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अडानी समूह और हिंडनबर्ग रिसर्च विवाद में एक और नया और महत्वपूर्ण मोड़ आया है। सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता विशाल तिवारी ने एक अतिरिक्त आवेदन दायर करते हुए मांग की है कि भारतीय एजेंसियां अमेरिकी अदालत में अडानी समूह के खिलाफ दाखिल किए गए आरोपपत्र की जांच करें। उनका कहना है कि अमेरिकी आरोपों में जो तथ्य सामने आए हैं, वे भारतीय निवेशकों और शेयर बाजार पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं। इसके अलावा, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि इसे मौजूदा हिंडनबर्ग रिपोर्ट जांच से जोड़ा जाए।
क्या है मामला?
जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट में Adani Group पर गंभीर आरोप लगाए थे। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि Adani Group ने शेयर बाजार में हेरफेर किया, अपनी कंपनियों के मूल्य को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया, और कई वित्तीय अनियमितताएं कीं। इन आरोपों के बाद Adani Group के शेयरों में भारी गिरावट आई, जिससे निवेशकों को अरबों का नुकसान हुआ और भारतीय बाजार में अफरा-तफरी मच गई।
इस मामले के सामने आने के बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। न्यायालय ने इस पर विशेषज्ञ समिति का गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट में कुछ सिफारिशें दी थीं। हाल ही में, अमेरिका में दाखिल आरोपपत्र में अडानी समूह पर वित्तीय दस्तावेजों में हेरफेर और नियमों का उल्लंघन करने के आरोप लगाए गए। याचिकाकर्ता का मानना है कि यह नया आरोपपत्र, हिंडनबर्ग रिपोर्ट के आरोपों को और मजबूत करता है और भारतीय एजेंसियों द्वारा इसकी जांच अनिवार्य हो जाती है।
विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें और अमेरिकी जांच का महत्व
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों की गहराई से जांच होनी चाहिए। समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को अपनी जांच जल्द से जल्द पूरी करनी चाहिए।
हालांकि, सेबी की रिपोर्ट में कोई ठोस सबूत या प्रत्यक्ष धोखाधड़ी सामने नहीं आई है। इसके बावजूद अमेरिकी अदालत में दायर आरोपपत्र ने अडानी समूह पर लगे आरोपों को फिर से ताजा कर दिया है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि अमेरिकी न्यायालय के दस्तावेज यह स्पष्ट करते हैं कि अडानी समूह न केवल भारतीय नियमों, बल्कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय नियमों का भी उल्लंघन करने का आरोपी है।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि यदि इस आरोपपत्र की सही तरीके से जांच नहीं हुई, तो यह न केवल भारतीय बाजार की साख को नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि निवेशकों के विश्वास को भी कमजोर कर सकता है।
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याचिकाकर्ता ने की है यह मांग
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार याचिकाकर्ता विशाल तिवारी का कहना है कि,
1. भारतीय एजेंसियों द्वारा जांच अनिवार्य है: भारतीय एजेंसियों, जैसे कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), को अमेरिकी आरोपपत्र में किए गए दावों की जांच करनी चाहिए। इससे यह स्पष्ट हो सकेगा कि अडानी समूह पर लगाए गए आरोप कितने सही हैं और उनके भारतीय बाजार पर क्या प्रभाव पड़े हैं।
2. छोटे निवेशकों की सुरक्षा: अडानी समूह पर लगे आरोप केवल बड़े स्तर के कारोबारी विवाद नहीं हैं, बल्कि यह छोटे और मध्यम निवेशकों की सुरक्षा का भी सवाल है। निवेशकों का विश्वास बनाए रखना भारतीय बाजार की मजबूती के लिए बेहद जरूरी है।
3. अंतरराष्ट्रीय प्रभाव: अमेरिका में दाखिल आरोपपत्र का असर भारतीय अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक संबंधों पर भी पड़ सकता है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि भारतीय एजेंसियां इस मामले की निष्पक्ष और गहन जांच करें।
सुप्रीम कोर्ट में जल्द हो सकती है सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में पहले ही चल रहे मामले में याचिकाकर्ता के नए आवेदन के बाद, इस मामले में सुनवाई जल्द हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या अमेरिकी अदालत में दायर आरोपपत्र को भारतीय न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जा सकता है और क्या इसे सेबी या अन्य जांच एजेंसियों द्वारा जांचा जा सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारतीय एजेंसियां अमेरिकी आरोपपत्र की जांच करती हैं, तो यह न केवल अडानी समूह के लिए, बल्कि अन्य बड़े कॉरपोरेट समूहों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है।
Adani Group खारिज कर चुका है आरोप
Adani Group ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट और उससे जुड़े आरोपों को पहले भी सिरे से खारिज किया है। उनका कहना है कि यह उनके व्यवसाय को नुकसान पहुंचाने और उनकी छवि खराब करने की साजिश है। समूह का यह भी दावा है कि उन्होंने सभी वित्तीय और कानूनी नियमों का पालन किया है।
अडानी-हिंडनबर्ग विवाद अब केवल भारत का मामला नहीं रह गया है। अमेरिकी अदालत में दाखिल आरोपपत्र ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण बना दिया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से यह तय होगा कि भारतीय न्यायपालिका और एजेंसियां ऐसे मामलों में कितनी पारदर्शिता और सक्रियता दिखाती हैं। इस विवाद का प्रभाव न केवल निवेशकों पर पड़ेगा, बल्कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था और उसकी विश्वसनीयता पर भी गहरा असर डाल सकता है। इस मामले पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं।
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