सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को वैध घोषित किया है। यह धारा 1985 में असम समझौते के बाद लाई गई थी, जो मार्च 1971 से पहले भारत में प्रवेश करने वाले बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने से रोकती थी। कोर्ट ने 4-1 के बहुमत से इस धारा की वैधता पर मुहर लगाई, जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला ने असहमति व्यक्त की। पिछले साल 12 दिसंबर को इस मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा था।
क्या है पूरा मामला?
नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के तहत, जो बांग्लादेशी अप्रवासी 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच असम आए थे, वे भारतीय नागरिकता के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। हालांकि, 25 मार्च 1971 के बाद आने वाले अप्रवासी इस अधिकार से वंचित हैं। याचिकाओं में कहा गया था कि असम में अवैध प्रवासियों के आगमन से राज्य की जनसांख्यिकी में असंतुलन हो रहा है और मूल निवासियों के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा है।
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असम समझौता और धारा 6A
1985 के असम समझौते के तहत नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए जोड़ी गई थी, जो असम में बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने के नियम तय करती है। इसके तहत, 1 जनवरी 1966 से 25 मार्च 1971 के बीच आने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है।
2014 में भेजा गया था मामला संविधान पीठ के पास
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को 2014 में संविधान पीठ के पास भेजा गया था। 5 दिसंबर 2023 को पांच जजों की पीठ ने असम में नागरिकता अधिनियम की धारा 6A से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि कोई ऐसा ठोस प्रमाण नहीं है जिससे यह सिद्ध हो कि 1966 से 1971 के बीच बांग्लादेशी प्रवासियों को नागरिकता देने से असम की जनसंख्या या सांस्कृतिक पहचान पर असर पड़ा है।
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