प्रवीण शर्मा, BHOPAL. बीजेपी और आरएसएस के साहित्य-संस्कृति से जुड़े प्रकोष्ठों के पदाधिकारियों और बुद्धिजीवियों को सबसे ज्यादा सक्रिय रखने वाले लेखकों की बात की जाए तो जाहिर तौर पर पहला नाम अरुंधति रॉय (Arundhati Roy) का ही लिया जाएगा। बुकर अवार्ड से सम्मानित अरुंधति कुछ लिखें या बोलें और बीजेपी-संघ परिवार के कार्यकर्ता उनकी खिलाफत में सड़क पर न उतरें ऐसा कम ही होता है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान (CM Shivraj singh chouhan) भी उन्हें बुद्धिजीवियों की जमात में शुमार किए जाने पर सवाल उठा चुके हैं। पूर्व सीएम उमा भारती (Ex CM Uma Bharti) तो अरुंधति के लिए ये तक बोल चुकी हैं कि ऐसे बुद्धिजीवी सिर्फ घृणा के पात्र हैं। लेकिन अब इन्हीं अरुंधति रॉय की किताब अलजेब्रा ऑफ इनफाइनाइट जस्टिस (The Algebra of Infinte Justice) मप्र के कॉलेजों में पढ़ाई जाएगी। उच्च शिक्षा विभाग के केंद्रीय अध्ययन मंडल (अंग्रेजी साहित्य) ने नई शिक्षा नीति में अरुंधति की किताब के बीए सेकंड ईयर के सिलेबस में शामिल किया है।
है न चौंकाने वाली बात! केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हाल ही में भोपाल आकर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की खुले दिल से तारीफ करके लौटे हैं। शिक्षा नीति के साथ ही उन्होंने मध्यप्रदेश की सराहना की। लेकिन नई शिक्षा नीति को लागू करने में अव्वल रहने वाले मध्यप्रदेश ने शिक्षा नीति में कॉलेजों के सिलेबस में एक नई विचारधारा को एंट्री दे दी है। वह भी उस अरुंधति रॉय के जरिए जिनका नाम सुनते ही राष्ट्रवाद के सारे झंडाबरदार तमतमा उठते हैं। अरुंधति की किताब को सिलेबस तय करने वाले शिक्षकों ने अंग्रेजी साहित्य पढ़ाने के लिए सबसे अच्छा बताते हुए चुना है। अरुंधति की किताब को प्रदेश के कॉलेजों में बीए सेकंड ईयर में इंग्लिश लिटरेचर (अंग्रेजी साहित्य) में शामिल किया है। इसी साल फरवरी में हुई केंद्रीय अध्ययन मंडल (Central Board Of Studies) ने चौथी यूनिट में अरुंधती की किताब द अलजेब्रा ऑफ इनफाइनाइट जस्टिस (न्याय का गणित) को शामिल किया है।
पॉलीटिकल राइटिंग में शामिल की किताब
सा नहीं कि किसी चूक के कारण ये नाम तय हो गया है, बल्कि चार- पांच दौर की बैठकों के बाद पंद्रह सदस्यों वाले केंद्रीय अध्ययन मंडल ने इस किताब को सिलेबस में शामिल करने की मंजूरी दी है। किताब को कोर्स का हिस्सा बनाने के साथ ही सेंट्रल बोर्ड ऑफ स्टडीज द्वारा इस यूनिट की तैयारी के लिए सजेस्ट की गईं किताबों की सूची में भी इसे शामिल किया है। यह किताब इंगलिश लिटरेचर बीए सेकंड ईयर के पहले पेपर की चौथी यूनिट में लिया गया है। इस यूनिट का टॉपिक है पॉलीटिकल राइटिंग (Political Writing)। केंद्रीय अध्ययन मंडल की अनुशंसा पर इंग्लिश लिटरेचर पढ़ने वाले स्टूडेंट्स कुछ दिन बाद बाजार में इस किताब न्याय का गणित को ढूंढते नजर आएंगे। अब जैसे ही अरुंधति की किताब को कोर्स का हिस्सा बनाने की जानकारी सरकार के नीति-नियंताओं और संगठन को लग रही है, सभी की भौंह तनना शुरू हो गई हैं। शिक्षकों का यह सिलेक्शन किसी के भी गले नहीं उतर रहा है और सवाल उठाए जाने लगे हैं।
शिक्षा नीति में बदलाव का यह था आधार
