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देश और दुनिया की व्यवस्था को सुधारने के लिए जो भी संघर्ष करेगा, उसे अपमान का सामना करना पड़ेगा। यह बात प्रख्यात समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने आज 13 नवंबर को दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में अध्यक्षीय भाषण देते हुए कही है। मौका था रघु जी की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक 'स्वप्न, विकल्प और मार्ग' के विमोचन समारोह का। रघु ठाकुर ने कहा कि शिक्षा का निजीकरण समाप्त करना जरूरी है। उन्होंने हथियार उद्योग को देशों के विकास में सबसे बड़ी बाधा बताते हुए कहा कि हमें समाज को भयमुक्त बनाना है, इसलिए ऐसे लोगों को ही कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाना चाहिए जिन्हें न किसी का डर हो और न ही सुरक्षा की जरूरत हो। उन्होंने सभी वैचारिक पृष्ठभूमि के लोगों के साथ बैठकर संवाद करने की जरूरत बताते हुए कहा कि चिंतन होगा तो विवाद खत्म हो जाएगा। लोकतंत्र, समानता और सुशासन की जरूरत बताते हुए रघु ठाकुर ने कहा कि इलाज को मौलिक अधिकार बनाना जरूरी है अगर सरकार सभी को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराए तो यह भ्रष्टाचार नहीं रहेगा
विश्व की संचार व्यवस्था कभी भी हो सकती है बाधित
साथ ही रघु ठाकुर का कहना है कि आलोचना अपने लोगों की भी होनी चाहिए और अपनी सरकार की भी। लोहिया ने ऐसा करके एक मिसाल कायम की थी। लेकिन आज दिल्ली में लोहिया के नाम पर एक भी सड़क नहीं है। पूंजीपतियों और शोषक राजाओं-महाराजाओं के नाम पर सड़कें हैं। रघु ठाकुर ने एलन मस्क जैसे पूंजीपतियों की मानवता विरोधी योजनाओं की आलोचना करते हुए कहा कि आज जिस तरह से वे ब्रह्मांड में अपना जाल फैला रहे हैं, उससे विश्व की संचार व्यवस्था भी कभी भी बाधित हो सकती है। हमें इसके प्रति सतर्क रहने की जरूरत है।
रघु जी का दृष्टिकोण सही मायने में लोकतांत्रिक है
समारोह में वक्ता के रूप में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली के अध्यक्ष राम बहादुर राय, प्रसिद्ध पत्रकार और भारतीय भाषाओं के समर्थक राहुल देव और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह मौजूद थे। राम बहादुर राय ने 'स्वप्न, विकल्प और मार्ग' पुस्तक को सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी राजनीतिक राह तय करने में मार्गदर्शक बताते हुए कहा कि 1970 के दशक में मध्य प्रदेश की राजनीति में सबसे बड़ा नाम रघु ठाकुर का था। उनकी जीवन यात्रा जानने के बाद किसी के भी मन में आदर्श प्रस्तुत करने की इच्छा हो सकती है। रघु जी ने जनता पार्टी के दिनों में संसदीय बोर्ड के सदस्य रहते हुए न तो खुद टिकट लिया और न ही आपातकाल के दौरान जेल गए अपने भाई को टिकट दिलाया। रघु जी का जीवन बताता है कि समाजवाद घर, जीवन और आचरण से आता है। रघु जी का दृष्टिकोण सही मायने में लोकतांत्रिक है क्योंकि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुछ नीतियों की प्रशंसा करते हैं तो कुछ की आलोचना भी करते हैं। लोकतंत्र की रक्षा के लिए रघु जी ने जेल में अमानवीय यातनाएं झेलीं। पाठकों से सत्रह अध्यायों की पुस्तक में आपातकाल से संबंधित अध्याय को पहले पढ़ने की अपील करते हुए श्री राय ने कहा कि जिस तरह से दो गुटों के बीच प्रतिस्पर्धा में जयप्रकाश नारायण का इस्तेमाल किया गया, उससे आंदोलन की ईमानदारी भी प्रभावित हुई।
'हरिजन' शब्द को समझना जरूरी
पुस्तक में जातिगत भेदभाव पर केंद्रित एक अध्याय पर बोलते हुए राय ने कहा कि गांधी जी द्वारा गढ़े गए 'हरिजन' शब्द के प्रयोग को जिस तरह दंडनीय बना दिया गया है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है और इसके पीछे एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह भी काम कर रहा है। गांधी जी के सामाजिक संदर्भ में 'हरिजन' शब्द को समझना जरूरी है। आज प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी इस शब्द के प्रयोग पर रोक लगा दी है। राय ने 'स्वप्न, विकल्प और मार्ग' में वर्णित समाजवाद, अंतरराष्ट्रीय, संपूर्ण क्रांति और आपातकाल, सांप्रदायिकता, पर्यावरण, चिकित्सा आदि पर सत्रह अध्यायों के आधार पर पुस्तक को व्यापक बताया। वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने रघु जी के सान्निध्य के अनुभव को दुर्लभ बताया और कहा कि उनकी उपस्थिति हमें कठिन समय में भी दुखी और हताश होने से रोकती है। रघु जी और राम बहादुर राय ऐसे व्यक्तित्व हैं जो चाहते तो बहुत पहले ही केंद्रीय मंत्री बन गए होते।
रघु ठाकुर जैसा व्यक्तित्व पाना बहुत मुश्किल
राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने कहा कि रघु ठाकुर जैसा व्यक्तित्व पाना बहुत मुश्किल है। रघु जी के संपर्क में आकर लोग सीख सकते हैं कि राजनीति कितनी पवित्र होती है। उदारीकरण और वैश्वीकरण ने देश को कितना नुकसान पहुंचाया है, यह उनकी किताबें पढ़कर समझा जा सकता है। रघु जी विचारों को जीते हैं। अब ऐसे नायकों की बहुत कमी है। पहले प्रभावशाली लोग उनसे मिलने के लिए घंटों लाइन में लगे रहते थे। संजय सिंह ने कहा कि रघु ठाकुर लोहिया के अनुयायी हैं और लोहिया के विचारों पर अमल करके ही सभी तरह की असमानता को खत्म किया जा सकता है। वहीं विचार ऐसी व्यवस्था बनाने की प्रेरणा देते हैं जिसमें व्यक्ति को इंसान माना जाए।