पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली समिति ने 'एक देश, एक चुनाव' के प्रस्ताव पर 62 राजनीतिक पार्टियों से विचार विमर्श किया था। इनमें से 32 पार्टियां इस विचार के पक्ष में थीं, जबकि 15 पार्टियां इसके विरोध में थीं और 15 पार्टियां प्रतिक्रिया देने में असमर्थ रहीं। यह पहल मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है, जिसे 2024 के लोकसभा चुनावों में भी बढ़ावा दिया गया है।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं
रामनाथ कोविंद की समिति ने 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया, जिसमें 32 दलों ने 'एक देश, एक चुनाव' का समर्थन किया, जबकि 15 विरोधी थे और 15 ने कोई जवाब नहीं दिया। यह इस पहल की राजनीतिक स्वीकृति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
मोदी सरकार की प्राथमिकता और घोषणाएं
'एक देश, एक चुनाव' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एजेंडे का अहम हिस्सा है। उन्होंने इस पर जोर देते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में इसे शामिल किया। प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से इस पहल को लागू करने की अपील की थी, ताकि चुनावों की लगातार व्यस्तता से देश की प्रगति में रुकावट न आए।
संवैधानिक बदलाव की आवश्यकता
सरकार को एक साथ चुनाव कराने के लिए सबसे पहले संविधान में पांच अहम संशोधन करने होंगे। इनमें लोकसभा और विधानसभा के चुनावों के समय को एक साथ लाने के लिए अनुच्छेद 83 में संशोधन शामिल है। इसके लिए संसद में दो तिहाई समर्थन जरूरी होगा, और इसके बाद कम से कम 15 राज्यों की विधानसभा से भी अनुमोदन प्राप्त करना होगा।
विधायिका और राष्ट्रपति की मंजूरी
'एक देश, एक चुनाव' का बिल संसद से पास होने के बाद, कम से कम 15 राज्यों की विधानसभा से मंजूरी प्राप्त करनी होगी। इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से ही यह कानून का रूप ले सकेगा। यह संवैधानिक प्रक्रिया सरकार के लिए बड़ी चुनौती पेश करती है।
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