्जवर ने एक रिपोर्ट छापी थी। आरएसएस की विचारधारा से जुड़ी इस पत्रिता के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने ही कर्नाटक चुनाव में हार के बाद लिखा था कि हिंदुत्व का एजेंडा और पीएम नरेंद्र मोदी की छवि चुनाव जिताने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसका ये कतई मतलब नहीं कि मोदी की इमेज पर कोई संशय है। वो आज भी बीजेपी के सबसे बड़े स्टार प्रचारक हैं, लेकिन चिंता का विषय कुछ और है। जिस पर संघ कई बार ध्यान खींचने की कोशिश कर भी चुका है। संघ की चिंता को समझने की कोशिश कीजिए।

वसुंधरा राजे का दमदार फेस भी पीछे कर दिया

आज आप बीजेपी शासित या गैर शासित ही सही, किसी भी प्रदेश का नाम लीजिए। बताइए कि वहां बीजेपी का बड़ा नेता कौन है। एमपी में शिवराज सिंह चौहान थे। जिन्हें अपने क्षेत्र में समेट दिया गया। राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया थी, लेकिन उनका दमदार फेस भी पीछे कर दिया गया। साल 2019 की जीत के बाद सारे चुनाव नरेंद्र मोदी और अमित शाह की दमदारी के आसपास सिमट कर आ गए हैं। मीडिया भी यही प्रोजेक्ट करता रहा है कि मोदी या शाह की वजह से जीत मिली है। संघ की चिंता ये है कि इन दो फेस की वजह से किसी भी राज्य में स्थानीय लीडरशिप पनप ही नहीं पा रही है। जो पुराने लीडर थे वो घर बिठा दिए गए हैं या एक दायरे में सिमटे रहने पर मजबूर कर दिए गए हैं। इसका नतीजा कर्नाटक जैसे राज्यों के चुनाव परिणाम में नजर आया। 

संघ ने भी ज्यादा सलाह देना बंद कर दिया है

कुछ ही समय पहले आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने अपने एक बयान में ये भी कहा था कि जोश में होश बनाए रखना जरूरी होता है। इस बात को भी ये इशारा समझा गया कि बीजेपी के दो प्रमुख नेताओं को ज्यादा ओवरकॉन्फिडेंस में आकर कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं को इग्नोर नहीं करना चाहिए, लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी यही गलती करती नजर आ रही है। बीते कुछ समय से ये खबरें लगातार आ रहे हैं कि आरएसएस और बीजेपी अब पिता पुत्र का संबंध नहीं रखते बल्कि, जुड़वा भाइयों वाला रिश्ता हो चुका है। इसकी वजह से भी संघ ने ज्यादा सलाह देना बंद कर दिया है, लेकिन चुनावी हालात देखकर बीजेपी ये मान चुकी है कि पुरानी व्यवस्था बनाए रखना जरूरी है। क्योंकि इस बार तो मोदी-शाह के फेस पर जीत मिल सकती है। लेकिन आने वाले दिनों में या चुनावों में ये काम आसान नहीं होगा। इसलिए एक बार फिर से बीजेपी में बंद हुई संभागीय संगठन मंत्रियों की नियुक्ति की परंपरा फिर से शुरू करने पर विचार शुरू हो गया है। 

दो साल बाद फिर संघ में होगी संगठन मंत्रियों की तैनाती  

लोकसभा चुनाव निपटने के बाद बीजेपी के शीर्ष नेताओं के साथ बैठकर इसे अमलीजामा पहनाया जाएगा। पार्टी में पूरे देश में परम्परा है कि संगठन महामंत्री चाहे राष्ट्रीय स्तर पर हो या प्रदेश स्तर पर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आता है और यह पद बेहद असरदार माना जाता है। पार्टी के कार्यक्रम जिलों में बेहतर तरीके से चलें, जनप्रतिनिधि अपने काम को ठीक तरीके से करें। इसके लिए पूर्व में हर संभाग में संगठन मंत्रियों की व्यवस्था होती थी। दो साल पहले पार्टी ने एक झटके से पूरे देश में संभागीय संगठन मंत्रियों की व्यवस्था को समाप्त कर दिया था। प्रदेश में संघ से बीजेपी में आए इन संभागीय संगठन मंत्रियों को प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य बना दिया गया था। दो साल बाद अब फिर से संघ संगठन मंत्रियों की तैनाती पर विचार कर रहा है। संघ का मानना है कि पार्टी का पिछले कुछ सालों में बेहतर विस्तार हुआ है और अन्य विचारधारा के लोग भी बीजेपी विचार परिवार से जुड़े हैं। जिन्हें संघ और बीजेपी दोनों की परिपाटी समझना जरूरी है। इसलिए भी संगठन मंत्रियों की तैनाती जरूरी है। यह संगठन मंत्री संघ की संरचना के आधार पर ही तैनात किए जाएंगे। संघ और बीजेपी दोनों ही मप्र में होने वाले अगले चुनावों में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। दोनों के सामने बड़ी चुनौती नए और पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं में तालमेल बिठाना है। साथ ही नई और भरोसेमंद लीडरशिप डेवलेप करना है। ये काम संगठन मंत्रियों की रिपोर्ट के आधार पर ही आगे बढ़ेगा। 

देर से आने से पहले ही दुरुस्त आ गए। बीजेपी और संघ के फैसले पर शायद यही कहा जा सकता है। क्योंकि, लोकसभा चुनाव में सिर्फ फेस मोदी के सहारे चुनाव जीतने चली बीजेपी वोटिंग परसेंटेज के हालात देखकर समझ चुकी है कि संघ की अनेदखी से काम नहीं चलेगा। तो बहुत देर हो जाए इसलिए बीजेपी ने फिर संघम शरण गच्छामी का मंत्र जपना शुरू कर दिया है।

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