प्राइवेट सेक्टर को फायदा, पर कर्मियों का वेतन राई बराबर बढ़ा : रिपोर्ट

हाल ही में आए जुलाई से सितंबर तक के जीडीपी आंकड़ों ने केंद्र सरकार को चिंतित कर दिया है। इस तिमाही में जीडीपी की वृद्धि केवल 5.4 प्रतिशत रही, जो एक संकेत है कि अर्थव्यवस्था में सुधार की गति धीमी हो सकती है।

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Raj Singh
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हाल ही में आए जुलाई से सितंबर तक के जीडीपी आंकड़ों ने केंद्र सरकार को चिंतित कर दिया है। इस तिमाही में जीडीपी की वृद्धि केवल 5.4 प्रतिशत रही, जो एक संकेत है कि अर्थव्यवस्था में सुधार की गति धीमी हो सकती है। नीति निर्माताओं के लिए एक और चिंता का विषय यह है कि पिछले चार सालों में कॉरपोरेट्स के मुनाफे में चार गुना बढ़ोतरी हुई है, लेकिन कर्मचारियों की सैलरी में इसका असर नहीं दिखा। इससे केंद्र सरकार भी चिंता में है।

कर्मचारियों की सैलरी में वृद्धि दर बेहद कम- रिपोर्ट

कॉर्पोरेट दुनिया और प्रमुख आर्थिक मंत्रालयों के बीच इस समय निजी कर्मचारियों की सैलरी पर चर्चा हो रही है। फिक्की और क्वेस कॉर्प लिमिटेड द्वारा सरकार के लिए तैयार की गई एक रिपोर्ट में निजी कंपनियों के मुनाफे और कर्मचारियों की सैलरी को लेकर कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आईं। रिपोर्ट की मानें तो साल 2019 और 2023 के बीच छह प्रमुख क्षेत्रों में कर्मचारियों की सैलरी में वृद्धि दर बहुत कम हुई है। उदाहरण के लिए, इंजीनियरिंग, विनिर्माण, प्रक्रिया और बुनियादी ढांचे (EMPI) कंपनियों में यह वृद्धि केवल 0.8 प्रतिशत रही, जबकि FMCG कंपनियों में यह बढ़ोतरी 5.4 प्रतिशत रही।

रिटेल महंगाई दर करीब 5 से 7 तक रही

यह स्थिति इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि कर्मचारियों की बेसिक सैलरी में बहुत मामूली बढ़ोतरी हुई है, जो महंगाई के हिसाब से नकारात्मक असर डाल रही है। साल 2019-20 से 2023 तक के बीच, रिटेल महंगाई दर 4.8, 6.2, 5.5, 6.7 और 5.4 प्रतिशत रही, जबकि सैलरी में वृद्धि इतनी कम रही कि यह मुद्रास्फीति के मुकाबले पीछे रह गई।

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मुख्य आर्थिक सलाहकार का सुझाव

मुख्य आर्थिक सलाहकार, वी. अनंथा नागेश्वरन ने फिक्की-क्वेस रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय उद्योग जगत को अपनी नीतियों पर दोबारा विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि उद्योग को अपनी कार्यप्रणाली में बड़े बदलाव करने होंगे ताकि अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सके।

मंदी का क्या है कारण?

सरकारी सूत्रों के अनुसार, आय में कमी और शहरी क्षेत्रों में खपत का कम होना जीडीपी वृद्धि में मंदी का एक कारण हो सकता है। कोरोना महामारी के बाद, जहां खपत में बढ़ोतरी देखी गई थी, वहीं धीमी सैलरी वृद्धि ने पूरी तरह से आर्थिक सुधार में बाधा डाल दी है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि यह चिंताजनक है कि कोविड से पहले का आर्थिक स्तर अभी तक पूरी तरह से हासिल नहीं हो पाया है।

फिक्की और क्वेस की रिपोर्ट में 2019-23 के बीच अलग-अलग क्षेत्रों की सैलरी वृद्धि दर पर भी जानकारी दी गई है। बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं, बीमा (BFI) क्षेत्र में 2.8 प्रतिशत, रिटेल में 3.7 प्रतिशत, आईटी में 4 प्रतिशत, और लॉजिस्टिक्स में 4.2 प्रतिशत की सैलरी वृद्धि हुई। यह आंकड़े महंगाई की दर के मुकाबले नकारात्मक नजर आते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कर्मचारियों की खरीद क्षमता पर असर पड़ा है।

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कर्मचारियों का औसत वेतन 19 हजार रहने का अनुमान

FMCG क्षेत्र में कर्मचारियों का औसत वेतन 19 हजार 23 रुपए और आईटी क्षेत्र में यह 49 हजार 76 रुपए रहने का अनुमान है। 5 दिसंबर को एसोचैम के भारत @100 शिखर सम्मेलन में, आर्थिक सलाहकार नागेश्वरन ने कहा कि मुनाफे के साथ-साथ कर्मचारियों की सैलरी में भी संतुलन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कंपनियां अपने कर्मचारियों को उचित वेतन नहीं देतीं, तो यह उनके लिए आत्मघाती साबित हो सकता है, क्योंकि इससे उत्पादों की खपत पर असर पड़ेगा।

उच्चतम वृद्धि मार्च 2008 में रही

भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सबसे उच्चतम वृद्धि मार्च 2008 में 5.2 प्रतिशत थी, जब वैश्विक स्थिति अनुकूल थी। हालांकि, कोविड के बाद और वैश्विक संकट के बीच, 2024 में 4.8 प्रतिशत की वृद्धि को सकारात्मक माना जा रहा है। इसका मतलब है कि पिछले चार सालों में मुनाफा बढ़ा है, लेकिन श्रमिकों के वेतन में उतनी वृद्धि नहीं हुई।

'भारत में बढ़ रही असमानता'

वहीं, एक विश्लेषक ने यह भी कहा कि भारत में असमानता बढ़ रही है, और महामारी ने इसे और बढ़ा दिया है। महामारी से पहले की विकास दर से भारत लगभग 7 प्रतिशत पीछे है। इस स्थिति को देखते हुए, आने वाले समय में हमारी अर्थव्यवस्था को और अधिक चुनौती का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि श्रम की आपूर्ति बढ़ रही है, लेकिन मांग में वृद्धि की गति धीमी है।

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