क्या खत्म हो सकती है सिंधु जल संधि? आतंकी हमले के बाद भारत ने की रद्द, जानें क्या है प्रावधान

पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा किए गए हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि को रोकने का फैसला किया। आइए जानते हैं इसका असर क्या होगा और क्या संधि खत्म की जा सकती है।

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Rohit Sahu
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCS) की बैठक में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ 65 साल पुरानी सिंधु जल संधि को रोकने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। समझौते को को तब तक स्थगित किया गया जब तक पाकिस्तान आतंक का समर्थन करना बंद नहीं कर देता है। हालांकि समझौते को पूर्ण रूप से रद्द करने में कुछ पेंच हैं। जो वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल कोर्ट से जुड़े कानून की वजह से संभव नहीं हैं। आइए जानते हैं क्यों ये समझौता रद्द करना संभव नहीं है।

मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा किए गए हमले में 26 लोगों की मौत हो गई, जबकि कई अन्य घायल हुए।हमले के बाद भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने सेना और रक्षा और गृह मंत्री के साथ बैठक बुलाई और पाकिस्तान के खिलाफ कई बड़े फैसले लिए। इस बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल समेत शीर्ष अधिकारी मौजूद थे।

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सिंधु जल संधि तत्काल प्रभाव से स्थगित

बैठक के बाद विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने सरकार की ओर से बयान जारी करते हुए बताया कि भारत ने 1960 में हुई सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने का फैसला किया है। यह निर्णय तब तक लागू रहेगा जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को समाप्त नहीं करता।

अटारी इंटिग्रेटेड चेक पोस्ट बंद

सरकार ने अटारी बॉर्डर चेक पोस्ट को भी तत्काल प्रभाव से बंद करने का फैसला किया है। हालांकि, जो लोग वैध दस्तावेजों के साथ भारत में प्रवेश कर चुके हैं, वे 1 मई 2025 से पहले इसी रूट से वापस जा सकते हैं।

पाकिस्तानी नागरिकों का वीजा रद्द

एसवीईएस (SAARC Visa Exemption Scheme) के तहत पाकिस्तानी नागरिकों को जारी सभी वीज़ा को रद्द माना जाएगा। इन नागरिकों को 48 घंटों के भीतर भारत छोड़ने का निर्देश दिया गया है। इसके अलावा, अब पाकिस्तानी नागरिक एसवीईएस वीज़ा पर भारत यात्रा नहीं कर पाएंगे।

सैन्य सलाहकारों को घोषित किया गया 'अवांछित व्यक्ति'

भारत ने नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग के आर्मी, नेवी और एयर फोर्स सलाहकारों को 'पर्सोना नॉन ग्रेटा' यानी अवांछित व्यक्ति (unwanted person) घोषित किया है। उन्हें एक सप्ताह के भीतर भारत छोड़ने का आदेश दिया गया है।

भारत ने अपने सैन्य अधिकारियों को भी वापस बुलाया

भारत ने इस्लामाबाद स्थित भारतीय उच्चायोग में तैनात अपने तीनों सैन्य सलाहकारों (आर्मी, नेवी, एयर फ़ोर्स) को भी वापस बुलाने का निर्णय लिया है। इन पदों को दोनों देशों के उच्चायोगों से हटाया जाएगा।

उच्चायोग स्टाफ में कटौती

भारत ने यह भी निर्णय लिया है कि दोनों देशों के उच्चायोगों में कर्मचारियों की संख्या 55 से घटाकर 30 की जाएगी। यह नियम 1 मई 2025 से लागू होगा।

पाकिस्तान, भारत के फैसले से डरा

भारत द्वारा सिंधु जल संधि को रोकने के फैसले के बाद पाकिस्तान ने इसे लेकर विरोध जताया है। पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के नेता और पाकिस्तान के पूर्व सूचना और तकनीकी मंत्री चौधरी फवाद हुसैन ने इस फैसले को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, "भारत ऐसा नहीं कर सकता। अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत भारत इंडियन बेसिन संधि (सिंधु जल संधि) पर रोक नहीं लगा सकता, ऐसा करना समझौते से जुड़े क़ानून का उल्लंघन होगा।

