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कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर निक्कू मधुसूदन दुनिया भर में चर्चा के विषय बने हुए हैं। दरअसस जब निक्कू मधुसूदन कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से देर रात घर लौट रहे होते थे तो उनकी नजरें अकसर तारे निहारने लगती थीं। उनके मन में वही पुराना सवाल गूंजता था कि क्या इस विशाल ब्रह्मांड में सिर्फ हम ही हैं? इसके बाद उन्होंने इसपर रिसर्च शुरू की।
IIT-BHU से कैम्ब्रिज तक का सफर
निक्कू मधुसूदन ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (IIT BHU) से भू-तकनीकी इंजीनियरिंग में पढ़ाई की। इसके बाद MIT से मेटा-मैटेरियल्स में मास्टर्स और फिर खगोलभौतिकी में पीएचडी कर एक्सोप्लैनेट के वातावरण के अध्ययन की नई तकनीक विकसित की। पीएचडी के बाद मधुसूदन ने MIT, प्रिंसटन और येल जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में गहन शोध किया। 2013 में उन्हें कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में लेक्चरर के तौर पर नियुक्त किया गया।
नासा का जेम्स वेब टेलीस्कोप बना गेम-चेंजर
2021 में नासा द्वारा जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) के लॉन्च के बाद, मधुसूदन को यकीन था कि विज्ञान में नया अध्याय शुरू होगा। उन्होंने भी अपने रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए JWST का स्लॉट बुक कर लिया। और दूसरी दुनिया की खोज जारी रखी। 2023 में निक्कू मधुसूदन को मौका मिला। उन्होंने JWST की मदद से K2-18b नाम के ग्रह पर अध्ययन शुरू किया, जो धरती से 2.6 गुना बड़ा है और जीवन के लिए सूर्य से भी सही दूरी पर स्थित है, जिससे वहां जीवन की संभावना बनी रहती है।
मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड ने जगाई उम्मीदें
जब टेलीस्कोप से डेटा आया, तो मधुसूदन की टीम ने K2-18b के वातावरण में मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड की उपस्थिति दर्ज की। इससे पहली बार पृथ्वी के बाहर जीवन के संकेत मिलने की उम्मीद जगी। सबसे चौंकाने वाली खोज थी डाइमिथाइल सल्फाइड (DMS) और डाइमिथाइल डाइसल्फाइड (DMDS) गैसों के संकेत। ये गैसें पृथ्वी पर सिर्फ समुद्री जीवों से बनती हैं, जो बाहरी जीवन की संभावना को और मजबूत करती हैं।
K2-18b पर DMS क्यों है हजारों गुना ज्यादा?
एक सवाल वैज्ञानिकों को उलझा रहा है — K2-18b पर DMS और DMDS की मात्रा पृथ्वी से हजारों गुना ज्यादा क्यों है? पृथ्वी पर जहां DMS एक अरबवें हिस्से में है, वहीं K2-18b पर यह दस लाख हिस्सों में मौजूद है। अब निक्कू मधुसूदन और उनकी टीम इस रहस्य को हल करने के लिए JWST की मदद से और भी गहन अध्ययन कर रहे हैं। उनकी कोशिश है कि इस ग्रह के वातावरण को और बेहतर समझा जा सके।
नए हाइसीन ग्रहों पर भी चल रहा है रिसर्च
निक्कू मधुसूदन (nikku madhusudhan) की नजर अब ऐसे हाइसीन ग्रहों पर है, जिनके पास हाइड्रोजन भरा वातावरण और गहरे महासागर हो सकते हैं। वे करीब एक दर्जन ग्रहों में से चार पर विस्तार से अध्ययन कर रहे हैं। निक्कू मधुसूदन मानते हैं कि JWST की मदद से अब जीवन की खोज एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है। असली सवाल अब सिर्फ यह नहीं रह गया कि जीवन है या नहीं, बल्कि यह है कि क्या मानवता उसे खोजने के लिए तैयार है?
निक्कू मधुसूदन के बारे में जानिए
- नाम-निक्कू मधुसूदन
- जन्म स्थान- भारत (वाराणसी)
- शिक्षा- IIT-BHU (भू-तकनीकी इंजीनियरिंग), MIT (मास्टर्स और पीएचडी - खगोल भौतिकी)
- प्रमुख शोध क्षेत्र- एक्सोप्लैनेट के वायुमंडल का अध्ययन, जीवन के संकेतों की खोज
- वर्तमान पद- प्रोफेसर, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी
- प्रमुख उपलब्धि- हाइसीन ग्रहों की अवधारणा, K2-18b पर संभावित जीवन के संकेत
- टारगेट-ब्रह्मांड में जीवन के रहस्यों को जानने की जिज्ञासा
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