NEW DELHI. सुप्रीम कोर्ट ने 1 मई को पति-पत्नी के रिश्तों को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि अगर रिश्तों में आई दरार खत्म नहीं हो रही है तो ऐसे साथ रहने का कोई मतलब नहीं है। अगर जीवनसाथी के बीच आई दरार भर नहीं पा रही तो इस आधार पर किसी शादी को 6 महीने पहले भी खत्म किया जा सकता है।
जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली 5 जजों की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पूरा न्याय करने का अधिकार है। हम अनुच्छेद 143 के तहत दी गई विशेष शक्ति का इस्तेमाल करके पति-पत्नी की आपसी सहमति से उनकी शादी को खत्म कर सकता है। दंपति को रिश्ता खत्म करने के लिए अब 6 महीने इंतजार नहीं करना पड़ेगा। बता दें कि आर्टिकल 142 और आर्टिकल 143 सुप्रीम कोर्ट के अधिकार हैं। अनुच्छेद 142 शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित किसी मामले में ‘संपूर्ण न्याय’ करने के लिए उसके आदेशों के क्रियान्वयन से संबंधित है।
सुप्रीम कोर्ट के सामने थे ये मुख्य सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि तलाक के मामले में छह महीने का जो कूलिंग ऑफ पीरियड है, वह पहले के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के हिसाब से केस टू केस निर्भर करेगा। 12 सितंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आपसी सहमति से तलाक के मामले में अगर दोनों पक्षों में समझौते की गुंजाइश न बची हो तो अदालत 6 महीने का कूलिंग (वेटिंग) पीरियड खत्म कर सकती है। हिंदू मैरिज एक्ट के तहत प्रावधान है कि सहमति से तलाक के मामले में 6 महीने का वक्त दिया जाता है ताकि समझौते की कोशिश हो सके।
सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य सवाल यह आया था कि क्या तलाक के लिए अनिवार्य कूलिंग ऑफ पीरियड जरूरी है? क्या टूट के कगार पर पहुंची शादी, जिसमें सुधार की गुंजाइश (इरिट्रीवबल ब्रेक डाउन ऑफ मैरिज) ना हो, इस आधार पर तलाक हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने फिर सुनवाई के दौरान कहा कि वह दूसरे सवाल यानी तलाक के ग्राउंड पर फैसला देगा। इस मामले में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, दुष्यंद दवे और मीनाक्षी अरोड़ा को कोर्ट सलाहकार बनाया था।
वहीं, इंदिरा जयसिंह ने अपनी दलील में कहा था कि टूट के कगार पर पहुंची शादी, जिसमें सुधार की गुंजाइश ना बची हो, इस ग्राउंड पर तलाक होना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में फैसले के लिए अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल करना चाहिए। दवे ने दलील दी कि इस मामले में कोर्ट को अपने पॉवर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि संसद ने इस ग्राउंड को तलाक का आधार नहीं बनाया। सिब्बल ने इस दौरान गुजारा भत्ता और कस्टडी के मुद्दे को भी उठाया था।
पहले ये थी व्यवस्था
12 सितंबर 2017 को दिए अपने एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए 6 महीने का वोटिंग पीरियड अनिवार्य नहीं है। अगर दोनों पार्टी में समझौते का प्रयास विफल हो चुका है और दोनों ने बच्चे की कस्टडी और अन्य विवादों का निपटारा कर लिया है तो कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर 6 महीने के पीरियड खत्म कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे में दोनों पार्टी सहमति से तलाक की अर्जी के एक हफ्ते बाद वेटिंग पीरियड को खत्म करने की अर्जी दाखिल कर सेकंड मोशन दाखिल कर सकते हैं, ताकि उन्हें तलाक मिल सके। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि तलाक के मामले में जब दोनों पक्ष आपसी सहमति से तलाक की अर्जी दाखिल करें तो अदालत वेटिंग पीरियड को खत्म करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण बिंदु पर विचार करे।
समझौते की गुंजाइश ना बचने पर कोर्ट करे अपने अधिकार का इस्तेमाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि परंपरागत तरीके से हिंदू लॉ जब कोडिफाईड नहीं हुआ था, तब शादी एक धार्मिक संस्कार माना जाता था। वह शादी सहमति से खत्म नहीं हो सकती थी। हिंदू मैरिज एक्ट आने के बाद तलाक का प्रावधान आया। 1976 में सहमति से तलाक का प्रावधान किया गया। इसके तहत फर्स्ट मोशन के 6 महीने के बाद दूसरा मोशन दाखिल किए जाने का प्रावधान है और तब तलाक होता है। इस दौरान 6 महीने का कुलिंग पीरियड इसलिए किया गया, ताकि अगर जल्दीबाजी और गुस्से में फैसला हुआ हो तो समझौता हो जाए और शादी को बचाया जा सके।