क्या है सिंधु जल संधि 

सिंधु जल संधि की शुरुआत भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के समय हुई, जब पंजाब का पूर्वी हिस्सा भारत में और पश्चिमी हिस्सा पाकिस्तान में चला गया। ब्रिटिश काल में सिंधु नदी पर बनी नहरों की वजह से यह इलाका एक प्रमुख कृषि क्षेत्र बन चुका था। बंटवारे के बाद पाकिस्तान की सिंचाई व्यवस्था भारत से आने वाले पानी पर निर्भर हो गई। इसी पानी के प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए 20 दिसंबर 1947 को भारत और पाकिस्तान के इंजीनियरों के बीच एक अंतरिम समझौता हुआ, जिसके तहत भारत ने 31 मार्च 1948 तक पाकिस्तान को पूर्व निर्धारित मात्रा में पानी देने का वादा किया। यही आधार आगे चलकर 1960 की सिंधु जल संधि बना।

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1951 में, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल को भारत बुलाया। लिलियंथल ने पाकिस्तान का भी दौरा किया और वापस अमेरिका लौटकर सिंधु नदी घाटी के बंटवारे पर एक लेख लिखा। यह लेख डेविड ब्लैक, जो विश्व बैंक के प्रमुख और लिलियंथल के दोस्त थे, ने पढ़ा और उन्होंने भारत और पाकिस्तान के नेताओं से इस मुद्दे पर संपर्क किया। इसके बाद दोनों देशों के बीच बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ, जो लगभग एक दशक तक चला। अंततः 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी समझौते पर हस्ताक्षर हुए।

क्या हैं समझौते की शर्तें?

समझौते के तहत, झेलम और चेनाब नदियों को पश्चिमी नदियां माना गया और उनका पानी पाकिस्तान को दिया गया, जबकि रावी, ब्यास और सतलज नदियां पूर्वी नदियां मानी गईं और उनका पानी भारत के लिए तय किया गया। इस संधि में भारत को पूर्वी नदियों के पानी का, कुछ अपवादों को छोड़कर, बिना किसी रोक-टोक के उपयोग की अनुमति दी गई। वहीं, पश्चिमी नदियों के पानी का कुछ सीमित उपयोग भारत को भी किया जा सकता था, जैसे कि बिजली उत्पादन और कृषि के लिए सीमित पानी।

क्या ये रद्द हो सकती है

इस समझौते में दोनों देशों के बीच किसी विवाद पर बातचीत करने और साइट का मुआयना करने का प्रावधान भी है। इसके तहत सिंधु आयोग का गठन किया गया, जिसमें दोनों देशों के कमिश्नरों के बीच बैठकें आयोजित की जातीं हैं। अगर कोई विवाद उत्पन्न होता, तो दोनों देशों के कमिश्नर आपस में चर्चा करते हैं और यदि हल नहीं निकलता, तो दोनों सरकारों को उसे सुलझाना होता है। इसके अलावा, तटस्थ विशेषज्ञ की मदद लेने या कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन में जाने का भी प्रावधान है। यानी कोई भी देश वर्ल्ड बैंक और अंतराष्ट्रीय कोर्ट के कानून का उल्लंघन नहीं कर सकता। मतलब पूरी तरह संधि दोनों देशों की बातचीत के बाद ही संभव है। 

सिंधु जल संधि पर क्या बोले सुप्रीम कोर्ट के वकील 

सिंधु जल संधि के संदर्भ में विराग गुप्ता ने एक संतुलित रुख अपनाने की बात कही है। उरी हमले के बाद उन्होंने अपने लेख में कहा था कि उनका मानना है कि संधि रद्द करने से पाकिस्तान की आम जनता भारत के खिलाफ भड़क सकती है, जिससे वहां की सेना और आतंकवादी संगठनों को बल मिलेगा। इसके उलट, सिंधु जल का बेहतर प्रबंधन कर जम्मू-कश्मीर और पंजाब जैसे राज्यों में ऊर्जा उत्पादन, पेयजल और सिंचाई के माध्यम से औद्योगिक विकास को गति दी जा सकती है।

