NEW DELHI. सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने की मांग से संबंधित याचिकाओं पर आज यानी 13 मार्च को सुनवाई होनी है। इससे पहले केंद्र सरकार ने कोर्ट में 56 पेज का हलफनामा पेश किया। इसमें सरकार ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने का विरोध किया। हालांकि, कोर्ट में सरकार ने ये भी कहा कि ये गैरकानूनी नहीं हैं।
केंद्र ने समलैंगिक शादियों को भारतीय परिवार की धारणा के खिलाफ बताया है। केंद्र के एफिडेविट के मुताबिक, समान सेक्स संबंध (Same Sex Relation) की तुलना भारतीय परिवार की पति, पत्नी से पैदा हुए बच्चों के कॉनसेप्ट से नहीं की जा सकती। जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में समलैंगिक विवाह की कोई निहित स्वीकृति शामिल नहीं हो सकती।
केंद्र की कोर्ट में 10 दलीलें
- 1. केंद्र ने कहा कि प्रारंभ में ही विवाह की धारणा अनिवार्य रूप से अपोजिट सेक्स के दो व्यक्तियों के बीच एक मिलन को मानती है. यह परिभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से विवाह के आइडिया और कॉनसेप्ट 6 में शामिल है और इसे विवादित प्रावधानों के जरिए खराब नहीं किया जाना चाहिए.
2. सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने अपने कई फैसलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्याख्या स्पष्ट की है. इन फैसलों की रोशनी में भी इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए क्योंकि उसमें सुनवाई करने लायक कोई तथ्य नहीं है. मेरिट के आधार पर भी उसे खारिज किया जाना ही उचित है.
3. कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती. क्योंकि उसमे पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है. उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं. समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग- अलग माना जा सकेगा?.
4. संहिताबद्ध और असंहिताबद्ध व्यक्तिगत कानून भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के डिक्रिमिनलाइजेशन के बावजूद हर धर्म की सभी शाखाओं पर ध्यान दिया जाता है. याचिकाकर्ता समान-लिंग विवाह के मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं. किसी भी समाज में देश के कानून, पार्टियों का आचरण और उनके पारस्परिक संबंध हमेशा व्यक्तिगत कानूनों, संहिताबद्ध कानूनों या कुछ मामलों में प्रथागत कानूनों/धार्मिक कानूनों द्वारा शासित और परिचालित होते हैं.
5. सरकार ने हलफनामे में कहा कि किसी भी देश का न्यायशास्त्र, चाहे वह संहिताबद्ध कानून के माध्यम से हो या सामाजिक मूल्यों, विश्वासों और सांस्कृतिक इतिहास पर हो, एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह को न मान्यता प्राप्त है और न ही स्वीकृत है.
6. विवाह किसी व्यक्ति की निजता के क्षेत्र में केवल एक कॉन्सेप्ट के रूप में नहीं छोड़ा जा सकता है वो भी तब जब इसमें रिश्ते को औपचारिक बनाने और उससे उत्पन्न होने वाले कानूनी परिणामों जैसी चीज इसमें शामिल हो. विवाह, कानून की एक संस्था के रूप में, इसके कई वैधानिक और अन्य परिणाम हैं. इसलिए, इस तरह के मानवीय संबंधों की किसी भी औपचारिक मान्यता को दो वयस्कों के बीच सिर्फ एक निजता का मुद्दा नहीं माना जा सकता है.
7. समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से गोद लेने, तलाक, भरण-पोषण, विरासत आदि से संबंधित मुद्दों में बहुत सारी जटिलताएं पैदा होंगी. इन मामलों से संबंधित सभी वैधानिक प्रावधान पुरुष और महिला के बीच विवाह पर आधारित हैं.
8. ऐसे मुद्दों को सक्षम विधानमंडल द्वारा तय किए जाने के लिए छोड़ दिया जाए, जहां सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और समाज, बच्चों आदि पर पड़ने वाले अन्य प्रभावों पर बहस की जा सके.
9. समान-सेक्स विवाह को मान्यता न देने की वजह से किसी भी मौलिक अधिकार का हनन नहीं होता. किसी विशेष प्रकार के सामाजिक संबंध को मान्यता देने का कोई मौलिक अधिकार नहीं हो सकता.
10. यह सच है कि सभी नागरिकों को अनुच्छेद 19 के तहत परिवार बनाने का अधिकार है. लेकिन कोई सहवर्ती अधिकार नहीं है कि ऐसे परिवार को आवश्यक रूप से राज्य द्वारा कानूनी मान्यता प्रदान की जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- समलैंगिकता गैरकानूनी नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में समलैंगिकता को अवैध बताने वाली IPC की धारा 377 की वैधता पर अहम फैसला सुनाया था। कोर्ट ने तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा 377 से बाहर कर दिया था।
तब कोर्ट ने कहा था, व्यक्तिगत चॉइस का सम्मान देना होगा, समलैंगिकों को राइट टु लाइफ उनका अधिकार है और यह सुनिश्चित करना कोर्ट का काम है, LGBT समुदाय को उनके यौन झुकाव से अलग करना उन्हें उनके नागरिक और निजता के अधिकारों से वंचित करना है। एलजीबीटी समुदाय को औपनिवेशिक कानून के जंजाल में नहीं फंसाया जाना चाहिए, गे, लेस्बियन, बाइ-सेक्सुअल और ट्रांसजेंडर सबके लिए नागरिकता के एक समान अधिकार हैं।
इन देशों में समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता
भारत में भले ही सरकार समलैंगिकों की शादी का विरोध कर रही है, लेकिन आज कई देश ऐसे हैं, जहां समलैंगिक शादियों को मान्यता मिल चुकी है। इनमें बेल्जियम, कनाडा, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, नॉर्वे, स्वीडन, आइसलैंड, पुर्तगाल, अर्जेंटीना, डेनमार्क, उरुग्वे, न्यूजीलैंड, फ्रांस, ब्राजील, इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, लग्जमबर्ग, फिनलैंड, आयरलैंड, ग्रीनलैंड, कोलंबिया, जर्मनी और माल्टा देश शामिल हैं। नीदरलैंड ने सबसे पहले दिसंबर 2000 में समलैंगिक शादियों को कानूनी तौर से सही करार दिया था।