साहित्य जगत में इन दिनों नई बहस छिड़ी हुई है और ये बहस है उर्फी जावेद को लेकर। जी हां, सही पढ़ा आपने। उर्फी जावेद को आज तक ने अपने सालाना कार्यक्रम 'साहित्य तक' की ब्रांड एंबेसडर बनाया है। अब उर्फी किसी फैशन शो या किसी कपड़े के ब्रांड की एंबेसडर बनतीं तो ट्रोलर्स शायद थोड़ा हजम कर लेते, लेकिन मौका साहित्य तक से जुड़ा है तो उर्फी ट्रोलर्स के निशाने पर आ गईं हैं। सोशल मीडिया पर यूजर्स ने उर्फी के साथ आज तक को भी लताड़ा है।
सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिकियाएं...
सोशल मीडिया साइट एक्स पर अतुल कुमार नाम के यूजर ने लिखा, डॉली चाय वाले की तपस्या में कौन सी कमी रह गई थी, अब तो भाई का दुबई में ऑफिस भी है। आज तक से निवेदन है कि डॉली भाई को बुलाएं और युवाओं में चाय चेतना टाइप विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित करे।
शैलेष सिंह परिहार ने लिखा, वर्तमान समय में उर्फी जावेद से बड़ा कोई साहित्यकार नहीं है, धन्यवाद अरुण पुरी जी और उनके पूरे इंडिया टुडे ग्रुप को, जो उन्होंने देश को इतनी बड़ी साहित्यकार से परिचय कराया।
सचिन शुक्ल तो ज्यादा ही नाराज हो गए। उन्होंने लिखा, उर्फी जावेद का साहित्य से क्या लेना देना है। पीके सिंह लिखते हैं कि ये उर्फी जावेद हैं, ये साहित्य आज तक में आ रही हैं, आप सोच सकते हैं कि किस तरह का साहित्य सुनाएंगी।
कवि अरुणेश मिश्र ने लिखा, उर्फी जावेद, न खेद न मत भेद, वहीं पत्तल प्रचलन में, जिसमें छेद ही छेद।
'साहित्य तक' की ब्रांड एंबेसडर बनी उर्फी जावेद
वैसे तो उर्फीजी से हमारी कोई अदावत नहीं है। न ही अपनी फितरत सोशल पुलिसिंग की रही है, जो उनके फैशन पर कोई कमेंट करें। क्या पहनें, क्या खाएं और कैसे रहें? उनका व्यक्तिगत मामला है। और हम एक आजाद देश के नागरिक… बस थोड़ी- बहुत चिंता लिखा-पढ़ी से जुड़ी रहती है, सो कुछ लिखने की हिम्मत कर रहा हूं। धन्यवाद आज तक का जो उसने अपनी परंपरा के अनुरूप क्रांतिकारी कदम उठाया। लीक से हटकर गोल्ड स्टैंडर्ड जर्नलिज्म की परंपरा को निभाते हुए उसने “साहित्य तक” की ब्रांड एंबेसडर उर्फी जावेद को नियुक्त किया। धन्यभागी है यह देश जो सही प्रतिभा का सही जगह उपयोग एक टीवी चैनल कर सका। वरना तो कहां कदम-कदम पर प्रतिभा का हनन ही होता रहता है।
उर्फी को सुनकर सामाजिक बोध से हो पाएंगे ओतप्रोत
कल्पना कीजिए कितना दिव्य दृश्य होगा, जब उर्फी मंच से साहित्य के मर्म पर अपनी बात रखेंगी। सामाजिक मुद्दों पर उनकी हर बात देश में बड़ा विमर्श खड़ा करेगी। और मंच के नीचे कुर्सियों पर बैठे लेखक महोदयों को भविष्य के लेखन की दिशा मिलेगी। कविताओं को नई धार मिलेगी। लेख और ज्यादा सामाजिक बोध से ओतप्रोत हो पाएंगे। दरअसल धन्य हैं हम जो आज तक का साहित्य तक देखने के लिए इस धरा पर हैं। धन्य वो भी होंगे, जो साहित्य के इस मंच पर पूर्व में जा चुके हैं, बल्कि वो तो अफसोस करेंगे कि काश इस बार अवसर मिलता तो उर्फीजी को करीब से सुन पाते।
खैर... सबकी ऐसी किस्मत कहां, जो इस दिव्य अवसर का लाभ ले सकें। मैं भी उन अभागों में हूं, जो दिल्ली नहीं जा सकता। टिकट के पैसों का जुगाड़ तो जैसे- तैसे हो भी जाता, मगर ऑफिस ने बड़ी साजिश के तहत मेरी छुट्टी कैंसिल कर दी है। पर जो जा रहे हैं, उनके लिए कुली फिल्म का एक गाना पेश है-
मुबारक हो तुमको…
नहीं मेरी किस्मत कि देखूं…
- एक अभागा साहित्य प्रेमी
और पढ़िए यूजर्स ने क्या-क्या लिखा...
मुझे साहित्य आजतक के मंच पर जा रहे लेखकों शायरों से जलन हो रही है। जिस मंच पर उर्फी के कदम पड़ रहे हैं, वह मंच शायरों के लिए जन्नत के समान है। उस मंच पर नाक रगड़ लेना मैग्सेसे और बुकर पुरस्कार प्राप्त कर लेने जैसा है। उस मंच की मिट्टी चूम लेना भी गालिब और मीर हो जाने जैसा है।
-सर्वेश कुमार तिवारी
मशहूर साहित्यकार “ऊर्फी जावेद” साहित्य आज तक के मंच की शोभा बढ़ा रही हैं। हालांकि जब मुझे पता चला था की उर्फी साहित्य आज तक में आएगी तो मुझे लगा था कि वह सुमित्रानंदन पंत, मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, रामधारी सिंह दिनकर की किताबों से डिजाइन किया हुआ ड्रेस पहन कर आएगी मगर उसने ऐसा नहीं किया।
-कविश अजीज
इन्हें तो आप पहचानते ही होंगे, ये उर्फी जावेद हैं। ये "साहित्य आज तक" के शो में आ रही है। आप सोच सकते हैं कि ये इस शो में आकर किस तरह का 'साहित्य' सुनाएगी। अगर आप भी उर्फी जावेद से मिलकर साहित्य सीखना चाहती हैं तो अभी टिकट बुक करें।
- पीके सिंह
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