independence day 2024 : भारत को आजाद हुए 77 साल पूरे हो गए हैं। पूरा देश तिरंगामय हो गया है। तिरंगा ( Tiranaga ) जब भी लाल किले पर या क्रिकेट स्टेडियम में तिरंगा लहराता है तो देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। देश में हो या विदेश में चाहे कोई भी हो तिरंगे का रंग हमें एकजुट करता है। तिरंगा भारत की ताकत का प्रतीक है। तिरंगा झंडा हमारी पहचान है। तिरंगे को देखकर एक सवाल तो मन में आता ही होगा कि आखिर हमारे देश के झंडे को डिजाइन किसने किया होगा.......
सभी देशों के झंडों का अध्ययन
भारत देश के झंडे को साल 1921 में डिजाइन किया गया था। तिरंगे की डिजाइन का श्रेय पिंगली वेंकैया ( Pingali Venkayya ) को जाता है। तिरंगे को डिजाइन करना पिंगली वेंकैया के लिए इतना आसान नहीं रहा। पिंगली वेंकैया ने दुनियाभर के देशों का अध्ययन किया जिसके बाद तिरंगे को डिजाइन किया गया था। साल 1931 में राष्ट्र के तिरंगे अपना लिया।
महात्मा गांधी ने दिए सुझाव
झंडे में पहले लाल और हरे रंग की पट्टी हुआ करती थी। इसके बाद महात्मा गांधी का चरखा झंडे में स्थापित किया गया। बता दें कि तिरंगे में महात्मा गांधी के सुझाव पर सफेद रंग भी शामिल कर लिया गया था। साल 1931 तक कांग्रेस की हर बैठक में इसी झंडे का प्रयोग हो रहा था।
1947 में तिरंगे को अपनाया
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को डिजाइन करने वाले पिंगली वेंकैया के सम्मान में भारत सरकार ने उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया था। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था।
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तीन रंगों का अर्थ
भारतीय ध्वज तिरंगे में तीन रंग हैं जो तीन लाइन में व्यवस्थित है। इन पट्टियों को बैंड कहते हैं। तिरंगे के ऊपर की केसरिया पट्टी भारत की ताकत और साहस का प्रतीक के रूप में माना जाता है। तिरंगे के बीच की सफेद पट्टी शांति और सच्चाई का प्रतीक है। नीचे की गहरी हरी पट्टी उपजाऊ भूमि से हमारे संबंध को दिखाती है, जो विकास और समृद्धि का प्रतीक होता है। बीच में अशोक चक्र है जिसका मतलब होता है धर्म का पहिया। धर्म के पहिए में इसमें 24 तीलियां होती हैं जो देश की गतिशीलता और विकास के चक्र का भी प्रतीक माना जाता है।
झंडे का इतिहास
1906
पहला राष्ट्रीय ध्वज कलकत्ता के पारसी बगान चौक पर फहराया था। झंडा स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक था, जो ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार करने का आह्वान के रूप में फहराया था।
1907
राष्ट्रीय ध्वज को पहले झंडे की तुलना में बदला गया। झंडे में थोड़े बदलाव किए। मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस में दूसरा राष्ट्रीय ध्वज फहराया।
1917
होम रूल आंदोलन के दौरान, एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने एक अलग ध्वज फहराया। यह 9 क्षैतिज रंगीन पट्टियों से बना था- 5 लाल और 4 हरी पट्टियां।
1921
बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में कांग्रेस के एक अधिवेशन में, पिंगली वेंकैया ने महात्मा गांधी को अपने ध्वज का डिजाइन दिखाया। जिसमें सफेद, हरे और लाल क्षैतिज रंग की पट्टियां थीं, जो भारत में हिंदुओं और अल्पसंख्यक समूहों जैसे मुसलमान और सिखों जैसे समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थीं।
1931
पिंगली वेंकैया द्वारा बनाए गए इसी ध्वज में थोड़े बदलाव किए गए। अब यह वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज के समान दिख रहा था। धर्म चक्र के स्थान पर पिंगली के दूसरे ध्वज के केंद्र में एक चरखा था।
1947
भारत की स्वतंत्रता के बाद, राष्ट्रीय ध्वज का चयन करने के लिए राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। उन्होंने कांग्रेस समिति के मौजूदा ध्वज को अपनाया और चरखा को धर्म चक्र से बदल दिया, जो कानून, न्याय और धार्मिकता का प्रतीक था।
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