पुलवामा हमले के दौरान भी उठी थी मांग

पुलवामा हमले के दौरान भी देश में संधि खत्म करने की मांग उठी थी। पाकिस्तान के सिंधु जल आयुक्त रह चुके जमात अली शाह ने तब कहा था कि संधि के प्रावधानों के अनुसार कोई भी देश इस समझौते को अकेले अपनी मर्जी से खत्म नहीं कर सकता। इसमें कोई भी बदलाव केवल भारत और पाकिस्तान की आपसी सहमति से ही संभव है, या फिर एक नई संधि के जरिए समाधान निकल सकता है।

धारा 62 के जरिए पीछे हटने की संभावना

दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय मामलों और संधियों पर लिख चुके जाने-माने लेखक ब्रह्म चेलानी ने अपनी किताब में यह तर्क दिया है कि भारत वियना कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ ट्रीटीज की धारा 62 के अंतर्गत यह कदम उठा सकता है। उनका कहना है कि यदि किसी संधि की बुनियादी स्थितियों में बड़ा परिवर्तन हो जाए—जैसे कि पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ आतंकी गुटों का समर्थन करना—तो उस स्थिति में भारत संधि से अलग हो सकता है। यह कानूनी तर्क अंतरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा भी मान्यता प्राप्त है।

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संधि के अनुसार पानी कां बंटवारा

इस संधि के तहत, भारत को तीन पूर्वी नदियां—रावी, व्यास और सतलज का पूरा उपयोग करने का अधिकार दिया गया, जबकि पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियां—सिंधु, चिनाब और झेलम का नियंत्रण सौंपा गया। इस प्रकार, भारत को कुल पानी का लगभग 30% और पाकिस्तान को 70% पानी का अधिकार मिला। भारत को तीन पूर्वी नदियों—रावी, व्यास और सतलज का उपयोग पूरी तरह से करने का अधिकार था, जबकि पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियां—सिंधु, चिनाब और झेलम दी गईं। 

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नदियों के स्रोत और भारत का इसपर दावा

सिंधु नदी कैलाश पर्वत के ग्लेशियरों से निकलती है, जो जम्मू-कश्मीर से होते हुए पाकिस्तान जाती है। चिनाब नदी हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति क्षेत्र से निकलती है और जम्मू-कश्मीर से होकर पाकिस्तान की ओर बहती है। झेलम नदी कश्मीर की वेरिनाग झरने से निकलती है, जो वुलर झील और बारामुला से होते हुए पाकिस्तान जाती है। इन नदियों की उत्पत्ति भारत में होती है, लेकिन पानी पाकिस्तान तक पहुंचता है। यही कारण है कि भारत ने इन नदियों पर अपनी महत्ता का दावा किया है। 

भारत रातोंरात नहीं रोक सकता पानी 

भारत के पास अभी ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है जो पश्चिमी नदियों का पानी तुरंत रोक सके। अगर भारत डैम बनाकर पानी रोकेगा, तो जम्मू-कश्मीर और पंजाब में बाढ़ का खतरा हो सकता है। फिलहाल, भारत ने चिनाब पर बगलीहार डैम और रतले प्रोजेक्ट, मारुसूदर नदी पर पाकल डुल प्रोजेक्ट और नीलम नदी पर किशनगंगा प्रोजेक्ट शुरू किए हैं। इनमें से बगलीहार और किशनगंगा प्रोजेक्ट ही चालू हैं। पूरे पानी को रोकने में 10 से 20 साल लग सकते हैं।

पानी रोकने पर पाकिस्तान पर क्या होगा असर

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  • पाकिस्तान की 80% कृषि योग्य जमीन सिंधु नदी प्रणाली के पानी पर निर्भर है, और बिना इस पानी के खेती संभव नहीं है।

  • सिंधु जल समझौते के स्थगित होने से खाद्य उत्पादन में गिरावट आ सकती है, जिससे लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।

  • सिंधु नदी के पानी से 237 मिलियन से अधिक पाकिस्तानी नागरिकों की जल आपूर्ति होती है, और इसके बंद होने से शहरी जल संकट पैदा हो सकता है।

  • सिंधु और झेलम नदियों पर निर्भर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स से बिजली उत्पादन प्रभावित होगा, जिससे पाकिस्तान में ऊर्जा संकट और गहरा हो सकता है।

  • पाकिस्तान के प्रमुख शहर जैसे कराची, लाहौर, और मुल्तान, जिनकी जल आपूर्ति सिंधु नदियों पर निर्भर है, पानी की कमी से संकट का सामना कर सकते हैं।

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