इसलिए बढ़ रहे हैं खाने के तेल के दाम, कारण जानकर हो जाएंगे हैरान

भारत में खाद्य तेल की बहुत अधिक खपत है। इसके लगातार बढ़ते दामों ने रसोई का स्वाद बिगाड़ दिया है। दाम कंट्रोल करने के लिए विदेशों से तेल मंगाया जा रहा है, फिर भी दाम कम होते नजर नहीं आ रहे हैं।

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Dr Rameshwar Dayal
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भक्तिकाल के जाने-माने संत व कवि कबीर का एक दोहा है- ‘जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग। तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग।’ मोटे तौर पर इसका भाव यह है कि ईश्वर को जानने-समझने के लिए तेल का भी महत्व है। दूसरी ओर हमारी भौतिक दुनिया में भी तेल (Edible Oil या खाद्य तेल) की महिमा अपरंपार है। इसके बिना हमारे भोजन के स्वाद की लुनाई (लावण्य या सलोनापन) खत्म सी होती दिखती है। इसीलिए भारत में खाद्य तेल की बहुत अधिक खपत है। लेकिन इसके लगातार बढ़ते दामों ने रसोई का स्वाद बिगाड़ दिया है। दाम कंट्रोल करने के लिए विदेशों से तेल मंगाया जा रहा है, तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए महती प्रयास किए जा रहे हैं। और तो और इस चक्कर में नकली तेल की खपत भी हो रही है, लेकिन तेल है कि उसकी धार तेज ही होती जा रही है। आज हम आपको ‘तेल और उसकी धार’ के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। 

तेजी से बढ़ रहे हैं तेल के दाम

वैसे तो महंगाई एक शाश्वत सत्य है। यह पूरी दुनिया में लगातार बढ़ती है और इसकी धार को मोड़ना बहुत ही मुश्किल टास्क है। लेकिन यह महंगाई तब ज्यादा चुभती है, जब हमारे रोजमर्रा की वस्तुओं या जिंस में इसकी तेजी से बढ़ोतरी होने लगे। इसी कड़ी में हम खाद्य तेल को भी मान सकते हैं। एक जानकारी के अनुसार फेस्टिव सीजन निकलने के बाद तेल के दामों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पिछले एक-एक माह में विभिन्न प्रकार के तेलों में दो से छह प्रतिशत और एक साल में 5-31 प्रतिशत दाम बढ़े हैं। बाजार के सूत्रों के अनुसार एक साल में मूंगफली के तेल का दाम 175 रुपए प्रति लीटर से बढ़कर 178 रुपए लीटर तो सरसों के तेल का भाव 125 रुपए से बढ़कर 152 रुपए लीटर पहुंच गया है। सोयाबीन के तेल का भाव 112 रुपए लीटर से बढ़कर 130 रुपए लीटर और सनफ्लावर के तेल का भाव 112 रुपए लीटर से बढ़कर 136 रुपए लीटर पर पहुंच गया है। देश में सबसे ज्यादा खपत पाम ऑयल की है। इसके दाम भी पिछले एक साल में 90 रुपए बढ़कर 118 रुपए लीटर पहुंच गई है। 

देश में कितनी खपत है खाद्य तेलों की

 भारत सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक विभाग मंत्रालय के अनुसार भारत में वार्षिक तेल की खपत लगभग 23.5 से 24 मिलियन टन है। इसमें से लगभग 13.5 से 14 मिलियन टन तेल का आयात किया जाता है, जो कुल आवश्यकता का लगभग 55-60 प्रतिशत है। घरेलू उत्पादन तेल की खपत को केवल 9.5 से 10 मिलियन टन ही पूरा करता है। चूंकि भारत में विभिन्न प्रकार के खाने के तेलों की खपत होती है, इसलिए कई देशों से तेल आयात किया जाता है। इनमें से इंडोनेशिया और मलेशिया से पाम ऑयल, अर्जेंटीना और ब्राजील से सोयाबीन तेल (Soybean Oil), रूस और यूक्रेन से सूरजमुखी तेल (Sunflower Oil) के अलावा अमेरिका, कनाडा, थाईलैंड, कनाडा और अमेरिका से भी तेल आयात किया जाता है। दूसरे देशों से खाद्य तेल आयात पर निर्भरता कम करने के लिए भारत सरकार राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-ऑयल पाम (NMEO-OP) जैसी योजनाओं पर भी कार्य कर रही है। लेकिन तेल पर आत्मनिर्भरता अभी दूर की कौड़ी है। वैसे आयात निर्भरता को कम करने के लिए सरकार तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने में लगी है। 

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सबसे अधिक किस तेल की खपत होती है?

