ऋषिकेश-नैनीताल में भी जोशीमठ जैसा धंसने का खतरा, घरों में दिखी दरारें, भारत के दो महानगरों में भी बढ़ा खतरा

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Jitendra Shrivastava
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ऋषिकेश-नैनीताल में भी जोशीमठ जैसा धंसने का खतरा, घरों में दिखी दरारें, भारत के दो महानगरों में भी बढ़ा खतरा

NEW DELHI. जोशीमठ अकेला नहीं है जो धंसने की कगार पर है। भारत और दुनिया में कई ऐसे शहर हैं जो तेजी से पाताल में समाते जा रहे हैं। ये भी हो सकता है कि साल 2100 तक इनमें से कुछ शहर बचे ही नहीं। जमीन फट जाए और ये उसमें समा जाएं या फिर समुद्र इन्हें लील ले।





धंसने की प्रक्रिया दुनिया के 36 शहर, इसमें मुंबई और कोलकाता भी 





सिर्फ जोशीमठ की जमीन और दीवारों पर दरारें नहीं पड़ रही हैं। जोशीमठ जैसे उत्तराखंड में और भी शहर हैं जो दरारों के दर्द से परेशान हैं। ऋषिकेश, नैनीताल, मसूरी, टिहरी गढ़वाल, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और अल्मोड़ा में भी घरों में दरारें देखी गई हैं। यानी उत्तराखंड के एक बड़े हिस्से में ये डरावनी दरारें और डरा रही हैं। इन शहरों या उनके कुछ हिस्सों के धंसने की शुरुआत हो चुकी है। इनके अलावा देश के दो महानगरों को भी यह खतरा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत के उत्तराखंड में जमीन धंसने का मामला सामने आ रहा है। दुनिया में सिर्फ जोशीमठ नहीं है जो धंस रहा है। धंसने की प्रक्रिया दुनिया के 36 और शहरों में हो रही है। इसमें भारत के तटीय शहर मुंबई और कोलकाता भी हैं।





पहले बात करते हैं उत्तराखंड के शहरों की





कर्णप्रयाग के बहुगुणा नगर और आईटीआई कॉलोनी इलाकों में दो दर्जन से ज्यादा घरों में बड़ी दरारें आई हैं। ऋषिकेश के अटाली गांव के करीब 85 घरों में दरारें आई हैं। स्थानीय लोग ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन को इसका दोषी मानते हैं। टिहरी गढ़वाल के छोटे से कस्बे चंबा में भी मकानों में दरारें देखने को मिली हैं। ये घर टनल परियोजना के पास हैं, जिससे उनके घरों में दरारें आई हैं।





मसूरी के लंडौर बाजार में सड़क में दरारें पड़ी जो लगातार बढ़ रही है





मसूरी के लंडौर बाजार में सड़क का एक हिस्सा धीरे-धीरे धंस रहा है। दरारें भी पड़ी है जो लगातार बढ़ रही है। करीब एक दर्जन दुकानें और 500 लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं। ये लोग रिस्क जोन में रह रहे हैं। साल 2018 में नैनीताल के लोअर मॉल रोड की सड़क का एक हिस्सा धंस कर नैनी झील में चला गया था। पैचवर्क हुआ लेकिन फिर से दरारें दिखने लगी हैं। नैनीताल में तो यह स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब है। रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनि ब्लॉक में मौजूद झालीमठ बस्ती में एक दर्जन परिवारों को विस्थापित होना पड़ा क्योंकि उनके घरों में दरारें आ गई थीं।





केदारनाथ का गेटवे कहा जाने वाला गुप्तकाशी का भी हिस्सा धंसने लगा है





केदारनाथ का गेटवे कहा जाने वाला कस्बा गुप्तकाशी का भी कुछ हिस्सा धंस रहा है। अल्मोड़ा के विवेकानंद पर्वतीय एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट के पास भी जमीन धंसने की खबरें आई हैं। इस चक्कर में इंस्टीट्यूट की एक इमारत गिर भी चुकी है। पहले जानते हैं कि आखिर जमीन धंसने की प्रक्रिया क्या होती है? क्या सच में कोई शहर इस तरह से पाताल में समा सकता है? क्या सच में जमीन फटती है और उसमें शहर धंस जाते हैं।





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जानिए... क्यों धंसती है जमीन, क्या है इसकी वजह? 





जमीन धंसने की दो वजहें हो सकती हैं प्राकृतिक और मानव निर्मित। प्राकृतिक यानी भूकंप की वजह से कमजोर मिट्टी की परत खिसक जाए। भूस्खलन हो जाए या काफी तेज बारिश के बाद कमजोर परत धंस जाए। मानव निर्मित किसी भी शहर या जमीन के अंदर से बेहिसाब पानी निकालना। शहर की क्षमता से ज्यादा निर्माण। प्राकृतिक रूप से नाजुक इलाके में बिना वैज्ञानिक प्लानिंग के बेतरतीब निर्माण कार्य। इसके अलावा कई बार जलवायु परिवर्तन और बेतहाशा शहरीकरण भी बड़ी वजह बन सकते हैं।





क्या होता है जमीन का धंसना? 





जमीन धंसने को अंग्रेजी में लैंड सब्सिडेंस (Land Subsidence) कहते हैं। यह प्रक्रिया आमतौर पर धीरे-धीरे होती है। लेकिन कभी-कभी अचानक से भी हो सकती है। जमीन की सतह अचानक से किसी गड्ढे में बदल जाए या फिर कोई पहाड़ी इलाका धंस कर घाटी में गिर जाए। इसका सबसे बड़ा असर शहरी इमारतों, सड़कों, जमीन के अंदर मौजूद पानी और सीवर लाइन जैसे ढांचों पर पड़ता है। तटीय इलाकों में अगर यह होता है तो समुद्री बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। दुनिया के 36 ऐसे शहर हैं, जो धीरे-धीरे धंस रहे हैं साथ ही उनके ऊपर समुद्री बाढ़ का भी खतरा है।





दुनिया के इन शहरों में धंसाव की दर सबसे ज्यादा 





इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता साल 1990 से 2013 तक 2000 मिलिमीटर धंसी। साल 2025 तक यह 1800 मिलिमीटर और धंस सकती है। औसत धंसाव 75 से 100 मिलिमीटर प्रतिवर्ष है। वियतनाम की हो ची मिन्ह सिटी 1990 से 2013 के बीच 300 मिलिमीटर धंसी है। अगले दो साल में यह 200 मिलिमीटर और धंस सकती है। बैंकॉक इसी समय में 1250 मिलिमीटर धंसा है। अगले दो साल में 190 मिलिमीटर धंसने की आशंका है। अमेरिका का न्यू ओरलीन्स 1130 मिलिमीटर धंस चुका है। अगले दो साल में यह 200 मिलिमीटर से ज्यादा धंस सकता है। इसके अलावा जापान की राजधानी टोक्यो भी 1990 से 2013 के बीच 4250 मिलिमीटर धंसा है। इन शहरों लैंड सब्सिडेंस बहुत ज्यादा है।



अटाली गांव में 85 घरों में दरारें मुंबई कोलकाता में भी बढ़ा खतरा घरों में दिखी दरारें ऋषिकेश-नैनीताल भी धंसने लगा cracks in 85 houses in Atali village danger increased in Mumbai and Kolkata cracks were seen in houses Rishikesh-Nainital also started sinking