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New Delhi. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले में आज यह केस 5 जजों की संवैधानिक पीठ को सौंप दिया है। अदालत ने कहा कि इस पर अगली सुनवाई 18 अप्रैल को की जाएगी, इससे पहले केंद्र सरकार ने इस मामले पर हलफनामा पेश कर कहा था कि यह देश की पारिवारिक व्यवस्था के खिलाफ है। साथ ही इसमें कई कानूनी अड़चनें भी हैं।
आज की सुनवाई में अदालत ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज का केस महत्वपूर्ण है और इस पर 5 जजों की संवैधानिक पीठ आगे की सुनवाई करेगी। शीर्षकोर्ट ने यह भी कहा कि मामले का सीधा प्रसारण किया जाएगा। उधर सरकार ने मामले में दोनों पक्षों की दलीलों में कटौती न करने का आग्रह अदालत से करते हुए कहा कि इस फैसले का पूरे समाज पर असर पड़ेगा। दरअसल इस याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत सेम सेक्स मैरिज का पंजीयन किए जाने की मांग की गई है।
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अदालत में दाखिल हलफनामे में रविवार को सरकार ने कहा कि आईपीसी की धारा 377 के जरिए इसे वैध करार दिए जाने के बावजूद, याचिकाकर्ता देश के कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह के लिए मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं। हलफनामें में कहा गया है कि विवाह, कानून की एक संस्था के रूप में विभिन्न विधायी अधिनियमों के तहत कई वैधानिक परिणाम हैं
हलफनामे में कहा गया कि भारतीय लोकाचार के आधार पर ऐसी सामाजिक नैतिकता और सार्वजनिक स्वीकृति का न्याय करना और उसे लागू करना विधायिका का काम है। भारतीय संवैधानिक कानून न्यायशास्त्र में किसी भी आधार के बिना पश्चिमी निर्णयों को इस संदर्भ में आयात नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध से संबंधित याचिकाओं का यह कहते हुए विरोध किया कि इससे व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों में संतुलन प्रभावित होगा। इससे पहले शीर्ष कोर्ट ने छह जनवरी को समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर देश भर के विभिन्न हाई कोर्ट के समक्ष लंबित सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए उन्हें अपने पास स्थानांतरित कर लिया था।