Lucknow. उत्तरप्रदेश में अमेठी और रायबरेली गांधी परिवार के गढ़ माने जाते हैं। 2019 के चुनाव में इनमें से अमेठी का किला भले ही कांग्रेस के हाथ से फिसल गया हो लेकिन नगरीय निकाय के चुनाव परिणाम राहत देने वाले है। कांग्रेस अमेठी में सबसे बड़ी जायस सीट को बीजेपी से छीनने में कामयाब रही तो रायबरेली में लालगंज पंचायत और रायबरेली नगर पालिका में अपना अध्यक्ष बना चुकी है। वहीं कांग्रेस के इस गढ़ में समाजवादी बयार बहाने की कोशिश कर रहे अखिलेश यादव की साइकिल पंचर ही नहीं हुई बल्कि उसका टायर ही बर्स्ट हो गया। समाजवादी पार्टी ने इन दोनों सीटों पर जमानत जब्त कराई है।
केवल दम भरकर रह गई सपा
बता दें कि साल 2022 के चुनाव में समाजवादी पार्टी रायबरेली लोकसभा क्षेत्र की 5 में से 4 सीटें जीती थी और एक सीट मामूली अंतर से हार गई थी। अमेठी की बात की जाए तो यहां सपा के दो विधायक मौजूद हैं तो वहीं दो सीटों पर पार्टी दूसरी पोजीशन में थी। जिसके बाद से समाजवादी पार्टी रायबरेली और अमेठी को पूरी तरह से कब्जाने के ख्वाब देख रही थी। इससे पहले इन दोनों सीटों पर समाजवादी पार्टी अपने प्रत्याशी ही नहीं उतारती थी। नगरीय निकाय चुनावों के परिणाम ने समाजवादी पार्टी के मंसूबों पर पानी फेरने का काम किया है।
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कोलकाता में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा था कि अब रायबरेली और अमेठी में लोकसभा चुनाव में पार्टी अपने प्रत्याशी उतारेगी। उन्होंने यह हवाला दिया था कि कांग्रेस यहां उनके वोटों से जीतती है लेकिन जब कोई राजनैतिक संकट आता है तो कांग्रेसी समाजवादियों का साथ नहीं देते।
वाकओवर नहीं देने का लिया था फैसला
बता दें कि अमेठी और रायबरेली में समाजवादी पार्टी कांग्रेस को वाकओवर देने का काम करती थी। लेकिन अमेठी में राहुल गांधी के हारने के बाद समाजवादी पार्टी ने इन दो सीटों पर अपना मन बदलने की बातें कहना शुरू कर दी थीं। लेकिन नगरीय निकाय चुनाव में जनता ने कांग्रेस को अच्छे संकेत दे दिए और समाजवादी पार्टी को नकारा है। रायबरेली में सपा ने 9 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे और अमेठी में सभी सीटों पर सपा उम्मीदवार मैदान में थे। यहां पार्टी का खाता खुलना तो दूर जमानत जब्त कराने की नौबत आ गई।