पुरानी शिक्षा नीति पर संघ, संगठन और बीजेपी की सरकार हमेशा संस्कारहीन होने का आरोप लगाते रहे हैं। पुरानी शिक्षा नीति 1986 में लागू की गई थी। नई शिक्षा नीति को केंद्र सरकार ने भारत केंद्रित, संस्कृति केंद्रित और राष्ट्र केंद्रित बताया था। सूत्रों की मानें तो इसके लिए आरएसएस के शिक्षा समर्थित संगठन विद्या भारती ने मोर्चा संभाल रखा था। नई शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम बनाने के लिए टास्क फोर्स का गठन भी किया गया था। इस टास्क फोर्स के प्रमुख भी विद्या भारती के राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी को बनाया गया था। इस टास्क फोर्स में फीस कमेटी के अध्यक्ष रविंद्र कान्हेरे, हिंदी ग्रंथ अकादमी के संचालक डॉ. अशोक कडे़ल सभी लेखकों और प्रत्येक विषय के केंद्रीय अध्ययन मंडल के सदस्यों के साथ लगातार बैठकें करते रहे हैं। साथ ही नई शिक्षा नीति उच्च शिक्षा विभाग के आला अधिकारी भी सरकार और संगठन की मंशा समझाते रहे हैं। विषय वस्तु, लेखक, भाषा, साहित्य, संस्कृति को लेकर भी गाइड लाइन बकायदा विद्या भारती की ओर से समझाई जाती रही है। बावजूद इसके अरुंधति रॉय की किताब को कोर्स का हिस्सा बनाए जाने से सभी आश्चर्य और ऐतराज जता रहे हैं।
जब अरुंधति बोलीं थी, रंगा-बिल्ला बता देना अपना नाम
वर्ष 2008 में अपनी किताब गॉड ऑफ स्मॉल थिंक्स (God of small Thinks) के लिए बुकर अवार्ड प्राप्त लेखक अरुंधति रॉय हमेशा से विवादों में बनी रही हैं। सरकार के फैसलों का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुला विरोध जताती रही हैं। कश्मीर में सेना की मौजूदगी पर उनका विरोध रहा तो अफजल गुरू के बारे में उनका तर्क था कि सबूत काफी नहीं थे। वह बीजेपी.आरएसएस के खिलाफ लिखती रहती हैं। पोखरण परमाणु परीक्षण का भी उन्होंने विरोध किया था। सीएए, दिल्ली दंगे के समय भी वह काफी चर्चा में रही थीं। भारत की नीतियों की वैश्विक स्तर पर खामियां गिनाने में भी वे पीछे नहीं रहीं। खासकर भाजपा सरकार उनके निशाने पर हमेशा रही हैं। शिक्षा के भगवाकरण आदि पर भी अरुंधति रॉय सरकार के खिलाफ रहीं। सरकार को मुस्लिम विरोधी, देशद्रोही, अलगाववादी बताने में भी वे नहीं चूकीं। कोरोना काल में सरकार की नीतियों पर को मुस्लिम विरोधी बताते हुए अरुंधति ने नेशनल स्क्रीनप्ले अवार्ड और साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी लौटा दिया था। जबकि एनसीआर व एमपीआर को लेकर उन्होंने मुस्लिम लोगों से अपील की थी कि जब एनपीआर के लिए अधिकारी आएं तो आप लोग उन्हें अपना गलत नाम बता देना, आप लोग अपना नाम रंगा-बिल्ला लिखवा देना।
अरुंधति को लेकर क्या बोले थे सीएम शिवराज औऱ उमा भारती
सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अरुंधति रॉय के बयान पर तंज करते हुए कहा था कि अगर यही हमारे बुद्धिजीवी हैं तो पहले हमें ऐसे बुद्धिजीवियों का रजिस्टर बनाना चाहिए। उन्होंने अपना नाम बता ही दिया है, साथ ही यह भी बता दिया है कि उन्हें कुंग-फू की भी जानकारी है। अरुंधति जी को शर्म आनी चाहिए। ऐसे बयान देश के साथ विश्वासघात नहीं है तो क्या है? (अरुंधति ने जब दिसंबर 2019 में एनपीआर के विरोध में बयान दिया था)
उमा भारती ने कहा था, मैं शर्मिंदा हूं कि मुझे इस महिला के नाम का जिक्र करना पड़ रहा है, जिसके दिमाग में रंगा-बिल्ला जैसे लोग भी आदर्श हो सकते हैं। यह विचार महिला विरोधी, मानवता विरोधी एवं बेहद घृणित एवं विकृत मानसिकता की पहचान है। ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवी सिर्फ घृणा एवं निंदा के पात्र हैं। ऐसी सोच का तथा ऐसे लोगों का पूर्णतः बहिष्कार होना चाहिए।
न्याय का गणित में अरुंधति के निबंधों का संग्रह
