NEW DELHI. केंद्रीय बजट 2023-24 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा योजना के लिए केवल 60,000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। इसके बाद विपक्ष ने केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार बजट आंवटन में कटौती करके ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को खत्म कर रही है। वहीं केन्द्र सरकार का कहना है कि बाद में ग्रामीण नौकरियों की मांग के आधार पर इसे संसोधित किया जाएगा। महामारी ने ये साबित किया कि देश में रोजगार के लिए मनरेगा पर भारी निर्भरता है। ऐसे में सरकार को इस योजना को आगे बढ़ाने की जरूरत है, लेकिन सरकार ने बजट में इस योजना में कम पैसों का आंवटन किया है।
मनरेगा आवंटन में 25% की कटौती की गई
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से पेश किए गए बजट 2023 में मनरेगा आवंटन में 25% की कटौती देखी गई. साल के अंत में, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा योजना में आई कमी को दूर करने के लिए अतिरिक्त 25, 000 करोड़ रुपए की मांग की थी। वित्त मंत्रालय ने केवल 16,000 करोड़ रुपए को मंजूरी दी, जिससे इस वित्तीय वर्ष के लिए संशोधित बजट 89,000 करोड़ रुपये हो गया। देश भर में मजदूर किसान मनरेगा के तहत काम करते आए हैं लेकिन इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा योजना का लाभ उठाने वाले परिवार के औसत दिन पांच साल में सबसे निचले स्तर पर है।
इस योजना से जुड़ी कुछ जानकारियां
- साल 2006-07 में इस योजना के शुरू होने के बाद 2020-21 में मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों का आंकड़ा 11 करोड़ पार कर गया था। यानी 2020 -21 में ऐसा पहला मौका आया जब मनरेगा मजदूरों की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ी। वहीं 2019-20 में लगभग 7.88 करोड़ मजदूरों ने मनरेगा के तहत काम किया। मतलब 2020-21 में 2019-20 के मुकाबले लगभग 41.75 फीसदी ज्यादा मजदूरों ने काम किया।
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- मेघालय में साल 2017 से 18 के बीच मनरेगा पर निर्भर रहने वाले लोगों की संख्या 177009 थी. साल 2018 से 19 के बीच ये आंकड़ा बढ़ कर 175100 पहुंच गया। वहीं साल 2019 से 20 के बीच ये आंकड़ा बढ़कर 205120 तक पहुंच गया।
ऐसे में सवाल ये है कि जब मनरेगा योजना के तहत काम करने वाले मजदूरों की संख्या बढ़ी है तो सरकार ने बजट में मनरेगा के लिए कम राशि क्यों आंवटित की है।
कोरोना काल से बढ़ी है मनरेगा की मांग
डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा ने एक रिपोर्ट में बताया कि कोरोना वायरस महामारी के चरम पर होने के दौरान इस योजना के तहत लगातार इसकी मांग बढ़ी। मांग को देखते हुए सरकार ने 111, 500 करोड़ रुपए खर्च किए थे। ये पैसे मनरेगा के नहीं थे। रिचर्ड महापात्रा ने बताया कि इस तरह से राशि खर्च करने पर मनरेगा बजटीय आवंटन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।
देश में रोजगार के लिए मनरेगा पर भारी निर्भरता है
नरेगा संघर्ष मोर्चा के सदस्य देबमाल्य नंदी ने कहा कि महामारी ने ये साबित किया कि देश में रोजगार के लिए मनरेगा पर भारी निर्भरता है। इसलिए सरकार को इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए बहुत सारी कोशिशें करने की जरूरत है। देबमाल्य नंदी ने ये भी कहा कि भारत सरकार ने बजट आवंटन में कमी करके वर्तमान ग्रामीण रोजगार संकट को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया है। जबकि ग्रामीणों की जरूरतों को मद्देनजर रखते हुए मनरेगा में इंवस्टमेंट को बढ़ाने की जरूरत थी।
रोजगार के दायरे को सीमित करेगा सरकार का फैसला
नरेगा संघर्ष मोर्चा के सदस्य देबमाल्य नंदी ने ये कहा कि सरकार की तरफ से जिस तरह से मनरेगा में कम पैसे आंवटित किए गए हैं उससे ये साफ होता है कि यह रोजगार के दायरे को सीमित करेगा। नतीजतन आने वाले साल में मजदूरों के भूगतान में भी देरी होगी।
40 दिन के काम का पैसा देने 1.24 लाख करोड़ रुपए की जरूरत
पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी और नरेगा संघर्ष मोर्चा के तहत काम करने वाले कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों के एक संघ का कहना है कि चालू वर्ष इस योजना के लिए 2.72 लाख करोड़ रुपए के आवंटन की करने की जरूरत है। पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी में काम करने वाले कर्मचारियों का ये भी कहना है कि कि मनरेगा से जुड़े सभी परिवारों को 40 दिन के काम का पैसा देने के लिए 1.24 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी। जो हालिया आंवटिंत किए गए रकम से दोगुने से भी ज्यादा है। नरेगा संघर्ष मोर्चा के तहत काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने ये कहा कि इस तरह के कम आवंटन का मकसद मनरेगा योजना को पूरी तरह से खत्म करने जैसा मालूम होता है। मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक निखिल डे का कहना है कि यह आवंटन न्यूनतम सीमा को भी पूरा नहीं करता है।