NSA Ajit Doval : नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं। इसके बाद अजीत डोभाल को भी लगातार तीसरी बार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) बनाया गया है। वे एक बार फिर इसी पद पर बने रहेंगे। अजीत डोभाल पंजाब में आईबी के ऑपरेशनल चीफ के तौर पर और कश्मीर में एडिशनल डायरेक्टर के तौर पर काम कर चुके हैं। इस वजह से उन्हें दोनों संवेदनशील क्षेत्रों में पाकिस्तान की साजिश का सीधा अनुभव है।
पीएम का सबसे विश्वसनीय अधिकारी होता है एनएसए
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को अपने कार्यकाल के दौरान कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जाएगा। उनकी नियुक्ति की शर्तें और नियम अलग से अधिसूचित किए जाएंगे। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एक संवैधानिक पद है। पीएम का सबसे विश्वसनीय अधिकारी एनएसए ही होता है। रणनीतिक मामलों के साथ ही आंतरिक सुरक्षा के मामलों में भी वो प्रधानमंत्री की मदद करता है। कब क्या फैसला लेना सही होगा, इसकी वो सलाह देता है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खास माना जाता है। ऐसा नहीं है कि डोभाल मोदी के पीएम बनने के बाद बीजेपी के करीब आए। डोभाल को लालकृष्ण आडवाणी भी काफी महत्व देते थे। डोभाल की पहचान एक तेजतर्रार जासूस और रक्षा विशेषज्ञ की रही है।
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अजीत डोभाल की चर्चा शुरू हुई 1988 से
1988 में स्वर्ण मंदिर के पास जहां एक जमाने में जरनैल सिंह भिंडरावाले की तूती बोलती थी, वहां अमृतसर के लोगों और खालिस्तानी अलगाववादियों ने एक रिक्शावाले को बहुत तन्मयता से रिक्शा चलाते देखा। वो इस इलाके में नया था। वैसा ही लग रहा था जैसे आम तौर से रिक्शावाले लगते हैं, लेकिन फिर भी खालिस्तानियों को उस पर कुछ शक हो चला था। ऑपरेशन ब्लैक थंडर से दो दिन पहले वो रिक्शावाला स्वर्ण मंदिर के अहाते में घुसा और पोजीशन और संख्या के बारे में महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी लेकर बाहर आया। वो रिक्शावाला और कोई नहीं भारत सरकार के तत्कालीन सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल थे।
मोची का काम करते खुफिया जानकारी जमा करते थे
नाम न बताने की शर्त पर इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि इस ऑपरेशन में बहुत बड़ा जोखिम था, लेकिन हमारे सुरक्षा बलों को खालिस्तानियों की योजना का पूरा खाका अजीत डोभाल ने ही उपलब्ध कराया था। नक्शे, हथियारों और लड़ाकों की छिपे होने की सटीक जानकारी डोभाल ही बाहर निकाल कर लाए थे। इसी तरह अस्सी के दशक में डोभाल की वजह से ही भारतीय खुफिया एजेंसी मिजोरम में अलगाववादियों के शीर्ष नेतृत्व को भेदने में सफल रही थी और चोटी के चार बागी नेताओं ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के सामने हथियार डाले थे। डोभाल के अंडर काम कर चुके एक अधिकारी बताते हैं कि हम लोगों पर कोई ड्रेस कोड लागू नहीं था। हम लोग कुर्ता पायजामा, लुंगी और साधारण चप्पल पहनकर घूमा करते थे। सीमा पार जासूसी के लिए जाने से पहले हम लोग दाढ़ी बढ़ाते थे। वो कहते हैं कि अंडर कवर रहना सीखने के लिए हम लोग जूते बनाने तक का काम सीखते थे ताकि हम टारगेटेड इलाके में मोची का काम करते हुए खुफिया जानकारी जमा कर सकें।
