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भारत के इतिहास में रानी दुर्गावती का नाम उन वीरांगनाओं में शामिल है जिन्होंने न केवल अपने साम्राज्य की रक्षा की, बल्कि अपनी मातृभूमि के लिए जान की बाजी भी लगाई। रानी का जीवन बलिदान, संघर्ष और साहस से भरा हुआ था। उनका नाम आज भी उन वीरांगनाओं में लिया जाता है जिन्होंने मुगलों के सामने कभी सिर नहीं झुकाया।
24 जून को इनकी 461वां बलिदान दिवस है। उनकी शहादत एक प्रेरणा है और उनका साहस भारतीय युद्धकला और नेतृत्व के इतिहास में एक अमूल्य धरोहर के रूप में सदैव जीवित रहेगा। रानी दुर्गावती का जीवन साहस, संघर्ष और नायकत्व का प्रतीक बन चुका है।
उन्होंने 51 युद्धों में विजय प्राप्त की और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए बलिदान दिया। तो ऐसे में आइए उनके 461वें बलिदान दिवस पर हम उनके इस संघर्ष और साहस को याद करें।
प्रारंभिक जीवन और विवाह
रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालंजर (बांदा, उत्तर प्रदेश) के किले में हुआ था। वह राजा कीरत सिंह और रानी कमलावती की संतान थीं। उनके परिवार का ऐतिहासिक महत्व था और बचपन से ही उन्हें युद्धकला, शस्त्र विद्या और शासन की गहरी शिक्षा दी गई।
उनका विवाह राजा दलपतिशाह से हुआ था, जो मध्य प्रदेश के गोंडवाना के सम्राट थे। इस विवाह ने न केवल दो महान कुलों को जोड़ने का काम किया, बल्कि यह सामाजिक समरसता का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी था। रानी के इस कदम से जातिवाद के खिलाफ एक मजबूत संदेश गया, जो उस समय के समाज में एक बड़ा सुधार था।
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युद्ध कौशल और रणनीति
रानी के युद्ध कौशल ने उन्हें एक महान शासिका और योद्धा बना दिया। वह युद्ध की कई पारंपरिक रणनीतियों में माहिर थीं। विशेष रूप से, क्रौंच व्यूह और अर्धचंद्र व्यूह में उनकी महारत थी।
क्रौंच व्यूह का प्रयोग बड़े युद्धों में किया जाता था, जिसमें रानी की सेना पूरी तरह से संरक्षित रहती थी और दुश्मन के सामने प्रभावी रूप से लड़ा जाता था।
रानी दुर्गावती की सेना में 20 हजार वीर पुरुष और एक हजार हाथी थे, जो गोंडवाना साम्राज्य की सैन्य शक्ति का प्रतीक थे। उनके तहत उठाए गए कदमों ने गोंडवाना साम्राज्य को एक मजबूत और स्वतंत्र राज्य बनाए रखा।
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नारी सशक्तिकरण
रानी ने नारी सशक्तिकरण के लिए भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने गढ़ा में पचमठा में महिलाओं के लिए एक गुरुकुल की स्थापना की, जहां महिलाएं शिक्षा ले सकती थीं।
इसके अलावा, रानी ने गोलकी मठ का पुनर्निर्माण कराया, जो संस्कृत, प्राकृत और पाली भाषाओं की शिक्षा देता था। इस कदम से रानी ने न केवल अपने राज्य की महिलाओं को सशक्त किया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि शिक्षा हर महिला का अधिकार है।
रानी दुर्गावती का मध्यप्रदेश से संबंध
रानी का गहरा संबंध मध्यप्रदेश से है, क्योंकि वह गोंडवाना साम्राज्य की शासिका थीं जो आज के मध्यप्रदेश के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित है। रानी दुर्गावती ने इस राज्य की सीमाओं का विस्तार किया और अपने साम्राज्य को मजबूती से संभाला।
उनका मुख्यालय महेश्वर और सिंगारगढ़ किले में था जो वर्तमान में मध्यप्रदेश के क्षेत्र में स्थित हैं। रानी दुर्गावती का योगदान न केवल सैन्य क्षेत्र में था, बल्कि उन्होंने नारी सशक्तिकरण, शिक्षा और सामाजिक सुधारों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनका बलिदान और संघर्ष मध्यप्रदेश के इतिहास का अहम हिस्सा है। उनकी वीरता और नेतृत्व ने गोंडवाना साम्राज्य को एक ऐतिहासिक पहचान दिलाई।
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शहादत
1564 में, जब अकबर के सेनापति असफ खां ने रानी के राज्य पर आक्रमण किया, तो रानी ने उसे पहले भी पराजित किया था। हालांकि, इस बार असफ खां ने छल का सहारा लिया और सिंगौरगढ़ के किला (मध्य प्रदेश) को चारों ओर से घेर लिया।
युद्ध में भारी तोपों का प्रयोग किया गया, जिससे रानी और उनके सैनिकों को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। रानी को गंभीर चोटें आईं, लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय साहस से काम लिया।
जब रानी को यह एहसास हुआ कि वे युद्ध में घायल हो गई हैं और उनकी मृत्यु निकट है, तो उन्होंने अपनी तलवार अपने सीने में घोंपकर वीरगति प्राप्त की।
इस शहादत ने रानी दुर्गावती को भारतीय इतिहास में एक अमर स्थान दिलाया। उनका बलिदान आज भी भारत में मातृभूमि की रक्षा के लिए किए गए संघर्ष और बलिदान की मिसाल के रूप में याद किया जाता है।
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