/sootr/media/media_files/2025/04/26/e2mUB97cZhf7G7slNbEK.jpeg)
The sootr
कभी सिलाई मशीनों की आवाज़ों से गूंजने वाला बिहार के गया जिले का छोटा-सा गांव पटवा टोली, आज फिर से उम्मीदों की नई कहानी लिख रहा है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली में दाखिले का सपना, जिसे लाखों छात्र आंखों में सजाते हैं, उसी सपने को सच करने की ओर पटवा टोली के बच्चों ने एक और मजबूत कदम बढ़ा दिया है।
'आईआईटी फैक्ट्री' के नाम से देशभर में मशहूर इस गांव ने एक बार फिर साबित कर दिया कि लगन, परिश्रम और जुनून के आगे कोई भी बाधा टिक नहीं सकती। इस बार गांव के 40 से अधिक होनहार छात्रों ने संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई मेन) 2025 – फेज 2 में सफलता हासिल की है।
देश को दिए दर्जनों आईआईटी ग्रेजुएट्स
19 अप्रैल को घोषित हुए इस परीक्षा के परिणाम न सिर्फ इन बच्चों के जीवन में उजाला लेकर आए, बल्कि पूरे गांव की आंखें भी गर्व और खुशी से नम कर दीं। अब ये सभी छात्र 18 मई को होने वाली जेईई एडवांस परीक्षा में भाग लेने के लिए तैयार हैं और शायद, उनमें से कई उस मुकाम तक पहुँचेंगे जहां से सपनों की उड़ान सच में शुरू होती है। बीते ढाई दशकों में पटवा टोली ने दर्जनों आईआईटी ग्रेजुएट्स देश को दिए हैं, और यही कारण है कि इसे आज 'बिहार की आईआईटी फैक्ट्री' कहा जाता है।
ये खबर भी पढ़ें : इंदौर में IIT JEE कोचिंग की मनमानी, फीस नहीं लौटाई, उपभोक्ता फोरम ने पकड़ा कोचिंग का झूठ, दिया आदेश
‘आईआईटी गांव’ के रूप में मशहूर पटवा टोली
/sootr/media/media_files/2025/04/26/4i330vKXr5jtBBclCxn5.jpg)
बिहार के गया जिले की एक छोटी सी बस्ती पटवा टोली आज पूरे देश में 'आईआईटी गांव' के नाम से जानी जाती है। इस गांव ने एक बार फिर अपनी शैक्षणिक उपलब्धियों से देश का ध्यान खींचा है। जेईई मेन 2025 के हाल ही में आए परिणामों में यहां के 40 से अधिक छात्रों ने सफलता प्राप्त की है, जिससे पूरे क्षेत्र में खुशी और गर्व का माहौल है।
पूर्व आईआईटी छात्रों की अनोखी पहल : मुफ्त कोचिंग
कभी बुनकरों की बस्ती के रूप में जानी जाने वाली पटवा टोली अब शिक्षा का प्रेरणास्रोत बन चुकी है। इस सकारात्मक बदलाव के पीछे 'वृक्ष संस्थान' की अहम भूमिका रही है। यह संस्थान गांव के ही कुछ पूर्व आईआईटी छात्रों द्वारा संचालित एक नि:शुल्क कोचिंग सेंटर है। इस साल इस संस्थान से जुड़े 28 छात्रों ने जेईई मेन परीक्षा में सफलता हासिल की है।
ये खबर भी पढ़ें : JEE Advance Preparation Tips : 15 दिन में ऐसे करें परीक्षा की तैयारी, ये है सही रोड मैप
वृक्ष संस्थान खास तौर पर आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों, विशेषकर बुनकर समुदाय के बच्चों को मुफ्त शिक्षा, मार्गदर्शन और मेंटरशिप प्रदान करता है। यह प्रयास न केवल बच्चों का भविष्य संवार रहा है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा बन चुका है।
सागर कुमार की प्रेरणादायक कहानी
इस साल के सफल उम्मीदवारों में सागर कुमार का नाम खास तौर पर लिया जा रहा है। कम उम्र में पिता को खो देने के बाद, सागर को आर्थिक और भावनात्मक दोनों ही मोर्चों पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। वृक्ष नामक एक एनजीओ की मदद से न सिर्फ पढ़ाई जारी रखी, बल्कि 94.8 प्रतिशत अंक हासिल कर यह साबित कर दिया कि मजबूत इरादे और सही मार्गदर्शन से कुछ भी असंभव नहीं। सागर की यह सफलता सिर्फ एक परीक्षा में अच्छे अंक लाने की नहीं, बल्कि विपरीत हालातों में उम्मीद का दामन थामे रखने की कहानी है।
ये खबर भी पढ़ें : IIT Assistant Professor Job : आईआईटी में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने का मौका, ऐसे करें आवेदन
पटवा टोली के छात्रों ने दिखाया दम
जेईई मेन्स सेशन-2 में पटवा टोली के छात्रों का प्रदर्शन शानदार रहा। छात्रा शरण्या ने 99.64 पर्सेंटाइल हासिल की, जबकि अशोक को 97.7, यश राज को 97.38, शुभम कुमार और प्रतीक को 96.55, केतन को 96.00, निवास को 95.7 और सागर कुमार को 94.8 पर्सेंटाइल प्राप्त हुए। इन सभी विद्यार्थियों की मेहनत ने न केवल उनके परिवारों के चेहरे पर मुस्कान ला दी, बल्कि पूरे समुदाय को गौरव महसूस कराया।
आखिर क्यों मशहूर है पटवा टोली?
पटवा टोली की सफलता की कहानी 1991 से शुरू होती है, जब गांव के पहले छात्र जितेंद्र पटवा ने प्रतिष्ठित आईआईटी में प्रवेश पाकर एक नया इतिहास रचा। उनकी इस उपलब्धि ने पूरे गांव के युवाओं को प्रेरित किया और धीरे-धीरे पटवा टोली शिक्षा के क्षेत्र में एक नया नाम बन गया।
आज यह स्थिति है कि लगभग हर घर से एक इंजीनियर निकल रहा है। हर साल इस गांव के कई छात्र जेईई जैसी कठिन परीक्षाएं पास कर देश के शीर्ष इंजीनियरिंग संस्थानों में दाखिला लेते हैं। यही वजह है कि पटवा टोली को अब आईआईटी फैक्ट्री के नाम से जाना जाता है।
ये खबर भी पढ़ें : 40 वर्षीय आईआईटी एमएस वर के लिए अग्रवाल वधू चाहिए
जब हर घर बने प्रेरणा का केंद्र
बिहार के गया जिले में स्थित बुनकरों की यह बस्ती आज केवल हथकरघा के लिए नहीं, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति के लिए पहचानी जाती है। यहां का हर घर एक संघर्ष, मेहनत और सफलता की मिसाल है – जहां से निकलने वाले इंजीनियर देश-विदेश में नाम रोशन कर रहे हैं।