संसद पर हमले के बाद भी डोभाल में एक्साइटमेंट नहीं था
एक जमाने में डोभाल के बॉस और आईबी-रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत कहते हैं कि डोभाल का अब तक का कार्यकाल बहुत अच्छा रहा है, क्योंकि मोदी और उनके के बीच तालमेल बहुत अच्छा है। असल में समय और इंसान के साथ स्टाइल बदलता है। अटल बिहारी वाजपेयी के समय में तीन-चार बहुत बड़े संकट आए, लेकिन हर बार बहुत सोच-समझ कर रिएक्ट किया गया। आजकल रिएक्शन बहुत जल्दी आता है। दुलत इसकी मिसाल भी देते हैं कि जब संसद पर हमला हुआ को ब्रजेश मिश्र पूरी घटना को टेलीविजन पर देख रहे थे। किसी तरह की कोई एक्साइटमेंट नहीं था कि वो भागे जाएं प्रधानमंत्री के पास। वो चुपचाप देख रहे थे, सिगरेट पी रहे थे और सोच रहे थे कि इसके परिणाम क्या होंगे। वो लंच के बाद ही प्रधानमंत्री के पास गए। उसके बाद ही पीएम ने भाषण दिया कि ये नहीं चलने वाला। फिर उन्होंने पाकिस्तान को चेतावनी दी।
पाकिस्तान में एक आदमी ने पूछा कि आप हिंदू हैं
अजीत डोभाल पाकिस्तान चले गए। वे वहां 6 साल तक रहे और देश के लिए कई महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाईं। कई बार उन्होंने जानकारी जुटाने के लिए अपना भेष भी बदला। यहां उनकी जासूसी की एक घटना है... अजीत डोभाल ने खुद बताया कि एक बार वे अंडरकवर होकर मस्जिद से बाहर आ रहे थे, इसलिए उन्होंने अपना वेश-भूषा और कपड़े पहनने का तरीका बदल लिया, ताकि कोई उन पर शक न कर सके। थोड़ी दूरी पर एक कोने में लंबी सफेद दाढ़ी वाला एक आदमी बैठा था, उसने उन्हें बात करने के लिए बुलाया। जैसे ही वे उसके पास पहुंचे, उस आदमी ने कहा कि आप हिंदू हैं। अजीत डोभाल ने मना कर दिया और कहा कि मैं मुसलमान हूं। वह आदमी उन्हें 4-5 गलियों से होते हुए एक छोटे से कमरे में ले गया। सफेद दाढ़ी वाले उस आदमी ने एक बार फिर कहा कि आप हिंदू हैं। अजीत डोभाल ने मना कर दिया और पूछा कि आप बार-बार क्यों पूछ रहे हैं? उस आदमी ने जवाब दिया कि उसके (अजीत डोभाल) कान में छेद है, जिसे ज्यादातर हिंदू पसंद करते हैं, मुसलमान नहीं। तब अजीत डोभाल ने कहा कि मैं हिंदू पैदा हुआ था, लेकिन मैं मुसलमान बन गया। उस आदमी ने उन्हें प्लास्टिक सर्जरी से उस छेद को भरने की सलाह दी। अजीत डोभाल ने पूछा कि वह उनके बारे में इतना चिंतित क्यों है? उन्होंने जवाब दिया कि वे भी हिंदू हैं। अजीत डोभाल को सबूत देने के लिए उन्होंने अपनी अलमारी खोली और उन्हें शिवाजी और दुर्गाजी की छोटी मूर्तियां दिखाईं।
अजीत डोभाल के बारे में कुछ रोचक बातें...