अरुंधति रॉय की यह किताब अलजेब्रा ऑफ इनफाइनाइट जस्टिस पूरी तरह से निबंधों पर आधारित है। इसमें जो निबंध शामिल किए हैं, वे अरुंधति रॉय की चुनिंदा किताबों से ही लिए गए हैं। इनमें परमाणु परीक्षण, नर्मदा पर सरदार सरोवर बांध के निर्माण के अलावा अन्य विषयों पर भी लेख शामिल हैं। इस किताब में जिन निबंधों को लेख के रूप में शामिल किया गया है, उनमें द एंड ऑफ इमेजिनेशन, द ग्रेटर कॉमन गुड, पॉवर पॉलिटिक्स, द लेडीज हेव फीलिंग्स सो, अलजेब्रा ऑफ इनफाइनाइट जस्टिस, वॉर इस पीस, डेमोक्रेसी हूज शी वेन शीइज एट होम, वॉर टॉक समर गेम्स विद न्यूक्लियरस बॉम्ब प्रमुख हैं। अधिकांश लेखों में सरकार की नीतियों को ही निशाना बनाया गया है।
इन राज्यों ने भी सिलेबस से हटाईं अरुंधति की किताबें
- तमिलनाडु की गवर्नमेंट यूनिवर्सिटी में 2017-18 से अरुंधति रॉय की किताब वॉकिंग विद कॉमरेड्स कोर्स में शामिल थी। यह किताब एमए इंगलिश लिटरेचर थर्ड सेमेस्टर में पढ़ाई जाती थी। वर्ष 2020 में एबीवीपी के विरोध के बाद राज्य सरकार और यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इसे विवादित माना। इसमें माओवादियों के समर्थन की बातें लिखी थी। कंटेंट संज्ञान में आते ही इसे तत्काल बैन कर दिया गया।
- केरल की कालीकट यूनिवर्सिटी में अरुंधति का एक भाषण एक चैप्टर के रूप में शामिल था। बीए थर्ड ईयर इंगलिश लिटरेचर में इसे कम सितंबर शीर्षक से पढ़ाया जाता था। यह उनके द्वारा 2002 में अमेरिका में दिए गए भाषण पर आधारित था। इसमें उन्होंने हिंदू धर्म की तुलना सांप्रदायिक फासीवाद से की थी। साथ ही गुजरात दंगों को राज्य समर्थित जनसंहार बताया था। 2020 में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की आपत्ति के बाद यह भाषण कोर्स से हटा दिया गया।
कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे लेफ्टिस्ट हैं या राइटिस्ट- डॉ. गौतम
हां मेरी अध्यक्षता वाले केंद्रीय अध्ययन मंडल ने ही अरुंधति रॉय की किताब द अलजेब्रा ऑफ इनफाइनाइट जस्टिस को बीए सेकंड ईयर के सिलेबस के लिए चयन किया है। इस कमेटी में 15 शिक्षक थे। सभी ने सहमति से इसे तय किया है। हमने किसी वाद से प्रभावित होकर उनका चयन नहीं किया है। अरुंधति की अंग्रेजी भाषा पर पकड़ बहुत अच्छी है। उनका लेखन, भाषा उच्च स्तरीय होने के साथ ही शब्दों का चयन बहुत गजब का है। हर शब्द बहुत स्ट्रांग होता है और वे तर्कपूर्ण लिखती हैं। दूसरी बात यह है कि अरुंधति रॉय की इस किताब पर सरकार द्वारा कोई बैन भी नहीं है। वहीं लिटरेचर में अच्छी बात यही होती है कि किसी भी विषय के छात्र और शिक्षक मिलकर विस्तृत समालोचना करते हैं और कोई गलत बात उसमें होती है तो कई गुना ज्यादा ताकत से उसका विरोध करते हैं। फिर किसी भी पूरे सिलेबस और उसके कंटेंट पर लगातार बैठकें होती रहती हैं। यदि किसी लेखक पर कोई आपत्ति है तो उसे हटा भी सकते हैं। वैसे मेरा मानना है कि अंग्रेजी का भी भारत को राष्ट्र बनाने में बड़ा अहम योगदान है। भारत के लोगों को आपस में जोड़ने का काम इस भाषा ने किया है। आज भी भारत के करीब 2 करोड़ लोग अंग्रेजी के बल पर ही विदेशों में कमा रहे हैं और भारत में भी भेज रहे हैं। अंग्रेजी के दम पर ही भारतीय लोग कहीं मेंबर ऑफ पार्लियामेंट बन रहे हैं तो कोई राष्ट्रपति बन रहा है। हमें इससे फर्क नहीं पड़ता है कि वे लेफ्टिस्ट हैं या राइटिस्ट । अरुंधति राय में आपत्तिजनक क्या है? हमने तो पहले भी अरुंधति राय की कई किताबें पाठ्यक्रम में रखी हैं।
- डॉ. जीएस गौतम, चेयरमैन, केंद्रीय बोर्ड ऑफ स्टडीज इंग्लिश