New Delhi. साल 2002 में गुजरात के गोधरा स्टेशन में अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों की बोगी को आग के हवाले करने के मामले में 8 दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी है। इन सभी आठों दोषियों को विशेष अदालत ने उम्रकैद की सजा दी थी, हाईकोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा था। 17 से 18 साल जेल में बिताने के बाद दोषियों की ओर से शीर्ष अदालत में जमानत अर्जी लगाई गई थी। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जमानत का लाभ दिया है। उधर शीर्ष अदालत ने इस मामले में निचली अदालत से फांसी की सजा पाने वाले 4 दोषियों की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया।
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चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच में इस जमानत अर्जी पर सुनवाई हुई। अदालत ने इस साल 20 फरवरी को दोषियों की आयु और जेल में बिताए गए समय समेत उनका विवरण तलब किया था ताकि फैसला करने में मदद मिले। अदालत में गुजरात सरकार का पक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा। सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने 2017 के गुजरात हाईकोर्ट के उस फैसले पर कड़ी असहमति जताई जिसमें 11 दोषियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया था।
गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साल 2002 में ट्रेन की बोगी को आग के हवाले कर 59 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई थी, जिनमें से ज्यादातर कारसेवक थे। इस मामले के 8 दोषियों को आज सुप्रीम कोर्ट ने जमानत का लाभ दिया है। अदालत के फैसले पर देश भर में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।
गोधरा कांड के केस में विशेष अदालत ने कुल 31 लोगों को दोषी करार दिया था, जबकि 63 आरोपियों को बरी कर दिया था। विशेष अदालत ने 31 दोषियों में से 11 को फांसी की सजा सुनाई थी। जिसे हाईकोर्ट ने उम्रकैद में तब्दील कर दिया था।