एक आधिकारिक जानकारी के अनुसार, भारत में सबसे अधिक खपत होने वाला खाद्य तेल पाम तेल (Palm Oil) है। यह विभिन्न उद्योगों, विशेष रूप से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों, स्नैक्स और रेस्तरां में बड़े पैमाने पर उपयोग में लाया जाता है। इसके बाद सोयाबीन तेल (Soybean Oil) और सरसों तेल (Mustard Oil) की खपत होती है। एक और आंकड़े के अनुसार,  सरसों तेल की सबसे अधिक खपत विशेष रूप से उत्तर और पूर्वी भारत में होती है। सूरजमुखी तेल शहरों में घरेलू उपयोग में प्रचलित है तो रिफाइंड वनस्पति तेल (Vanaspati) औद्योगिक और कमर्शियल उपयोग में ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है। आपको बता दें कि भारत में पाम ऑयल की कीमत सबसे कम है और अन्य तेलों को बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। अगर तेलों के उत्पादन की बात करें तो देश में सबसे अधिक सरसो का तेल तैयार किया जाता है। 

खाने का नकली तेल भी खूब तैयार किया जाता है

भारत में नकली खाद्य तेलों की समस्या एक गंभीर मुद्दा है। ये नकली तेल आमतौर पर सस्ते और कम गुणवत्ता वाले तेलों को मिलाकर या रसायनों से प्रोसेस करके बनाए जाते हैं। इनका उपयोग करने से कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं। वैसे तो सरकारी उपक्रम भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) नकली और मिलावटी तेलों की जांच और नियंत्रण के लिए कई नियम और मानक लागू करता है। लेकिन नकली तेल उत्पादन का मकड़जाल इतना घना है कि उसे रोक पाना मुश्किल होता है। नकली तेल की पहचान करने के लिए जागरूकता अभियान और परीक्षण उपकरण भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि देश में नकली खाद्य तेल उत्पादन की सही मात्रा के बारे में कोई सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। यह एक गंभीर समस्या तो बनी हुई ही है। कई रिपोर्ट्स में यह उल्लेख किया गया है कि भारतीय खाद्य तेल बाजार में नकली तेल और मिलावट एक चुनौती है।

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नकली तेल से स्वास्थ्य संबंधी खतरे, कैसे पहचानें

भारत में तेल के बिना रसोई अधूरी है, इसकी खपत बहुत अधिक है, इसलिए लोग पहचान की कवायद में कम ही पड़ते है। वह किराने वाले पर विश्वास कर लेते हैं। लेकिन नकली तेल सेहत के लिए समस्याएं पैदा कर सकता है। नकली तेलों में हानिकारक रसायन या भारी धातुएं हो सकती हैं, जो पेट की बीमारियां, लीवर को नुकसान, यहां तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती हैं। नकली तेलों में आवश्यक पोषक तत्व नहीं होते, जिससे स्वास्थ्य लाभ नहीं मिलता। नकली तेलों में ट्रांस फैट और अन्य हानिकारक तत्व होते हैं, जो दिल की बीमारियों की संभावना बढ़ाते हैं। वैसे इन तरीकों से नकली तेल की कुछ पहचान हो सकती है। जानी-मानी डायटिशियन व न्यूट्रिशियन कंसलटेंट नीलांजना सिंह के अनुसार  नकली तेलों की गंध तेज या अप्राकृतिक हो सकती है। शुद्ध तेल को फ्रीज करने पर वह जम जाता है, जबकि नकली तेल में यह प्रक्रिया सही से नहीं होती। नकली तेल अक्सर दिखने में अधिक चमकदार या अत्यधिक साफ लग सकते हैं।

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