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अजीत कुमार डोभाल का जन्म 1945 में उत्तराखंड के पौड़ी गांव में हुआ था।
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अजीत डोभाल के पिता मेजर गुणानंद डोभाल भारतीय सेना में अधिकारी थे।
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अजीत डोभाल ने अपनी स्कूली शिक्षा अजमेर मिलिट्री स्कूल से पूरी की और 1967 में आगरा विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए किया। बाद में उन्हें दिसंबर 2017 में आगरा विश्वविद्यालय और मई 2018 में कुमाऊं विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया।
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अजीत डोभाल ने 1968 में सिविल सेवा उत्तीर्ण की और केरल कैडर के आईपीएस अधिकारी बने।
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उन्होंने पूर्वोत्तर में सक्रिय विद्रोही समूहों के बारे में खुफिया जानकारी जुटाने के लिए कई वर्षों तक एक अंडरकवर एजेंट के रूप में काम किया। इसी दौरान, अजीत डोभाल ने म्यांमार के राखीन में अराकान और चीन के अंदरूनी इलाकों में सक्रिय विद्रोहियों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए समय बिताया।
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पूर्वोत्तर में अजीत डोभाल की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक यह थी कि उन्होंने लालडेंगा के 7 में से 6 साथियों को अपने पक्ष में कर लिया और उन्हें शांति के लिए राजी कर लिया।
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अजीत डोभाल भारत के इतिहास में सबसे कम उम्र के पुलिस अधिकारी बने, जिन्होंने सराहनीय सेवा के लिए भारतीय पुलिस पदक जीता है। उन्हें यह पुरस्कार मात्र 6 साल की सेवा के बाद दिया गया, जबकि नियम के अनुसार सेवा का अनुभव 17 साल होना चाहिए। उनके असाधारण काम के कारण इंदिरा गांधी ने उन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया।
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नॉर्थ ईस्ट मिशन में सफलता के बाद अजीत डोभाल पाकिस्तान चले गए। वे वहां 6 साल तक रहे और देश के लिए कई महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाईं। कई बार उन्होंने जानकारी जुटाने के लिए अपना भेष भी बदला। यहां उनकी जासूसी की एक घटना है
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अजीत डोभाल वर्ष 1988 में कीर्ति चक्र से सम्मानित होने वाले पहले पुलिसकर्मी बने, जो भारत का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।
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1984 में जब सुरक्षा बलों ने खालिस्तानी आतंकवादियों को स्वर्ण मंदिर से बाहर निकालने के लिए स्वर्ण मंदिर के अंदर हमला किया, तो अजीत डोभाल उनमें से एक थे।
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कश्मीर में अजीत डोभाल का काम जानने लायक था। अशांत कश्मीर में डोभाल के काम की वजह से ही 1996 में चुनाव हुए। उन्होंने कट्टर कश्मीरी आतंकवादी कुका पार्रे का भरोसा जीतने में कामयाबी हासिल की और इखवान नामक भारत समर्थक आतंकवादी समूह का गठन किया।
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1999 में जब कंधार में हमारे विमान आईसी-814 का अपहरण किया गया था, तब जैश प्रमुख सहित बंधकों को मुक्त कराया गया था। उस घटना में अजीत डोभाल मुख्य वार्ताकार थे। उन्होंने खुलासा किया कि अगर पाकिस्तानी आईएसआई ने तालिबान की मदद नहीं की होती, तो आतंकवादी अपने मिशन में सफल नहीं हो पाते।
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अजीत डोभाल ने 1971 से 1999 के बीच इंडियन एयरलाइंस के 15 विमानों के अपहरण को रोका।
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उन्होंने अनु डोभाल से विवाह किया, जो एक गृहिणी हैं और उनके दो बेटे हैं, विवेक डोभाल और शौर्य डोभाल।
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2004 से पहले अजीत डोभाल ने मल्टी एजेंसी सेंटर (एमएसी) और ज्वाइंट टास्क फोर्स ऑन इंटेलिजेंस (जेटीएफआई) की स्थापना की थी और उसका नेतृत्व कर रहे थे, ये दोनों कंपनियां सभी सुरक्षा एजेंसियों को एक मंच पर लाने और आतंकवाद-रोधी कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करती हैं।
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अजीत डोभाल मनोवैज्ञानिक युद्ध के माहिर खिलाड़ी हैं। उन्होंने यासीन मलिक, शब्बीर शाह, पाकिस्तान समर्थक सैयद अली शाह गिलानी को बातचीत की मेज पर ला खड़ा किया।
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2004 में डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अजीत डोभाल को इंटेलिजेंस ब्यूरो का प्रमुख बनाया था।
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अजीत डोभाल ने विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की स्थापना की - जो पूर्व जासूस प्रमुखों और राजनयिकों का एक थिंक टैंक है।
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मोदी सरकार ने अजीत डोभाल को सेवानिवृत्ति से वापस लाकर 5वां एनएसए बनाया।
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2014 में जब 46 भारतीय नर्सों को इस्लामिक स्टेट ने बंदी बना लिया था, तो अजीत डोभाल ने उनकी रिहाई सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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उरी में भारतीय सर्जिकल स्ट्राइक की सफल संकल्पना का श्रेय अजीत डोभाल को दिया जाता है।
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उन्होंने डोकलाम गतिरोध को समाप्त करने में भी मदद की और पूर्वोत्तर में उग्रवादियों से निपटने के लिए निर्णायक निर्णय लिए।
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पुलवामा हमले का बदला लेने के लिए बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के शिविर पर भारतीय वायुसेना के हवाई हमले में भी डोभाल का हाथ था।