New Delhi. टमाटर सहित सब्जियों की कीमतों में अप्रत्यशित बढ़ोतरी और मसाले समेत अन्य सामग्रियों के बढ़ते दामों से महंगाई बढ़ गई है। इस बीच केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति मंगलवार (8 अगस्त) से बैठक शुरू कर रही है। इसमें नीतिगत पॉलिसी पर फैसला लेने की तैयारी है। आरबीआई की बैठक 8 से 10 अगस्त तक चलेगी। महंगाई पर चिंता के बीच ऐसी संभावना जताई जा रही है कि आरबीआई ब्याज दरों पर अपनी यथास्थिति बरकरार रख सकता है, लेकिन अगर बढ़ाई तो होम लोन से ऑटो और पर्सनल लोन तक सब कुछ महंगा हो जाएगा और आपको ज्यादा ईएमआई चुकानी होगी। हालांकि एफडी पर ज्यादा ब्याज दरें मिलेंगी। महंगाई पर तीन दिन के मंथन के बाद 10 अगस्त की सुबह आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास मौद्रिक नीतियों की घोषणा करेंगे।
क्या हो सकता है आरबीआई का निर्णय?
जानकारी के अनुसार आरबीआई ने ब्याज दर में बढ़ोतरी का सिलसिला पिछले साल मई में शुरू किया था। हालांकि फरवरी 2023 के बाद से रेपो दर 6.5 प्रतिशत पर स्थिर है। अप्रैल और जून में हुई एमपीसी की दो बैठकों में बेंचमार्क दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया। अगर 8 अगस्त से होने वाली बैठक में भी कोई बदलाव नहीं किया जाता है तो यह लगातार तीसरी बार होगा, जब आरबीआई अपने स्टांस में कोई परिवर्तन नहीं करेगा। रिपोर्ट्स यही कह रही हैं कि महंगाई को देखते हुए आरबीआई लगातार तीसरी बार ब्याज दरों को स्थिर रख सकता है। रेपो रेट बढ़ने से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के 1 फरवरी को बजट पेश करने के बाद मौद्रिक नीति समिति की यह दूसरी बैठक है।
चार विशेषज्ञों का मानना : आर्थिक वृद्धि में गति बनाए रखने को रेपो रेट में परिर्वन संभव नहीं
- पंजाब एंड सिंध बैंक के प्रबंध निदेशक स्वरूप कुमार साहा ने कहा कि आरबीआई वैश्विक रुझानों सहित कई चीजों को ध्यान में रखता है। इसलिए हाल में अमेरिकी फेडरल रिजर्व जैसे कई केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी को भी ध्यान में रखा जाएगा। साहा ने कहा है कि मेरा अनुमान है कि आरबीआई रेपो रेट को मौजूदा स्तर पर बरकरार रखेगा। अगर वैश्विक हालात स्थिर रहते हैं तो ब्याज दर अगली 2-3 तिमाहियों तक यथास्थिति में ही रह सकती है।
रेपो रेट में 0.25% की बढ़ोतरी होती है तो यह 2018 के बाद सबसे ऊंची दर होगी
आरबीआई ने अप्रैल और जून 2023 में हुई बैठक में ब्याज दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की थी। हालांकि फरवरी 2023 में रेपो रेट में 0.25% की बढ़ोतरी की थी। इससे रेपो रेट 6.25% से बढ़कर 6.50% हो गई। अब आरबीआई एक बार फिर 0.25% की बढ़ोतरी करती है तो रेपो रेट 6.50% से बढ़कर 6.75% हो जाएगी। साथ ही 1 अगस्त 2018 के बाद रेपो रेट की यह सबसे ऊंची दर हो जाएगी। तब रेपो रेट 6.50% थी।
रेपो रेट क्यों बढ़ाता या घटाता है आरबीआई?
आरबीआई के पास महंगाई से लड़ने का रेपो रेट के रूप में एक शक्तिशाली टूल है। जब महंगाई बहुत ज्यादा होती है तो आरबीआई रेपो रेट बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में पूंजी प्रवाह को कम करने की कोशिश करता है। अगर रेपो रेट ज्यादा होगा तो बैंकों को आरबीआई से मिलने वाला कर्ज महंगा हो जाएगा। बदले में बैंक भी अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देंगे। इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होगा। मनी फ्लो कम होगा तो डिमांड में कमी आएगी और महंगाई घटेगी। इसी तरह जब भारतीय अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजरती है तो वसूली के लिए पूंजी प्रवाह बढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में आरबीआई रेपो रेट कम कर देता है। इससे बैंकों को आरबीआई से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है और ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन मिलता है।
रिवर्स रेपो रेट के घटने और बढ़ने से क्या होता है असर?
रिवर्स रेपो रेट उस दर को कहते हैं जिस दर पर बैंकों को आरबीआई पैसा रखने पर ब्याज देता है। जब मार्केट से लिक्विडिटी को कम करना होता है तो आरबीआई रिवर्स रेपो रेट में इजाफा कर देता है। रिजर्व बैंक के पास अपनी होल्डिंग के लिए ब्याज प्राप्त करके बैंक इसका फायदा उठाते हैं। अर्थव्यवस्था में उच्च मुद्रास्फीति के दौरान आरबीबाई रिवर्स रेपो रेट बढ़ाता है। इससे बैंकों के पास ग्राहकों को लोन देने के लिए फंड कम हो जाता है।