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राजस्थान के उदयपुर जिला कलेक्टर कार्यालय में जिला रिसोर्स पर्सन (DILRMP) के पद पर कार्यरत वरिष्ठ पटवारी हेमंत उपाध्याय का इस्तीफा सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस पत्र में उन्होंने सरकारी सिस्टम की खामियों और प्रशासनिक संस्कृति पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
अपने त्यागपत्र में हेमंत उपाध्याय ने कहा कि उन्होंने 12 वर्षों तक पूरी निष्ठा और मेहनत से काम किया, लेकिन सरकारी सेवा में 'जी हजूरी' को मेहनत और ईमानदारी से ज्यादा महत्व दिया जाता है। उन्होंने लिखा, मैं ईमानदारी और मेहनत से काम करता हूं, लेकिन हर बात में 'यस सर' नहीं कर सकता।
उपाध्याय ने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया कि उन्होंने पूर्व में ईस्ट अफ्रीका में 5 वर्षों तक कार्य किया था, जहां की कार्य संस्कृति में कर्मठता और निष्ठा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती थी। लेकिन भारत में सरकारी सेवा में प्रवेश के बाद उन्हें महसूस हुआ कि यहां सत्य बोलने वाले अधिकारियों को राज्य स्तर पर हतोत्साहित किया जाता है।
उन्होंने अपने पत्र में उल्लेख किया कि, "मुझे यह सेवा अपने योग्य नहीं लगती। भले ही यह मेरा निजी मत हो, लेकिन मैं सरकार और प्रशासन को इस योग्य नहीं पाता कि मैं इनके साथ काम करूं।"
हालांकि, उपाध्याय का इस्तीफा मीडिया और सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद, अधिकारियों ने दावा किया कि उन्होंने भावावेश में आकर इस्तीफा दिया था और अब वापस ले लिया है। सूत्रों के मुताबिक, उपाध्याय को ‘वर्क फ्रॉम होम’ या आत्मचिंतन के लिए समय दिया जा सकता है, लेकिन उनकी शिकायतों पर कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है।
हेमंत उपाध्याय का इस्तीफा सिर्फ व्यक्तिगत निर्णय नहीं है, बल्कि यह सरकारी सिस्टम में निष्ठावान कर्मचारियों की स्थिति को उजागर करता है। सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन में मेहनत करने वालों को उचित सम्मान और अवसर मिलते हैं या फिर सिर्फ 'यस सर' कहने वालों को ही आगे बढ़ने का मौका मिलता है?
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